ठाणे

Published: Sep 04, 2022 06:24 PM IST

Immersionपर्यावरण को बचाने के लिए कृत्रिम तालाबों और घरों में हो रहा है गणेशमूर्ती विसर्जन

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

उल्हासनगर : कोरोना के कारण दो साल के लंबे अंतराल के बाद शहर में आस्था श्रद्धा के साथ गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) मनाया जा रहा है। डेढ़ और तीन दिन की गणेश मूर्तियां के विसर्जन (Immersion) से ज्ञात हुआ कि इस वर्ष लोगों का रुझान इको फ्रेंडली (Eco Friendly) गणेश मूर्तियों के प्रति अधिक रहा है। 

देखने को यह भी मिला की श्रद्धालुओं ने डेढ़ और तीन दिन की गणपती की मूर्तियों का विसर्जन पारंपरिक घाटों के अलावा निजी और महानगरपालिका द्वारा बनाए गए कृत्रिम तालाब में किया और वहीं सेंकडों भक्तों ने साढु मिट्टी की बनी मूर्तियां अपने घरों में ही विसर्जित की और उस पानी को तुलसी के पौधों में बहाया। न्यायालय के आदेश के अनुसार पीने का पानी, तालाब, नदिया, समुद्र, खराब नहीं हो इसका ध्यान रखने की सलाह दी है। इसलिए सामाजिक संगठनों से जुड़े पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं द्वारा लोगों के बीच जनजागरूकता की गई है जिसके परिणाम अब धीरे-धीरे दिखाई देने लगे है। 

अंबरनाथ, बदलापुर नगरपालिका दर्जनो स्थानों और उल्हासनगर महानगरपालिका द्वारा उल्हासनगर कैम्प 5 कैलाश कॉलोनी चौक, उल्हासनगर स्टेशन पश्चिम, बोटक्लब गार्डन हीराघाट वालधुनी नदी के पास, आईडीआई कंपनी, शहाड, सेंचुरी क्लब उल्हासनदी के पास कृत्रिम तालाब की व्यवस्था की है और  इसका उपयोग कर छोटी गणेश मूर्तियों को उसमें विसर्जित करके पर्यावरण, जल और नदी सरंक्षण की अपील भी स्थानिक स्वराज्य संस्थाओं ने गणेश भक्तों से विविध प्रसार माध्यमों द्वारा की थी। 

स्थानीय वालधुनी नदी को स्वच्छ बनाने की कानूनी लड़ाई लड़ने वाली वालधुनी नदी बिरादरी नामक संस्था के अध्यक्ष शशिकांत दायमा ने बताया कि वालधुनी और उल्हासनदी की स्वच्छता अभियान में अग्रसर उल्हासनदी बचाओ कृति समिति के सैंकड़ों कार्यकर्ताओ द्वारा इस साल श्री गणेश विसर्जन घाट पर विशेष रूप से सक्रियता दिखा रहे है। निर्माल्य संकलन केंद्र बनाए गए, आईडीआई कंपनी, सेंचुरी क्लब और पांचवा मैल स्थित विसर्जन घाट पर डेढ़ और 3 दिवस के गणेश विसर्जन के दौरान नदी में निर्माल्य और पूजा सामान प्रवाहित करने से रोकने का काम भी उल्हासनदी बचाओ कृति समिति के कार्यकर्ताओं ने बखूबी किया गणेश भक्तों ने भी कार्यकर्ताओं की भावना के आदर किया। स्वयंसेवियों ने संकलित किए निर्माल्य को खाद में बदलने की प्रक्रिया के लिए बनाए गए छोटे केंद्र और हौद में उसको डाला ताकि निर्माल्य से खाद बन सके और पर्यावरण की रक्षा हो। नगरपालिका, महानगरपालिका और पुलिस प्रशासन भी।