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Published: Jan 07, 2022 02:58 PM IST

Madras High Courtनिचली अदालत द्वारा भगवान को ‘तलब' करने पर मद्रास उच्च न्यायालय नाराज

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

चेन्नई, मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि क्या अदालत भगवान को निरीक्षण के लिए पेश करने का आदेश दे सकती है। इसके साथ ही उच्च न्यायालय (High Court) ने तिरुपुर जिले के एक मंदिर के अधिकारियों को ‘मूलवर’ (अधिष्ठातृ देवता) की मूर्ति को सत्यापन के लिये पेश करने का आदेश देने पर एक निचली अदालत की खिंचाई की है। ‘मूलवर’ (अधिष्ठातृ देवता) की यह मूर्ति चोरी हो गयी थी और बाद में उसका पता लगाकर अनुष्ठानों और ‘अगम’ नियमों का पालन कर उसे पुन: स्थापित किया गया था।

न्यायमूर्ति आर सुरेश कुमार ने कहा कि ऐसा करने की बजाए निचली अदालत के न्यायाधीश इस मूर्ति की सत्यता का निरीक्षण/सत्यापन करने के लिए एक अधिवक्ता-आयुक्त नियुक्त कर सकते थे और अपने निष्कर्ष/रिपोर्ट दर्ज कर सकते थे। न्यायाधीश ने मूर्ति चोरी के मामले की सुनवाई कर रही कुंभकोणम की निचली अदालत पर यह टिप्पणी की जिसने अधिकारियों को तिरुपुर जिले के सिविरिपलयम में परमशिवन स्वामी मंदिर से संबंधित उक्त मूर्ति को पेश करने का आदेश दिया था। न्यायमूर्ति सुरेश ने उस याचिका पर यह अंतरिम आदेश दिया जिसमे कुंभकोणम अदालत के मूर्ति को पेश करने के निर्देश के अनुपालन में अधिकारियों द्वारा मूर्ति को मंदिर से फिर से हटाए जाने के संभावित कदम को चुनौती दी गयी थी।

याचिकाकर्ता के अनुसार, प्राचीन मंदिर में मूर्ति चोरी हो गई थी, बाद में पुलिस ने उसे बरामद किया और संबंधित अदालत- कुंभकोणम में मूर्ति चोरी के मामलों से निपटने वाली विशेष अदालत- के समक्ष पेश किया। इसके बाद, इसे मंदिर के अधिकारियों को सौंप दिया गया और मंदिर में फिर से स्थापित कर दिया गया। बाद में कुंभाभिषेक भी किया गया। अब ग्रामीणों समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा इसकी पूजा की जाती है।

कुंभकोणम में मूर्ति चोरी के मामले देख रहे न्यायिक अधिकारी ने छह जनवरी को मूर्ति यानी ‘मूलवर’ को निरीक्षण के लिये पेश करने और जांच पूरी करने का निर्देश दिया था। मंदिर के कार्यकारी अधिकारी जब अदालत में पेश करने के लिये प्रतिमा को हटाने लगे तो लोगों ने इसका विरोध किया और एक रिट याचिका उच्च न्यायालय में दायर की। न्यायाधीश ने बृहस्पतिवार को अपने आदेश में कहा कि मूर्ति को हटाने और संबंधित अदालत में पेश करने की आवश्यकता नहीं है, इसका कारण यह है कि, भक्तों की मान्यता के अनुसार, यह भगवान है।

भगवान को न्यायालय द्वारा केवल निरीक्षण या सत्यापन उद्देश्यों के लिए पेश करने के लिए नहीं बुलाया जा सकता है, जैसे कि यह एक आपराधिक मामले में एक भौतिक वस्तु हो। न्यायिक अधिकारी मूर्ति की दिव्यता को प्रभावित किए बिना या बड़ी संख्या में भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना उसका निरीक्षण करने के लिए एक अधिवक्ता-आयुक्त को तैनात कर सकते थे।(एजेंसी)