उत्तर प्रदेश
Published: Jul 14, 2022 05:42 PM ISTUttar Pradesh Newsकमजोर मानसून के चलते यूपी में किसानों के सामने संकट, योगी ने बुलाई बैठक
– राजेश मिश्र
लखनऊ : मानसून (Monsoon) की कमजोरी (Weakness) के चलते उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के अधिकांश इलाकों में धान की अगैती फसल बोने वाले किसानों (Farmers) के सामने संकट खड़ा हो गया है। जून के मध्य से लेकर जुलाई के दूसरे सप्ताह तक मानसून ने उत्तर प्रदेश में रंग नहीं दिखाया है। कम बारिश के चलते जहां किसानों के सामने धान की नर्सरी (Nursery) लगाने में दिक्कत खड़ी हुयी वहीं अब रोपाई के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है।
ट्यूबवेलों को अधिक से अधिक बिजली उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए
कमजोर मानसून के चलते खेती किसानी पर आए संकट से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ने उच्च अधिकारियों के साथ बैठक कर चर्चा की। बैठक में मानसून की बेरुखी से निपटने के उपायों पर काम करने, नहरों में पानी की उपलब्धता बनाए रखने और ग्रामीण क्षेत्रों में लगे ट्यूबवेलों को बिजली की ज्यादा आपूर्ति करने के निर्देश दिए गए हैं।
इधर मानसून को लेकर मौसम विभाग का कहना है कि अभी तो एक दो दिन बादलों की आवाजाही रहेगी लेकिन अच्छी जोरदार बारिश के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार बंगाल की खाड़ी से मानसून को पर्याप्त नमी नहीं मिल पा रही है। इस कारण मानसून एक तरह से ठिठका हुआ है।
हालांकि कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इससे प्रदेश में धान के कुल रकबे पर पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा पर अगैती फसल बोने वाले किसानों के लिए मुश्किल जरुर पैदा हो गया है। उनका कहना है कि प्रदेश में ज्यादातर किसान धान की लेट वैरायटी बोते हैं जिसके लिए अभी पर्याप्त समय है। जून के आखिरी सप्ताह में हुयी बारिश के चलते नर्सरी लगाने भर का पानी मिल गया है।
लक्ष्य को पाना मुश्किल दिख रहा है
उत्तर प्रदेश में औसतन 58 से 60 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है। बीते साल इसका रकबा मानसून में देरी के बाद भी बढ़कर 60 लाख हेक्टेयर से ज्यादा पहुंच गया था। इस साल भी कृषि विभाग ने इसके 60 लाख हेक्टेयर से ज्यादा होने की उम्मीद लगायी थी। हालांकि बोआई की जो हालात है उसके चलते अभी इस लक्ष्य को पाना मुश्किल दिख रहा है। उत्तर प्रदेश में बीते साल 260 लाख टन धान का उत्पादन हुआ था जो पिछले कई सालों से अधिक रहा था।
उत्तर प्रदेश में धान का कटोरा कहे जाने वाले बाराबंकी के किसान श्रीष बताते हैं कि नहरों और ट्यूबवेल के सहारे नर्सरी लगायी और रोपाई भी की जा रही है पर फसल के अच्छा होने के लिए बारिश की दरकार है जो अभी तक रुठी हुयी है। उनका कहना है कि बारिश के कमजोर होने की दशा में कृषि विभाग की काला नमक और बासमती जैसे ज्यादा पानी की मांग वाले धान की खेती प्रभावित होगी।
इस बार प्रदेश सरकार ने बस्ती, गोंडा, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर और बलरामपुर जिलों में 15,000 हेक्टेयर में काला नमक धान बोने का लक्ष्य रखा था। इसी तरह कई इलाकों में बासमती को लेकर भी बड़ी उम्मीदें थी पर कम बारिश से इनका लक्ष्य पाना मुश्किल होगा।