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Published: Feb 10, 2022 10:19 AM IST

Artificial Sun Videoब्रिटेन : वैज्ञानिकों ने अब बनाया 'नकली सूरज', ऊर्जा के सारे व‍िश्‍व रेकॉर्ड टूटे, यहां देखें Video

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नई दिल्ली/लंदन. एक बड़ी खबर के अनुसार अब ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने ‘नकली सूरज’ (Artificial Sun) बनाने की दिशा में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। जी हाँ, ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने सूरज की तकनीक पर अब परमाणु संलयन को अंजाम देने वाले एक बेहतरीन परमाणु रिएक्‍टर को बनाने में सफलता हासिल कर ली है जिससे अपार ऊर्जा निकलती है। 

इतना ही नहीं ऑक्‍सफर्ड यूनिवर्सिटी के पास किए गए प्रयोग के दौरान 59 मेगाजूल ऊर्जा इस रिएक्‍टर से निकली जो दुनिया में अपने आप में रेकॉर्ड के हिसाब से देखा जा रहा है। इतनी मात्रा में ऊर्जा पैदा करने के लिए 14 किलो TNTका इस्‍तेमाल करना पड़ता है। 

बता दें कि इस शानदार प्रॉजेक्‍ट को ज्‍वाइंट यूरोपीयन टोरुस ने कूल्‍हाम में अंजाम दिया है। अब इस तकनीक की मदद से सितारों की ऊर्जा का दोहन किया जा सकेगा और धरती पर और भी सस्‍ती और साफ ऊर्जा मिलने का रास्‍ता साफ होगा। प्रयोगशाला ने 59 मेगाजूल ऊर्जा पैदा करके साल 1997 में बनाया गया अपना ही एक रेकॉर्ड तोड़ दिया है। ब्रिटेन के परमाणु ऊर्जा प्राधिकरण ने बीते बुधवार को इस सफल प्रयोग का ऐलान भी किया।

परमाणु संलयन पर आधारित है तकनीक 

इस बाबत एजेंसी ने बताया कि बीते 21 दिसंबर को आए परिणाम से अब सम्पूर्ण विश्व में परमाणु संलयन की तकनीक पर आधारित ऊर्जा के सुरक्षित और सतत आपूर्ति की क्षमता का प्रदर्शन हुआ है। इसके साथ ही ब्रिटेन के विज्ञान मंत्री जार्ज फ्रीमैन ने इस परिणाम की जमकर तारीफ भी की है और इसे मील का पत्‍थर करार दिया है। 

बता दें कि परमाणु संलयन तकनीक में ठीक उसी तकनीक का इस्‍तेमाल किया जाता है जो सूरज की गर्मी को पैदा करने के लिए करता है। ऐसा भी माना जाता है कि भविष्‍य में इससे सम्पूर्ण विश्व की मानवता को भरपूर, सुरक्षित और साफ ऊर्जा स्रोत मिलेगा जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्‍या से भी निजात मिल सकेगा। परमाणु संलयन पर केंद्रीत ब्रिटिश प्रयोगशाला में यह सफलता वर्षों के प्रयोग के बाद मिली है। इस प्रयोगशाला में डॉनट के आकार की मशीन लगाई गई है जिसे टोकामैक कहा जाता है। 

सूरज के केंद्र की तुलना में 10 गुना ज्‍यादा किया गर्म 

वहीं JETप्रयोगशाला में लगाई टोकामैक मशीन दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली है। इस मशीन के अंदर बहुत कम मात्रा में ड्यूटीरियम और ट्रीटीयम भरा हुआ है। ये दोनों ही हाइड्रोजन के आइसोटोप हैं और ड्यूटीरियम को हैवी हाइड्रोजन भी कहा जाता है। इसे सूरज के केंद्र की तुलना में 10 गुना ज्‍यादा गर्म किया गया ताकि इससे प्‍लाज्‍मा का निर्माण भी किया जा सके। इसे पहले सुपरकंडक्‍टर इलेक्‍ट्रोमैग्‍नेट का इस्‍तेमाल करके एक जगह पर रखा गया। फिर इसके घूमने पर अपार मात्रा में ऊर्जा निकली। पाठकों को बता दें कि, परमाणु संलयन से पैदा हुई ऊर्जा सुरक्षित होती है और यह एक किलोग्राम में कोयला, तेल या गैस से पैदा हुई ऊर्जा की तुलना में 40 लाख गुना ज्‍यादा ऊर्जा पैदा करती है।