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Published: Aug 03, 2020 03:45 PM IST

लेबनान इकॉनमी दिवालिया की तरफ बढ़ रहा है लेबनान: विश्लेषक

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

बेरूत: लेबनान में 20 घंटे तक बिजली कटौती, सड़कों पर कूड़े के ढेर, कमजोर आधारभूत संरचना और एक के बाद एक आई आपदा के मद्देनजर विश्लेषकों की राय है कि यह देश दिवालिया होने की तरफ बढ़ रहा है। देश में रोजाना स्थिति भयावह होती जा रही है। बड़ी संख्या में लोगों को काम से निकाला जा रहा है, अस्पतालों के बंद होने का खतरा है, दुकान और रेस्तरां बंद हो रहे हैं, अपराध बढ़ता जा रहा है और सेना अपने सैनिकों को भोजन तक मुहैया नहीं करा पा रही है और गोदामों द्वारा मियाद खत्म हो चुके खाने के सामान बेचे जा रहे हैं।

लेबनान तेजी से आर्थिक दिवालियापन, संस्थानों के खंडित होने, उच्च महंगाई दर और तेजी से बढ़ती गरीबी की ओर बढ़ रहा है और इन समस्याओं में महामारी ने और इजाफा कर दिया है। इस संकट से लेबनान के बिखरने का खतरा बढ़ गया है जो अरब में विविधता और मेलमिलाप के आदर्श मॉडल के रूप में स्थापित है और इसके साथ ही अराजकता फैल सकती है।

लेबनान 18 धार्मिक संप्रदाय, कमजोर केंद्रीय सरकार, मजबूत पड़ोसी की वजह से क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता का शिकार होता रहा है जिससे राजनीतिक जड़ता, हिंसा या दोनों का उसे सामना करना पड़ता है। लेबनान हमेशा से ईरान और सऊदी अरब के वर्चस्व की लड़ाई का शिकार बनता रहता है,लेकिन मौजूदा समस्या स्वयं लेबनान द्वारा उत्पन्न है, जो दशकों से भ्रष्ट और लालची राजनीतिक वर्ग की वजह से उत्पन्न हुई है, जिसकी चोट अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र पर पड़ी।

दुनिया में सबसे अधिक सार्वजनिक कर्ज के बावजूद लेबनान कई वर्षों से दिवालिया होने से बचा रहा। स्टीडीज ऐट कार्नेज इंडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के उपाध्यक्ष मरवान मुआशेर ने कहा, ‘‘ लेबनान में एक समस्या यह है कि यहां भ्रष्टाचार का लोकतांत्रिकीकरण हुआ है। यह केंद्र में बैठे एक व्यक्ति के साथ ही नहीं है । यह हर जगह है।” हाल में सेंटर फॉर ग्लोबल पॉलिसी के एक सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक धड़े की अर्थव्यवस्था में एक हिस्सा है जिस पर वह नियंत्रण करता है और उससे धन अर्जित करता है ताकि वह अपने धड़े को खुश रख सके।”

उल्लेखनीय है कि परेशानी 2019 के आखिर में तब बढ़ी जब सरकार ने व्हाट्सएप मैसेज पर कर लगाने की इच्छा जताई जिसे लेकर पूरे देश में भारी प्रदर्शन शुरू हो गया। माना जा रहा है कि अपने नेताओं से परेशान लोगों के खिलाफ खुलकर सामने आने के लिए इसने आग में घी का काम किया। यह प्रदर्शन करीब दो हफ्ते तक चला जिसके बाद बैंक में एवं उसके बाद अनौपचारिक रूप से पूंजी नियंत्रण करने वाले संस्थानों में भी विरोध शुरू हो गया जिससे डॉलर के निकालने या हस्तांतरित करने की सीमा तय कर दी गई। विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से लेबनानी पाउंड का मूल्य ब्लैक मार्केट में 80 प्रतिशत तक गिर गया है और मूलभत वस्तुओं व खाने पीने के समान की कीमत में बेतहाशा वृद्धि हुई।

लेबनान विश्व मुद्रा कोष से मदद की उम्मीद कर रहा है लेकिन कई महीनों तक चली बातचीत के बावजूद कोई सहमति नहीं बन पाई है। हाल में बेरूत की यात्रा पर आए फ्रांस के विदेश मंत्री ने भी लेबनान को बिना विश्वसनीय सुधार किए सहायता देने से मना कर दिया।

यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में अमेरिकी उपराष्ट्रपति के मध्य एशिया और अफ्रीका मामलों की सलाहकार मोना याकोउबियान ने वाशिंगटन के ‘दि हिल’ अखबार में लिखा, ‘‘लेबनान के पतन से यूरोप में शरणार्थियों के आने का नया सिलसिला शुरू हो जाएगा और इसके साथ ही सीरिया और इराक के बाद इलाके में और अस्थिरता पैदा हो जाएगी जिसका नकारात्मक असर अमेरिका और उसके सहयोगियों पर भी पड़ेगा। (एजेंसी)