दादरा से मजदूरों की खेप कर्नाटक रवाना

  • रोजगार की तलाश में आदिवासियों का फिर पलायन सुरु

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धारणी.  खरीफ का मौसम लगभग निपट जाने और मनरेगा के तहत आदिवासियों को पर्याप्त  काम न मिलने से  अब मेलघाट आदिवासी बेरोजगारी की मार झेल रहे है. दो जून की रोटी के लिए भी भिषण आर्थिक संकट से जुझते यह आदिवासी  मजदूर महिलाओं व मासूम बच्चों के साथ रोजगार की तलाश में अन्य जिलों व  राज्यों में पलायन पर मजबूर हो रहे है. कोरोना के चलते गांव में लौटे यह आदिवासी अब ठेकेदार द्वारा भेजे जा रहे ट्रकों, मिनीडोर जैसे वाहनों में सवार होकर अन्य राज्यों में पहुंच रहे है. शनिवार को दादरा गांव से ट्रकों में सवार होकर लगभग 50 से 60 मजदूर परिवार कर्नाटक  के लिए पलायन कर गए. जिससे शासकिय योजनाओं के अमलीकरण की पोल खुली है. 

7 दशकों में नहीं हुआ रोजगार का जुगाड़

आदिवासी बहुल क्षेत्र मेलघाट की धारणी व चिखलदरा जैसी 2 तहसीलों में आजादी के 73 वर्ष बाद भी स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध करवाने में  शासन प्रशासन सफल नहीं हो पाया है. रोजगार के आभाव में आदिवासी किसानों और मजदूरों का पलायन यहां की परंपरा बन गई है. लेकिन यह पलायन ही आदिवासियों की आने वाली पीढ़ियों के विकास में सबसे बड़ी बाधा बन रहा है. पलायलन के दौरान न केवल इन आदिवासियों का आर्थिक व श्रमिक शोषण होता है बल्कि उनके बच्चों का शैक्षणिक भविष्य भी शून्य हो रहा है. स्वास्थ के लिए भी यह पलायन खतरनाक साबित होता है. लेकिन रोजी रोटी की जुगाड़ के लिए वे पलायन पर मजबूर हो रहे है. 

लाकडाउन के दौरान हजारों लौटे

कोरोना जैसी महामारी के दौरान लगाए गए लाकडाउन के समय में देश के अन्य राज्यों व जिलों से हजारों मजदूर अपने गांव लौटे. कई मजदूरों को बोढ पैदल लौटना पड़ा. जिसके बाद शासन ने मनरेगा के तहत इन मजदूरों को पर्याप्त संख्या में काम देने की व्यवस्था किए जाने की घोषणा की. लेकिन यह घोषणा सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर कर रही है. जिससे बेरोजगारी की आग में झुलस रहे यहां के मजदूर अब परिवार की महिलाओं छोटे छोटे बच्चों के साथ पलायन के लिए निकल रहे है. 

जेसीबी लगे कामों पर  

मेलघाट के जंगलों में जेसीबी जैसी मशीने ले जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध है. इसके बावजूद अधिकारी कम लागत में यह काम जेसीबी व अन्य मशीनों का उपयोग किया जा रहा है. जिससे मनरेगा जैसे काम उपलब्ध नहीं हो पा रहे है. ऐसा आरोप लगाया जा रहा है. 

हर गांव में 109 दिन का काम 

मनरेगा के तहत 200 रुपए की मजदूरी दी जाती है. लेकिन बाहर के ठेकेदार उन्हे अधिक मजदूरी देने का लालच देकर काम पर ले जाते है. हम नियमों में बंधे है. अधिक मजदूरी नहीं दी जा सकती. ऐसे में उन्हे रोकना संभव नहीं होता. लेकिन मनरेगा के तहत काम उपलब्ध है दो दिन पहले ही मैने मिटिंग लेकर पंचायत समिति को हर गांव में कम से कम 109 दिनों तक के काम मनरेगा से उपलब्ध करवाने के नियोजन करने कहा है. एक सप्ताह में इस नियोजन की रिपोर्ट देने कहा है. जिससे काम उपलब्ध होगा. – मिताली सेठी, प्रकल्प अधिकारी

स्टीमेट ही नहीं बना

प्रशासन आदिवासी मजदूरों के लिए गंभीर नहीं है. मनरेगा के तहत रोजगार ही नहीं तो आदिवासी क्या करेंगे. ठेकेदार अधिक मजदूरी का लालच नहीं देता बल्कि मजदूरों का आर्थिक शोषण करते है. लेकिन मजदूर मजबूर है. प्रशासन हर गांव में कम से कम 3 काम तैयार रखे और उन गांव में मुनादी पिटवाकर मजदूरों को काम पर बुलाए. दादरा जैसी घटना पुन नहीं होनी चाहिए.  मैं इस मामले में रोजगार गारंटी योजना के मंत्री व मुख्यमंत्री तक शिकायत करुंगा. – राजकुमार पटेल, विधायक