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    अमरावती. भारत में सांप की एक नई प्रजाति खोजी गई है जो विज्ञान में कहीं भी दर्ज नहीं है. अमरावती, जबलपुर, ओडिशा, तमिलनाडु, लंदन और जर्मनी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए संयुक्त शोध में सांप की इस नई प्रजाति के बारे में दुनिया को पता चल है. इसी तरह दो सदियों से चली आ रही नामकरण की त्रुटि को दूर की गई है. डेढ़ सौ साल बाद, धूलनागीन नई प्रजाति के सांप की खोज की गई है.

    देश में मुख्यत: 4 प्रजाति के रेसर 

    भारत में रेसर्स की चार मुख्य प्रजातियां हैं. इनमें ‘पद्मिनी’ यानी बैंडेड रेसर सांप हर जगह पाया जाता है. अब तक इस सांप का शास्त्रीय नाम आर्जायरोजेना फॅसियोलाटा’ था, लेकिन इस प्रकाशित शोध के बाद इस प्रजाति का संशोधित नाम ‘प्लैटिसेप्स प्लिनी’ होगा. लंदन के नॅचरल हिस्ट्री म्युजियम के डेढ़ सौ साल पुराने चित्र तथा आनुवंशिक सैंपल, कंकाल की संरचना के कारण बैंडेड रेसर के नाम में सुधार किया गया है.

    इस अध्ययन के लिए सौ से अधिक नमूनों का परीक्षण किया गया. नमूने महाराष्ट्र के पुणे, अमरावती, यवतमाल और भंडारा जिलों से यह सैंपल लिए जाने की जानकारी वैज्ञानिकों की टीम के सदस्य अमरावती के वन्यजीव शोधकर्ता अशहर रजा खान ने दी है.

    ‘प्लाटीसेप्स जोसेफी’ सांप की नई प्रजाति

    भारत में खोजी गई नई प्रजाति का नाम ‘प्लाटीसेप्स जोसेफी’ रखा गया है. इसका नाम तूतीकोरिन (तमिलनाडु) के स्वर्गीय सरीसृपतज्ञ नवीन जोसेफ के नाम पर रखा गया है. सांप की इस प्रजाति का शरीर भूरे रंग की खड़ी सफेद धारियों वाला होता है. ये धारियां ऊपरी शरीर पर गहरे रंग की होती हैं और पार्श्व शरीर की ओर कम होते जाती हैं.

    इन वैज्ञानिकों में वी. दीपक, सूर्या नारायण, प्रत्यूष मोहापत्र, सुशील दत्ता, नानासेल्वान मेलविंसेलवान, अशहररजा खान, क्रिस्टिन महलॉव आणि फ्रैक टिलक का समावेश है. इन वैज्ञानिकों द्वारा सह-लेखक शोध के कुल अड़तालीस पृष्ठ जर्मन संग्रहालय के वर्टेब्रेट जूलॉजी जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं.