start the city's weekly market; Vegetable vendors demand
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    अमरावती.  इन दिनों शहर में देसी भेल (पारंपारिक कच्चा चिवड़ा) खूब बिक रहा है. पारंपारिक कचौरी,समोसा, सांभारवड़ी जैसे नाश्ता पदार्थों का विकल्प यह देसी भेल बन गई है. कई युवाओं के लिए यह कच्चा चिवड़ा रोजगार का साधन बन गया है. शहर के हर चौराहे पर अब कच्चा चिवड़ा की दूकानें सजी दिखाई देने लगी है. लोग भी बड़े चाव से कच्चा चिवड़ा पर ताव मारते दिख रहे है. पहले भी घर-घर में यह देसी भेल बनती थी. लेकिन समय का पहिया घूमते गया और कच्चा चिवड़ा नामशेष होने लगा.

    लेकिन कोरोना लाकडाउन में फिर एक बार कच्चा चिवड़ा वापिस लौट आया है. जिससे पूरानी यादें ताजा हो कर देसी भेल की डिमांड बढ़ गई है. पहले हमारे घर में ऐसा चिवड़ा दादी बनाती थी, बाजार के दिन यही चिवड़ा हमारी पसंद होती थी. ऐसा संवाद भी देसी भेल का लुफ्त उठाने वालों के मुख से सुनाई देने लगा है. अपनी हर चीज दोहराता है. इसका प्रमाण यह देसी भेल का नए कलेवर में पुनरागमन है. 

    मिलावट नहीं और इम्यूनिटी भी

    शहर में कच्चा चिवड़ा बेचने का व्यवसाय करने वाले प्रकाश पुंड, अंबादास काचोले, सचिन यादव आदी ने बताया कि मुरमुरा, फल्ली दाने, सेव, फुटाना, प्याज, धनिया, पुदिना, टमाटर, कैरी, निंबु, नमक, हल्दी, अदरक-लहसुन का पेस्ट, सेंधा नमक, मसाला, मिर्च पावडर, मुंगफली का तेल, पोहा आदी 14 वस्तुओं को मिलाकर कच्चा चिवड़ा तयार होता है.

    ग्राहक के मांग पर इसे समय पर बनाकर परोसा जाता है. जिसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं रहती. और यह देसी भेल तले हुए नाश्ते से ज्यादा पौष्टिक व इम्यूनिटी बढ़ाने में कारगर आहार है. लाकडाउन में जब नाश्ता बेचना संभव नहीं था, तब प्रायोगिक तौर पर कच्चा चिवड़ा बेचना शुरू किया गया. लेकिन अब जगह-जगह पर कच्चा चिवड़ा बिकने लगा है.