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अमरावती. प्लास्टिक पर्यावरण के लिए के घातक होने के बावजूद इससे बनी वस्तूओं के इस्तेमाल पर विशेषत: पालीथिन पर अंकुश लगाने के लिए प्रशासन उदासीन नजर आ रहा है. 50 मायक्रॉन से कम पालीथिन पर सरकार ने बंदी लागू की है, इसके बावजूद बाजार में धडल्ले से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन इसके लिए मनपा प्रशासन व्दारा लंबे समय से कोई कार्रवाई नहीं की गई. लगातार अभियान नहीं चलाए जाने के कारण बाजार में पॉलीथिन का उपयोग थमने का नाम नहीं ले रहा है. हालांकि कपड़े की थैलियां भी उपलब्ध है, लेकिन उसके बदले 10 से 20 रुपए अलग से वसूले जाने के कारण ग्राहक भी पॉलीथिन पर ही जोर देता है. 

नालियों में लगता जाम

प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल बढ़ऩे से कचरे में भी इसका प्रमाण बढ़ रहा है. सडक़ों पर पड़ी पन्नियां नाली या नालों में जाकर फंस जाती है और पानी के बहाव को रोक लेती है. इस वजह से मच्छरों का प्रमाण बढ़ रहा है. साथ ही बारिश के दिनों में जल निकासी में बाधा उत्पन्न होने से पानी सडक़ों पर बहता है. कई मवेशियों की मौत भी पॉलिथिन गटक जाने से होने की घटनाएं भी घटी है. इन सभी परेशानियों को देखते हुए पॉलिथिन के खिलाफ मुहिम छेडऩे की आवश्यकता है.

प्लास्टिक कचरा प्रबंंधन नियम की धज्जियां

एक ओर मनपा प्लास्टिक कचरे के कारण जाम नालों को साफ करने के लिए नागरिकों से कर रुप में प्राप्त करोड़ों रुपए खर्च करती है और दूसरी ओर प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2011 की धज्जियां उड़ा रही है. इस तरह से मनपा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करने के साथ राज्य के मुख्य सचिव के आदेशों की भी अनदेखी कर रही है.

महाराष्ट्र राज्य के मुख्य सचिव ने केंद्र शासन के प्लास्टिक कचरा प्रबंंधन नियम 2011 के प्रावधानों का कठोरता से क्रियान्वयन करने के लिए महानगरपालिका की ओर से की गई कार्रवाई बाबत शासन को त्रैमासिक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे, लेकिन इन आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए मनपा ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. प्लास्टिक कचरा प्रबंधन में केंद्र के नियमों के अनुसार घनकचरा प्रबंधन यंत्रणा खड़ी कर कार्यान्वयित करना, कचरें का संकलन, वहन, ठिकाने लगाने की पूरी जिम्मेदारी मनपा की है.

उसी प्रकार किसी भी ग्राहक को प्लास्टिक की थैली मुफ्त नहीं देने का भी नियम है, लेकिन इन सब में मनपा ने कोई कदम नहीं उठाया है. सुको के आदेशानुसार निगमायुक्त ने व्यक्तिश: ध्यान देकर इसका कार्यान्वयन किया जाना चाहिए और कार्रवाई की त्रैमासिक रिपोर्ट शासन को पेश करनी होती है.