FARMER RICE

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    • बीमा कंपनियों से नाराज
    • प्रस्तुत हैं उनके विचार 

    अकोला. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नियम किसानों के विरोध में है तो किसानों को इस बीमा योजना से लाभ कैसे मिलेगा, यह सवाल किसानों द्वारा किया जा रहा है. पिछले वर्ष की फसल बीमा की रकम अभी भी किसानों को नहीं मिली है. प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले वर्ष 138 करोड़ 68 लाख रू. किसानों ने बीमा कंपनियों के पास प्रिमियम के रूप में जमा किए थे.

    वहीं नुकसानग्रस्त किसानों को अब तक सिर्फ 77 करोड 90 लाख रू. का वितरण किया गया है. 2 लाख 63 हजार 995 किसानों ने फसल बीमा निकाला था जिसमें से 1 लाख 3 हजार 435 किसानों को इसका लाभ मिला है. शायद इसी बात को लेकर किसान काफी नाराज दिखाई दे रहे हैं. 

    किसानों की हो रही दुर्दशा

    फसल बीमे के लिए कंपनियों के पास केंद्र व राज्य सरकार, किसानों का हिस्सा जमा किया जाता है, लेकिन नुकसान भरपाई बहुत ही कम मिलती है या नहीं मिलती है. इससे ऐसा लगता है कि जैसे सिर्फ कंपनियों का लाभ हो रहा है. किसानों द्वारा यह आरोप भी लगाए जाते हैं. सन 2020-21 में किसानों ने बीमा कंपनियों के पास 18 करोड़ 48 लाख रू. जमा किए, राज्य सरकार का हिस्सा 60 करोड़ 10 लाख रू., केंद्र सरकार द्वारा भरी गयी रक्कम 60 करोड़ 10 लाख थी.

    वहीं खरीफ फसलों के नुकसान के लिए कंपनियों द्वारा जो मुआवजा दिया गया उसमें मूंग की फसल के लिए 40 करोड़ 69 लाख 47 हजार, तुअर के लिए 19 करोड़ 47 लाख 83 हजार, कपास के लिए 4 करोड़ 9 लाख 97 हजार और सोयाबीन के लिए 2 करोड़ 19 लाख 950 हजार रू. मंजूर किए गए. इस बारे में जनप्रतिनिधियों तथा किसानों से बातचीत करने पर उन्होंने भी कंपनियों और कृषि विभाग पर लापरवाही के आरोप लगाए हैं. 

    बीमा कंपनियों द्वारा किसानों को तकलीफ-रणधीर सावरकर

    इस बारे में जिला भाजपाध्यक्ष, विधायक रणधीर सावरकर का कहना है कि बीमा कंपनियों द्वारा किसानों को हमेशा तकलीफ दी जाती है. उन्होंने कहा कि कई बार उन्होंने बीमा कंपनियों से कहा है कि जहां तक हो किसानों को तकलीफ न दें, क्योंकि हर वर्ष जब किसानों का बीमा का मुआवजा लेने का समय आता है तब किसी न किसी बात को लेकर किसानों का काम रुका दिया जाता है यह ठीक नहीं है. 

    कंपनियों द्वारा न्याय न मिला तो न्यायालय में जाएंगे -प्रकाश तायड़े

    इस बारे में अकोला जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष प्रकाश तायड़े का कहना है कि बीमा कंपनियों द्वारा हमेशा किसानों को तकलीफ दी जा रही है. यदि इस बारे में किसानों को न्याय नहीं मिला तो बुलढाना के प्रसन्नजीत पाटिल के साथ न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा. यह इशारा भी उन्होंने किया.

    बीमा कंपनियां लाटरी पद्धति बंद करें-धनंजय मिश्रा

    शेतकरी संगठन के पश्चिम विदर्भ के अध्यक्ष धनंजय मिश्रा का कहना है कि फसल बीमा के लिए उपयोग की जानेवाली लाटरी पद्धति बंद की जानी चाहिए. सामूहिक फसल पद्धति पर अमल होना चाहिए क्योंकि यदि दो फसलों का नुकसान हुआ तो एक ही फसल का लाभ दिया जाता है. इसी तरह एक गांव का नियम दूसरे गांव पर लागू करना यह अन्यायपूर्ण है. किसानों को व्यक्तिगत लाभ देने में ही उनका फायदा होगा, यह भी उन्होंने स्पष्ट किया. 

    मुआवजे के समय ही तकलीफ दी जाती है-दीपेश तिवारी

    इस बारे में स्थानीय किसान दीपेश तिवारी का कहना है कि पहले ही बीमा कंपनियों के नियम किसानों के लिए काफी जटिल हैं. बड़ी मुश्किल से किसानों को फसल बीमे के मुआवजे की रकम मिल पाती है. लेकिन जब किसानों को बीमा कंपनियों द्वारा मुआवजा देने का समय आता है तभी कंपनियों द्वारा काफी रूकावटें उत्पन्न की जाती हैं. जिससे किसानों को काफी तकलीफ होती है. शायद इसी कारण कई किसानों को खेतों में नुकसान होने पर उत्पादन खर्च भी नहीं निकल पाता है.