160 वर्ष बाद बना अनोखा संयोग, लीप ईयर और पुरुषोत्तम मास दोनों एकसाथ

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अमरावती. आश्विन अधिक मास शुक्रवार 18 सितंबर से शुरू हो गया है, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा. अधिक मास को मलमास, पुरुषोत्तम मास आदि नामों से भी जाना जाता है. अधिक मास में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते है. इस बार अधिक मास में ऐसा शुभ संयोग बन रहा है जो 160 साल पहले बना था. फिर 2039 में भी ऐसा संयोग बनेगा.

इस साल संयोग ये है कि लीप ईयर और आश्विन अधिक मास दोनों एक साथ आएं हैं. ऐसा संयोग 160 साल पहले 1860 में बना था. ब्रह्मसिद्दांत के अनुसार जिस चन्द्रमास में संक्रांति न पड़ती हो उसे पुरुषोत्तम मास कहते हैं. शास्त्रों में इस मास के अनेक नियम बताए गए है.

मांगलिक कार्य वर्जित
इस महीने शादी, सगाई, गृह निर्माण आरम्भ, गृहप्रवेश, मुंडन, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा लेना, नववधू का प्रवेश, देवी-देवता की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ, बड़ी पूजा-पाठ का शुभारंभ, बरसी (श्राद्ध), कूप, बोरवेल, जलाशय खोदने जैसे पवित्र कार्य नहीं किए जाते है. पुरुषोत्तम मास में रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज जलवा आदि किए जा सकते है. इस माह में व्रत, दान, जप करने का अवश्य फल प्राप्त होता है.

हर तीन वर्ष बाद अधिक मास
चंद्र व सौर वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने हेतु हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चंद्र मास की वृद्धि कर दी जाती है. इसी को अधिक, मल व पुरुषोत्तम मास कहा जाता है. सौर वर्ष का मान 365 दिनों से कुछ अधिक व चंद्र मास 354 दिनों का होता है. दोनों में करीब 11 दिनों के अंतर को समाप्त करने के लिए 32 माह में अधिक मास की योजना की गई है, जो पूर्णतः विज्ञान सम्मत भी है.

भगवान शालिग्राम की आराधना
अधिक मास में शुभ फल पाने के लिए भगवान शालिग्राम की पूजा विधि अनुसार की जाती है. पुरुषोत्तम मास के पहले दिन प्रातः काल नित्य नियम से निवृत हो श्वेत या पीले वस्त्र धारण कर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके किसी ताम्र पात्र में पुष्प बिछाकर शालिग्राम स्थापित किया जाता है. पश्चात शुद्धजल में गंगाजल मिलाकर विष्णु का ध्यान करते हुए स्नान कराया जाता है. इसके बाद शालिग्राम विग्रह पर चन्दन लगाकर तुलसी पत्र, सुगन्धित पुष्प, नैवेद्य, फल आदि अर्पित करते है. इसी के साथ श्रीमदभागवत कथा, गीता का पाठ, श्री विष्णु सहस्त्र्नाम का पाठ पुरुषोत्तम मास में करने से विशेष फल की प्राप्ति होने की मान्यता है.