अमित शाह के सहकारी विभाग देखने से शरद पवार की चिंता बढ़ी

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    सहकार में भ्रष्टाचार होने के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं. सहकारी बैंकों के डूबने की आशंका से वहां जमा खातेदारों की रकम की सुरक्षा को लेकर प्रश्नचिन्ह लगा रहता है. उनके संचालक मंडल के सदस्यों द्वारा अपने निकटवर्तियों को मोटी रकम कर्ज के रूप में देने और फिर वह कर्ज वसूल न हो पाने से बैंक डूबने की घटनाएं होती रही हैं. इसलिए सहकारी बैंकों के कामकाज की निगरानी की मांग की जाती है. पंजाब एंड महाराष्ट्र को-आपरेटिव बैंक (पीएमसी) डूबने से डिपॉजिटर्स को बड़ा झटका लगा था.

    केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को सहकारिता विभाग भी सौंपा गया है. इसे लेकर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोग देश में सहकारिता आंदोलन को खत्म करने की साजिश रच रहे हैं. ये बैंक अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं. महाराष्ट्र ने सहकारी बैंकों की स्थापना में बहुत बड़ा योगदान दिया है और समूचे देश के सहकारिता क्षेत्र में महाराष्ट्र का 60 फीसदी योगदान है. सहकारी बैंकों को निशाना बनाए जाने की बजाय उन्हें बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए. बैंकों को एनपीए से बचाने के लिए लोगों को लोन देते समय उनकी ऋण चुकाने की क्षमता की भी जांच की जानी चाहिए. पवार की आशंका इसलिए भी है क्योंकि महाराष्ट्र के अधिकांश सहकारी बैंकों पर नेताओं का कब्जा है और यदि केंद्र ने सख्ती दिखाई तो ऐसे सहकार सम्राट नेता मुसीबत में फंस सकते हैं.’’

    रिजर्व बैंक ने नियामक ढांचा बनाने को कहा

    इस दौरान शहरी सहकारी बैंकों को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक की विशेषज्ञ समिति ने नियामक ढांचा (रेगुलेटरी फ्रेमवर्क) तैयार करने तथा बड़े सहकारी बैंकों के शाखा विस्तार को लेकर उदारता दिखाने की बात कही है. 31 मार्च 2020 तक 1,539 शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी) थे जिनमें से अधिकांश देश के पश्चिमी क्षेत्र महाराष्ट्र व गुजरात में थे. यद्यपि डिपॉजिट और एडवांस के मामले में इनका हिस्सा कम था लेकिन समावेशी सेवा प्रदान करने में उनकी क्षमता व योगदान है. बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) कानून 2020 रिजर्व बैंक को सहकारी बैंकों पर नियामक निगरानी रखने का स्पष्ट अधिकार देता है.

    बड़े व छोटे सहकारी बैंकों की भूमिका

    विशेषज्ञ पैनल ने पाया है कि वित्तीय समावेश से 5,000 से 10,000 करोड़ रुपए के संसाधन वाले शहरी सहकारी बैंकों के विकास में तेजी आई है. 100 करोड़ रु. से कम के संसाधन वाले छोटे शहरी सहकारी बैंकों के लिए सिफारिश की गई है कि वे लघु क्षेत्र में नॉन बैंकिंग वित्तीय कंपनी के रूप में काम कर सकते हैं. ये छोटे सहकारी बैंक म्यूचुअल फंड, बीमा व पेंशन क्षेत्र में अपनी सेवा दे सकते हैं. जहां तक बड़े सहकारी बैंकों की बात है, उन्हें अधिक जटिल बैंकिंग सेवाएं देने तथा पेशेवर मैनेजमेंट के लिए तैयार किया जा सकता है.

    ईडी को लेकर आशंका

    शरद पवार ने कहा कि राज्य में अलग-अलग मामलों की जांच के लिए स्वतंत्र संस्थाएं व आयोग हैं. इसके बावजूद पिछले 2-3 वर्षों से कई मामलों की जांच का जिम्मा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को दिया जा रहा है. राज्य के 44 सहकारी बैंकों पर रिजर्व बैंक की निगरानी है तथा 13 जिला सहकारी बैंक संकट में हैं. राज्य सरकार ने आर्थिक स्थिति सुधारने का हवाला देकर कुछ सहकारी बैंकों के चुनाव टाल दिए हैं. 2013 के बाद से 385 शहरी सहकारी बैंकों के लाइसेंस रद्द किए जा चुके हैं या उनका मजबूत बैंकों में विलय किया गया है. 2004-05 से मार्च 2020 तक 136 शहरी सहकारी बैंकों का विलय किया गया है. महाराष्ट्र के 73 बैंकों का विलय हुआ. इन बैंकों के डिपॉजिट में 1 वर्ष में 6.1 प्रतिशत की गिरावट आई है. 47 बैंकों का नेटवर्थ निगेटिव है.