पालांदूर. वैश्विक महामारी कोरोना ने पिछले 18 महीनों में समूचे विश्व को ही झकझोर कर रख दिया. कोरोना महामारी के कारण लोगों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है. सरकार की अव्यवहारिक नीतियों और तुगलकी निर्णयों ने व्यापारियों की इस कदर दुर्दशा कर दी है कि कभी-भी विद्रोह या राजसत्ता के खिलाफ न बोलने वाला यह ‘वर्ग’ आज विद्रोह पर आमादा नजर आने लगा है.
देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार के क्षेत्र में अहम योगदान देने वाले कारोबार क्षेत्र व्यापारियों का इतना नुकसान हुआ है, जिसकी भरपाई को कई साल लग जाएंगे. कोरोना महामारी से लड़ने को न कोई तैयार है और कोई नहीं चाहता कि महामारी फिर फैले. लेकिन इसे रोकने के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य और प्रशासनिक तैयारी की बजाय सिर्फ बाजारों को बंद रखकर डंडे के बल पर नियंत्रित करने का प्रयास समुद्री रेत पर लकीर खींचने के जैसा ही है.
विभिन्न प्रकार के टैक्स का भुगतान है जरूरी
दूकानें, व्यापार भले ही बंद हो, मिनिमम यूनिट का उपयोग न हो लेकिन बिजली बिल पूरा भरना ही पड़ता है. विलंब होने पर जबरन लाइन काटने की धौंस, संपत्ति कर, पानी पट्टी, जीएसटी, व्यवसाय कर के साथ कोविड नियमों के उल्लंघन का हवाला देकर जुर्माना डंडे के बल पर वसूला जा रहा है.
व्यापारियों का कहना है कि सरकारी आदेश में सुबह 7 से दोपहर 4 बजे तक अर्थात लगभग 9 घंटे दूकानें खुली रखने की बात कही गयी है. किराना, दूध डेअरी जैसे कुछ क्षेत्र छोड़ दिए जाए तो कौन से बाजार में सुबह 7 बजे ग्राहक आते हैं. आमतौर सुबह 10 के बाद कुछ ग्राहक निकलते हैं. जबकि महिलाएं तो घर का कामकाज निपटाकर अर्थात दोपहर 12 बजे के बाद बाजार जा पाती है. दूसरी ओर दूकानदारों बैंकिंग या अन्य प्रशासकीय कार्य भी रहते है. ऐसे में हकीकत में व्यापार के लिए कुछ ही घंटे ही मिलते हैं. व्यापार करके खर्च निकालना भी मुश्किल है. इस ओर सरकार ने ध्यान देने की जरूरत है.