Matka, Summer

  • अब अक्षय तृतीया से उम्मीद

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भंडारा. गर्मियों में, मिट्टी के मटके में पानी रहता है. इन मटके को गरीबों के फ्रिज के रूप में जाना जाता है. लेकिन, कोरोना के कारण लगाए गए लाकडाउन के कारण इन मटके का बाजार धीमा हो गया है. जिससे कुम्हार समुदाय परेशानी में है.

कुम्हार समुदाय का पारंपारिक व्यवसाय मटकों का निर्माण रहा है. यह कुम्हार भूमिहीन एवं गरीबी में जीता रहा है. हाथ की उंगलियों की कारीगरी एवं मेहनत के दम पर मिट्टी से विभिन्न मटके एवं सुंदर मूर्तियां बनाते हैं एवं इसकी बिक्री से जीवनयापन करते हैं. लेकिन, कोरोना की वजह से कुम्हार समुदाय के पारंपारिक व्यवसाय में एक ठहराव आ गया है. 

गर्म पानी के पीने के प्रचार से मांग कम 

मिट्टी के मटके की आज भी मांग है. लेकिन कोरोना में गले को गर्म रखने के लिए गर्म पानी पीने, ठंडे पानी से बचने की सलाह कुम्हारों पर भारी पड़ी है. मटकों की बिक्री पर पिछले साल काफी गिरावट आयी थी. इस वर्ष पिछले साल की तुलना में कम बिक्री हुई है. 

नई पीढ़ी से दूर रखेंगे

यह समुदाय जिले में कई स्थानों पर बसा हुआ है. पालांदूर, किटाली, तिड्डी, मोहाडी, भंडारा, साकोली परिसर में कई पीढ़ियों से वह इस व्यवसाय में है. अतीत में, उनके माल की काफी मांग थी. मिट्टी को अच्छी तरह से गूंधकर पहियों पर मटके बनाए जाते थे.  समय के साथ सब कुछ बदल गया. अब जिस स्थिति से यह व्यवसाय गुजर रहा है. कुम्हार समुदाय अपने बच्चों को इस व्यवसाय से दूर रखना चाहते है. वर्ष 2020 के बाद 2021 भी बहुत बुरा साबित हुआ है. आमतौर पर गर्मियों की शुरुआत के साथ, मटके की मांग बढ़ जाती है. फ्रिज की तुलना में मटके में ठंडा हुआ पानी स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. संभावित मांग को देखते हुए  कुम्हार समुदाय ने तैयारी की थी.  लेकिन अब कोरोना मामले के बढने एवं लाकडाउन ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. उनके लिए ग्राहक ढूंढना मुश्किल कर दिया है. 

अक्षय तृतीया से उम्मीद

भारतीय संस्कृति की खूबसूरती है कि हर त्यौहार को प्रकृति एवं सामाजिक सौहार्द का ख्याल रखा गया है. इन्ही त्यौहारों की वजह से समाज के विभिन्न वर्गों को आमदनी का स्त्रोत प्राप्त होता है. भले गर्म पानी पीने के प्रचार के चक्कर में मटकों की मांग कम हो गयी. लेकिन कुम्हारों को उम्मीद है कि अक्षय तृतीया की पूजा की खातीर ही सही लाल मटकों की बिक्री हो सकेगी.