पालांदूर. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कारण स्कूल-कालेज बंद कर दिए गए हैं. कोरोना कब खत्म होगा, यह कोई बता नहीं सकता. कोरोना का गहरा असर वित्तीय लेन-देन पर पड़ा. सबसे ज्यादा असर शिक्षा व्यवस्था पर भी पड़ा. स्कूल-कॉलेज बंद होने के कारण छात्रों का भविष्य अंधकार में है. जबकि वित्तीय चुनौतियां बहुत बड़ी हैं. शिक्षा प्रणाली स्वयं ऑनलाइन हो गई है.
ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में किसानों और गरीबों के बच्चों को तकनीक के अभाव में शिक्षा से वंचित होना पड़ रहा है. कई बच्चों के पास मोबाइल नहीं है. सरकार को कुछ भी करना चाहिए लेकिन ऑनलाइन शिक्षा के लिए बच्चों को जहां कहीं भी जरूरत हो उन्हें ऑनलाइन मोबाइल या अन्य कोई साधन उपलब्ध कराना चाहिए.
तीसरी लहर का खतरा कायम
कोरोना संकट ने शैक्षणिक रूप से छात्रों को भी संकट में डाल दिया है. कक्षा पहली से बारहवीं तक दोनों परीक्षाएं कोरोना के संकट के कारण आयोजित नहीं की जा सकीं. पहली लहर का सामना करने के बाद कोरोना की दूसरी लहर आई. शिक्षा व्यवस्था ऑफलाइन की बजाय ऑनलाइन ही रखनी पड़ी अभी-भी तीसरी लहर की आशंका है. कोरोना कब जाएगा कहना मुश्किल है. दूसरी लहर ने भी बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित किया. मरने वालों की संख्या लाखों में आंकी गई थी. कुल मिलाकर भय और संकट नजर आ रहा है.
स्कूल-कॉलेज खुल भी जाएं तो माता-पिता में बच्चों को भेजने की हिम्मत नहीं होती. पिछले एक साल का कोर्स ऑनलाइन पढ़ाया गया था. इस प्रणाली में खामियां हैं और राज्य में ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों को भी उस शिक्षा का लाभ नहीं मिला. पहला है नियमित इंटरनेट सुविधाओं की कमी और विभिन्न कंपनियों के टावरों का न होना, जो अपील के तौर पर रेंज के सवाल को उठाता है. पूंजीपतियों के बच्चों के पास सबसे अधिक ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने के लिए मोबाइल और लैपटॉप होना स्वाभाविक है, लेकिन गरीब, किसान, मजदूर, भूमिहीन, गरीब और वंचितों के बच्चे 75 प्रतिशत शिक्षा से वंचित हैं.
शिक्षा क्षेत्र पर जोर दें सरकार
राज्य सरकार अवांछित स्थानों पर करोड़ों रुपये खर्च करती है. लेकिन ऐसे संकट में शिक्षा व्यवस्था पर ज्यादा खर्च क्यों नहीं किया जाता? ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों मजदूरों वंचितों द्वारा यह सवाल पूछा जा रहा है. शैक्षणिक गुणवत्ता की पृष्ठभूमि में तीसरी लहर की संभावना को ध्यान में रखते हुए सभी स्तरों पर लड़कों और लड़कियों के लिए ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध होनी चाहिए. फिलहाल सरकार के शिक्षा विभाग ने ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था शुरू की है और शिक्षक व प्राध्यापक कॉलेज आकर ऑनलाइन पढ़ाने लगे हैं.
हालांकि, यह व्यवस्था पूंजीवादी बच्चों के लिए उपयोगी होगी, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा प्रणाली में गरीब बच्चे हैं ,जो आर्थिक तंगी के कारण ऑनलाइन तक नहीं पहुंच पाते हैं. इस सवाल पर फिलहाल किसी का ध्यान नहीं जा रहा है, लेकिन निश्चित तौर पर जनप्रतिनिधियों को भी सामाजिक जागरूकता के साथ आवाज उठानी चाहिए. कक्षा पहली से लेकर कक्षा बारहवीं तक हर दिन स्कूल और कॉलेज से कितने बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं और कितने ऑफलाइन इसकी जानकारी ली जाती है उसमें भी यह दिखाई देता है कि 100 में से 25% ही लड़के ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं.