Crop Burn in Farm

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पालांदूर. मेहनत मजदूरी कर किसान ने धान फसल को पाल पोसकर बड़ा किया. फसल अंतिम चरण में पहुंची की फसल पर कीटों ने हमला किया और आंखों के सामने धान की फसल बर्बाद हो रही थी. पहले से दूसरों का उधार का बोज था. नए सिरे से दवाइयों का भारी खर्च का बोझ झेलने की क्षमता किसान खो चुका था. किसान ने आंसू से भरी आंखों एवं भारी मन से अपनी फसल को आग के हवाले कर दिया. मन को व्यथित करती यह घटना लाखनी तहसील के पालांदूर की है. पीड़ित किसान का नाम विनोद तलमले है.

फसल पर कीट का हमला

जिले में 70 प्रतिशत किसान ऐसे हैं,  जिनके पास में खेती के अतिरिक्त उत्पादन की कोई अन्य सुविधा नहीं है. यह किसान परिवार खेती पर निर्भर है. खेती को अपना धर्म समझ रहे हैं. नई तकनीक का उपयोग करके पुश्तैनी भूमि जोत रहे हैं. किसान विनोद तलमले कर्मठ किसान हैं, लेकिन प्रकृति की लीला के सामने कमजोर पड़ गया. बुआई से लेकर रोपाई तक, प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ मजदूरों की कमी का सामना करते हुए रोपाई की गई. 15 से 20 किमी. दूर से मजदूरों को अतिरिक्त मजदूरी देकर रोपाई की. असिंचित खेती रहने से खेती का उचित नियोजन किया.

कृषि विभाग की योजना के अनुसार खाद की मात्रा दी. लागत की परवाह किए बगैर फसल की अच्छी देखभाल की, लेकिन नियमित रूप से बेमौसम बारिश के कारण धान की फसल पर कीटों का खतरा था. जिसके कारण आगे की कटाई व चुनाई की लागत को बचाया जा सके. इस पसोपेश में परेशान किसान ने दिन काटे. फिर अचानक उसने बड़ा फैसला किया और एक एकड़ की धान की फसल में आग लगा दी.

धान के लिए भी बीमा हो

पीड़ित किसान विनोद तलमले ने कहा कि मेरे पास पुश्तैनी 10 एकड़ असिंचित खेती है. खेती के पारंपरिक अभ्यास व कृषि मित्र, अधिकारियों के मार्गदर्शन में खेती करता हूं. एक अच्छी कंपनी से बीज भी खरीदे व उन्हें पूरी तरह से लगाया, लेकिन इस वर्ष कीटों एवं प्राकृतिक आपदाओं के कारण खेती घाटे में रही. पिछले वर्ष का उत्पादन ठीक था. लेकिन इस वर्ष 10 एकड़ में से एक एकड़ तक की धान की फसल को आग के हवाले करनी पड़ी. तुड़तुड़ा ने शेष 9 एकड़ में भी लगभग नुकसान पहुंचाया है. इससे प्रति एकड़ 6 से 8 क्विंटल अधिकतम पैदावार होने की संभावना है.

सरकारी दर और लागत से उत्पन्न राजस्व पर विचार करें तो प्रति एकड़ लगभग 7 से 8 हजार रुपए का नुकसान दिख रहा है. आशा है कि ऐसे में संकट ग्रस्त किसान द्वारा निकाले गए फसल बीमा का लाभ होना चाहिए. लेकिन फसल बीमा की नीति में यह कहा जा रहा है कि तुड़तुड़ा का नुकसान शासन में नहीं है. इसलिए सरकार एवं प्रशासन ने बीमा की नीति में बदलाव करते हुए किसी भी कारण से नुकसान पर धान की फसल के लिए भी बीमा करवाना चाहिए.