Matka, Summer

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    पालांदूर (सं). इस साल ऐन गर्मी के मौसम में तालाबंदी के कारण कुम्हारों के मिट्टी के मटके माटी मोल हो गए हैं. लाकडाउन डेढ़ महीने बाद खुला, इस बीच, बारिश शुरू होने के कारण खरीदारी के लिए ग्राहक नहीं आ रहे हैं, इसलिए कड़ी मेहनत और वित्तीय निवेश से बनाए गए हजारों रुपये के सामान को घर पर ही रखना होगा, वह मिट्टी के मटके टूट-फूट हो जाने की संभावना से नुकसान हो सकता है.  

    मार्च से मई तक गर्मी तीव्र होती है, इसलिए ठंडे पानी के लिए मिट्टी के मटके का उपयोग किया जाता है. मिट्टी के  मटके को गरीबों की फ्रिज भी कहा जाता है. यह मिट्टी के मटके साप्ताहिक बाजारों में ले जाकर बेचे जाते हैं उसी तरह गांव-गांव जाकर भी बेचे जाते हैं . कोरोना संक्रमण कम होने के कारण लाकडाउन में शिथिलता दी गई, लेकिन गर्मी का मौसम चला गया और बारिश का मौसम आने वाला है, इसलिए ग्राहक मिट्टी के मटके लेने के लिए नहीं आ रहे हैं. इस कारण बनाए हुए मिट्टी के मटके घरों में ही रखने पर कुंभारो को रखना पड़ रहा है.  

    कुम्हारों को घड़ा बनाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. मिट्टी ख़रीदना, गोले बनाना, नर्म मिट्टी के गोले को मटके में आकार देना, मटके तैयार हो जाने के बाद, भट्टी में पकाना, यह काम अकेले नहीं किया जाता है. पूरा परिवार इस काम में लगा हुआ रहता है, क्योंकि बाहर के लोगों को काम पर रखना संभव नहीं है, उसके बाद इसे बाजार और गांव-गांव में बेचना पड़ता है. उसका पर्याप्त मूल्य नहीं मिल रहा है. बिना बिके माल को स्टोर करने पर कई  मटके फूट जाते हैं, इन्हें साल भर रखने से इनका रंग उड़ जाता है, इससे दोहरा नुकसान होता है. 

    पिछले साल भी कोरोना संक्रमण ग्रीष्मकाल में ही आया था और इस साल भी कोरोना ग्रीष्मकाल में आने के कारण मिट्टी के मटके की मांग कम है, कोरोना की वजह से वित्तीय संकट आ गया हैं.

    – यादोराव पाथरे.