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  • बुआई कार्य के समय वर्षा नहीं होने से किसान परेशान

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भंडारा. मुख्य रूप से धान उत्पादक भंडारा जिले के किसानों को पिछले 2 दशकों से मानसून काल में अवर्षा के संकट से जूझना पड़ रहा है. पहले किसान मानसूनी वर्षा का इंतजार करते हैं, फिर मानसूनी वर्षा का आगमन होता है. वर्षा शुरू होते ही किसान बुआई का काम पूरा करते हैं और बुआई होते ही बरखा रानी गायब हो जाती है. जिससे खेतों में लगी रोप पानी के अभाव पीले पड़ जाते हैं और ऐसी हालत में किसानों को फिर से बुआई करनी पड़ती है. भंडारा जिला व उसके अंतर्गत तहसीलों में हालांकि मानसूनी वर्षा शुरुआती दौर में काफी अच्छी रही, किंतु अचानक वर्षा के विराम लेने के कारण किसानों के सामने फिर से वुआई का संकट उत्पन्न हो गया है.

हर वर्ष निर्माण होते है यह हालात
भंडारा के धान उत्पादकों समेत अन्य कृषि सामग्री के उत्पादकों को मौसम की मार का सामना पिछले कई वर्षों से करना पड़ता है. कभी बेमौसम वर्षा के कारण फसल की बर्बादी तो कभी जल के अभाव में फसलों की बर्बादी, कभी गोदाम के अभाव में धान की बर्बादी तो कभी बोगस बीजों के काऱण उत्पादन न होने का खतरा तो कभी बाढ़, तूफान के कारण नुकसान होता है. किसान को वर्षा तथा सरकार दोनों का साथ नहीं मिल रहा है. वर्षा का मिज़ाज़ कब बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. मानसूनी वर्षा की नाराजगी का अंतहीन सिलसिला साल दर साल बढ़ता जा रहा है. वर्षा न जाने क्यों किसानों से हर साल नाराज रहती है. साल दर साल मानसूनी वर्षा जरूरत के समय नहीं होने के काऱण किसानों को अपनी फसलों से हाथ धोना पड़ रहा है.

धान के मुख्य उत्पादक किसानों को खेत से लेकर मंत्रालय तक संघर्ष करना पड़ रहा है. 

किसानों को हमेशा झेलनी पड़ती है परेशानी
बोगस बीजों के काऱण भी बहुत से किसानों को नुकसान सहन करना पड़ा है. इसके अलावा सहकारी तथा राष्ट्रीय बैंकों से मिलने वाले कर्ज के लिए कई बार बैकों के चक्कर लगाना इन किसानों के जीवन की मानो दिनचर्या ही बन चुकी है. किसानों के लिए खेत में लगी फसलों की सुरक्षा भी किसी चुनौती से कम नहीं है. ऐसे में अगर यह कहा जाए कि जिले के किसान चारों ओर से परेशानियों से घिरे हुए हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा. विकास के नाम पर हो रही वृक्षों की कटाई की मानसूनी वर्षा का ग्राफ दिनों दिन गिरता जा रहा है. इसलिए अच्छी वर्षा के लिए वृक्षों की कटाई पर तुरंत रोक लगाना जरूरी हो गया है.