देश प्रेम की अलख जगाते जगन्नाथ गोल्लीवार गुरुजी

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कुंभली. देश को आजादी दिलाने में कुंभली के युवाओं का भी अहम योगदान रहा है. स्थायी शिक्षा समिति के पहले सभापति होने का सम्मान प्राप्त करने वाले कांग्रेस के नेता स्व. जगन्नाथ गोल्लीवार गुरुजी ने उस दौर में अपने आसपास के क्षेत्र में देश प्रेम की ऐसी अलख जगायी, जो आज भी वहां के लोगों का मान-सम्मान बढ़ा रही है. सानगड़ी में 18 सितंबर, 1906 को जग्गनाथ नागो गोल्लीवार गुरुजी का कार्य आज भी न केवल सानगडी अपितु पूरे राज्य की जनता के लिए प्ररेणादायी बना हुआ है. 

ब्रिटिश प्रशासन के अत्याचार से परेशान होकर गोल्लीवार ने शिक्षक का काम छोड़ दिया और आजादी के लिए जारी जंग में योगदान दे रहे नेताओं से प्रेरणा लेकर 1932 में कांग्रेस में प्रवेश किया और शिक्षा क्षेत्र छोड़कर राजनीति में चले गए. आजादी की जंग में जहां एक ओर युवकों में  देशप्रेम की अटूट भावना दिखायी दे रही थी, वहीं दूसरी ओर सामान्य जनता के समक्ष भुखमरी का संकट उत्पन्न हो गया था. वर्ष 1942 में गुरूजी ने अपने सैकड़ो कार्यकर्ताओं के साथ सानगडी की प्रगणे राइस मिल लूट कर गरीबों के बीच धान का वितरण किया. इसके बाद से तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और ब्रिटिश हुकुमत के विरोध का पहला नाम बन गए, यानि सानगडी में आजादी के लिए जितनी भी जंग लड़ी गई, उसकी अगुवाई गुरुजी ने ही की. 

सानगड़ी के लोगों ने भारत छोड़ो आंदोलन में बलिदान देकर देश में सानगड़ी का गौरव बढ़ाया. 14 अगस्त, 1947 को मध्य रात्रि में गोल्लीवार गुरूजी ने अपने कार्यकर्ताओं के साथ सानगडी के सहानगड किले पर तिरंगा फहराया. सादा जीवन तथा कुशल नेतृत्व वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने साहस की अनेत कथाएं सानगड़ी से जुड़ी हुई हैं. साकोली में एक कार्यक्रम में शरीक होने गए गुरुजी के भोजन में किसी ने विष मिला दिया, उन्हें गंभीर स्थिति में नागपुर मेडिकल कॉलेज में ले जाया गया, जहां उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई. सानगडी के आजाद चौक में उनकी पूर्णाकृति पुतला स्थापित किया गया है, जो आजादी की लड़ाई में सानगड़ी के योगदान का प्रतीक बना हुआ है.