Govari Samaj

  • गोवारी समाज नेताओं ने लगाया आरोप
  • पदाधिकारी कर रहे है फैसले की समीक्षा

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भंडारा. सरकारी सुविधाओं से वंचित एवं गरीबी की दल-दल में जी रहे गोवारी समाज को HC के 14 अगस्त 2018 के फैसले से आशा जगी थी. इसके बाद जारी हुए जाति प्रमाणपत्र की वजह से सरकारी नौकरियां भी मिली. समाज की उन्नति की उम्मीद की जा रही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने समाज की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. महाआघाड़ी सरकार के वकील द्वारा पेश याचिका की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने विरोध में फैसला दिए जाने का आरोप आदिवासी गोंड-गोवरी सेवा मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर. झेड. दुधकुंवर ने लगाया है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश की समीक्षा एवं आगामी रणनीति पर चर्चा करने के लिए संगठन की शनिवार को आपातकालीन बैठक बुलाई गयी. पदाधिकारियों ने अलग-अलग स्थानों पर रह रहे प्रमुख पदाधिकारियों से फोन से चर्चा की. यद्यपि फैसले के बाद समाज की आगे की दिशा क्या होगी, इस पर जल्द ही अंतिम फैसला लिए जाने की जानकारी आर. झेड. दुधकुंवर ने दी.

समाज पर किया अन्याय

दुधकुंवर ने कहा कि हाइकोर्ट के समक्ष जब मामला था, उसके सामने सभी सबूत रखे गए थे.दस्जावेज पेश किए गए थे. उसी आधार पर हाईकोर्ट ने गोवारी समाज के हित में फैसला सुनाया था. लेकिन सभी की मेहनत एवं उम्मीदों पर पानी फेर गया है. सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई भी सकारात्मक थी. न्याय की मांग के लिए शहीद हुए 114 को श्रद्धांजलि मिलने की उम्मीद थी. लेकिन राज्य सरकार ने पक्ष रखा कि गोवारी आदिवासी नहीं है, इससे पूरे मामले की दिशा ही बदली थी. राज्य सरकार द्वारा गोवारी समाज पर अन्याय किया गया है.

15 लाख है जनसंख्या

आदिवासी गोंड-गोवारी समाज संगठन सह सचिव साकोली निवासी हेमराज नेवारे ने बताया कि गोवारी समाज यह मुख्य रूप से विदर्भ में है. गोंड-गोवारी यह जाति ही नहीं है. बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त गोंड-गोवारी शब्द को ही जाति समझ कर उल्लेख किया गया. इस प्रिंटींग मिस्टेक ने गोवारी समाज के साथ अन्याय किया. आश्चर्य है कि तमाम सबूत एवं प्रत्यक्ष प्रमाण पेश करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने विरोधी फैसला दिया है. इससे 15 लाख लोग प्रभावित होंगे.

समीक्षा के लिए जुटे पदाधिकारी

गोंड-गोवारी आदिवासी नहीं है, अनुसूचित जनजाति के गोंड-गोवारी जनजाति के नाम पर जाति प्रमाण प्रत्र प्राप्त करने के लिए पात्र होने के किसी कारण का उल्लेख हाईकोर्ट में नहीं किया गया. इस अनुसूचित जनजाति  अजज की सूची में उल्लेखित गोंड-गोवारी के रूप में गोवारी जाति को आदिवासी घोषित करने के 14 अगस्त 2018 को दिए गए निर्णय को गलत करार देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया. इस फैसले से गोवारी समाज आहत है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा करते हुए आगे की लड़ाई लड़ने के लिए समाज के नेता एकजुट हो रहे है.

हुई आपातकालिन बैठक

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा एवं चर्चा के लिए भंडारा में आपातकालीन बैठक ली गयी. जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष दूधकुंवर के अलावा जिलाध्यक्ष युवराज नेवारे, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नामदेवराव ठाकरे, सहसचिव हेमराज नेवारे, विष्णु शहारे, हेमराज राऊत, ज्ञानेश्वर वाघाडे, गोवर्धन कालसर्पे, सुधांशु नेवारे, जर्नादल आंबेडारे, शेषराव चामलाटे, दूधराम मानकर, रमेश राऊत, सुनिल नेवारे, चेतन वाघाडे, श्रीकृष्णा ठाकरे एवं अन्य उपस्थित थे.