भंडारा. गांव में पुराने दौर में हरे भरे वृक्ष छांव देकर जहां एक ओर लोगों को राहत प्रदान करते थे, वहीं दूसरी ओर आम के जैसे वृक्ष अपने मीठे फलों से लोगों को आनंज प्रदान करते थे. फलदार वृक्षों को बचाने के लिए न केवल सरकार अपितु सामाजिक संगठन भी आगे आते थे, लेकिन अब वह दौर नहीं रहा, अब वृक्षों को बचाने की जगह उस पर कुल्हाडी चलायी जा रही है.
प्राचीन काल में आम का वृक्ष लगाना बहुत ही पुष्य की बात थी, दादा द्वारा लगाए गए आम के वृक्ष से उनका नाती आम खाकर बड़ा प्रसन्न होता था, एक दौर ऐसा भी गुजरा है कि देसी आम के वृक्ष की आयु 250 वर्ष होती थी, लेकिन अब वह स्थिति नहीं रही. आम के वृक्ष से किसानों की आय. अच्छी होती है, अगर ऱल लग गए तो उसकी मुंहमांगी कीमत भी मिलती है. बदलते दौर में विकास के नाम वृक्षों की कटाई का दौर चल निकला है और अन्य वृक्षों की तहर आम के वृक्षों पर कुल्हाडी चलाकर उसे कटा जा रहा है.