भंडारा. खरीफ की सभी फसलों पर कीड़ों ने डेरा जमाया हुआ है. धान, सोयाबीन, मिर्ची, कपास, तुअर इन फसलों के साथ-साथ अन्य फसलें भी कीड़ों का आहार बन गईं. मंहगी औषधि खरीद कर उसका फसलों पर छिड़काव करने वाले मजदूर को हर दिन 400 से 500 रूपए देने पड़ रहे हैं, बावजूद इसके कितनी फस बचेगी और कितनी फसल जाएगी, इस बात से किसानों की चिंता बढ़ गई है. रासायनिक खाद की तुलना में औषधि पर अधिक खर्च होने से किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी व्यापक असर पड़ रही है.
जिले में सबसे ज्यादा उत्पादन धान का होता है. धान उत्पादक किसानों को यही चिंता रहती है कि उन्हें हर बार ज्यादा से ज्यादा फसल मिले, पर कभी आवश्यकता से पानी तो कभी कीड़ों के कारण किसानों को अपनी फसल से हाथ धोना पड़ता है. धान के अलावा अन्य फसलों के के साथ भी यही स्थिति रहती है. पेराई से लेकर कटाई तक किसान किसी न किसी तरह की परेशानी से जूझता ही रहता है. धान की फसल के लिए किसानों को बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ता है.
वर्तमान दौर में खेत मजदूरों के भाव भी बढ़े हुए हैं. कृषि केंद्र संचालक उधार में कीटनाशक औषधि नहीं देते और किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उन्हें साहुकार के पास जाना पड़ता है. साहुकार कर्ज तो देता है, लेकिन व्याज भी अच्छा- खासा लेता है. नगदी देने के बाद भी किसानों को मंहगी दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं, इस वजह से खरीफ की फसल का उत्पादन खर्च भी पहले के मुकाबले किसानों को ज्यादा देना पड़ रहा है.