Silence at Washim bus stand due to lack of ST bus ferries

Loading

भंडारा. कोरोना महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के दौरान सब कुछ बंद के वक्त शहर के लोगों के जिस तरह का समय व्यतीत किया था. उसमें आंशिक परिवर्तन ही हुआ है. मार्च माह के अंतिम छह दिन. अप्रैल, मई, जून तथा जुलाई के पूरेदिन और अगस्त माह के 6 दिन को मिलाकर 136 दिन व्यतीत हो गए हैं, लेकिन अभी-भी कोरोना का खतरा टला नहीं है. कोरोना के संकट काल के बीच पेट्रोल, डीजल के बढ़े भाव ने लोगों की कमर ही तोड़कर रख दी है. पेट्रोल, डीजल के भाव बढ़ने से वाहनचालकों का बजट गडबड़या तो दूसरी ओर गरीब लोगों का वाहन कहे जाने वाली एसटी बस तथा रेलगाडी के बंद होने के लोगों का सफर अभी भी मुश्किल बना हुआ है. 

कोरोना विषाणु का फैलाव रोकने के लिए सरकारी स्तर पर अनेक योजनाओं को अमल में लाया जा रहा है. बिना कामकाज जनता अपना पेट कैसे भरेगी, यह बहुत ही अहम सवाल था. इसलिए सरकार ने मुंह पर मॉस्क तथा सामाजिक दूरी का पालन का नियम बनाया. जहां नियमों का पालन किया गया, वहां पर कोरोना कंट्रोल में है, ऐसा कहा जा रहा है, लेकिन जहां कोरोना का कहर अभी भी बाकी है, वहां के लोग को अभी भी घर में ही रहने की सलाह दी जा रही है. 

मुश्किल सफर को आसान बनाने के प्रयास तो जारी है, लेकिन पेट्रोल, डीजल की बढ़ी हुई कीमतें लोगों के जीवन को परेशानी में डाल रही है. कोरोना फैलाव के आरंभिक दिनों में जितनी दहशत थी, अब वह भले ही न हो, लेकिन कोरोना के प्रति भय अभी भी बरकरार है. सैनेटाइजर से हाथ धोने, सुबह शाम स्नान करने को भी कोरोना से बचाव के प्रमुख कारणों में से एक बताया गया है, ऐसे में लोगों के बीच से यह सवाल लगातार बढ़ाया जा रहा है कि कब जीवन पटरी पर लौटेगा. कब कोरोना महामारी दम तोड़ेंगी. साइकिल से आफिस जाने के दिन अब लद गए. साइकिल अब कार्यालय जाने के काम में नही आती, यह मार्निंग वॉक का एक साधम मात्र बनकर रह गई है.

गरीबों के जीवन का मुख्य हिस्सा साइकिल से आफिस जाने वाले लोगों की संख्या 1 प्रतिशत भी होगी, इसको लेकर कोई दावा नहीं कर सकता. गरीबों का वाहन अब खेल के मैदान या मार्निग वॉक के उपयोग से ज्यादा नहीं रह गया है, साइकिल सेहत बनाने के लिए उपयोग लाया जाने वाला साधन जब तक बना हुआ है, जब तक इसका अस्तित्व बना रहेगा. भंडारा शहर भी इन दिनों साइकिल विहीन शहर के रूप में दर्ज होने की ओर अग्रसर होता प्रतीत हो रहा है. छठवीं, सातवीं कक्षा के विद्यार्थी भी स्कूटर का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं, ऐसे में साइकिल की उपयोगिता कम होती जा रही है. पैदल चलने वालों का प्रतिशत नहीं के बराबर है.