Ayurvedic treatment
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भंडारा (का). वैदिककालीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की ओर से लोगों का ध्यान एक बार फिर बढ़ने लगा है. ब्रिटिश से पहले भारत में आयुर्वेदिक उपचार पद्धति ही अस्तित्व में थी. कालांतर में आयुर्वेदिक उपचार पद्धति की जगह ऐलोपैथी चिकित्सा पद्धति इसलिए अस्तित्व में आयी क्योंकि इस पद्धति में परिणाम आयुर्वेदिक पद्धति की तुलना में बहुत तेजगति से सामने आता था. हालांकि एलोपैथी को शुरूआती दौर में लोगों द्वारा शीघ्र में अस्तित्व में नहीं लाया गया, क्योंकि एलोपैथी का साइड इफैक्ट होता है.

कोरोना काल में आयुर्वेदिक दवाओं के प्रति लोगों रुझान फिर एर बार बढ़ा है. इसके दो कारण बताएं जा रहे हैं, पहला कारण यह कि कोरोना से बचाव के लिए कोई दवा तक नहीं आई है, इससे बचाव के लिए कोई टीका भी उपलब्ध नहीं है और दूसरा कारण यह है कि लोग डॉक्टर के पास इसलिए नहीं जाने से कतरा रहे हैं, क्योंकि अब टेस्ट करवाने के लिए आने वाले हर किसी को डॉक्टर कोरोना का मरीज बता रहे हैं.

आयुर्वेद की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए शहर में आयुर्वेद दवाओं की दुकानों पर ग्राहकों की भीड़ पहले की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़ गया है. पक्षाघात, हड्डी का दुखना, भंगदर जैसी बीमारियों का इलाज आयुर्वेदिक दावाओं से निश्चित रूप से होता है. पंचकर्म, स्नेहल तथा तर्पण जैसी उपचार पद्धति भी आयुर्वेद के तहत ही आती है.

कुल मिलाकर कोरोना के कहर के बीच आयुर्वेदिक दवाओं की बढ़ती मांग के कारण एब एलोपैथी दवाएं मरीजों की पहली पसंद नहीं रही. जहां तक खरीदी की सवाल है तो एलोपैथी आज भी सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा है, लेकिन कोरोना महामारी से बचने के घरेलु इलाज में आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ गया है.

एलोपैथी चिकित्सा पद्धति बहुत महंगी है, जिसका खर्च अब अधिकांश परिवार वहन करने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए अब लोगों का रूझान आयुर्वेदिक इलाज पद्धति की ओर ज्यादा बढ़ रहा है.