प्रतीकात्मक तस्वीर
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    भंडारा. वर्षाकाल में केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी सर्पदंश की घटनाएं होती हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में तो हर दिन सर्पदंश की घटनाएं होती हैं, इस सच को जानने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों में सर्पदंश से बचाव की दवा न होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है.

    किसानों तथा खेत मजदूरों को सर्पदंश का सबसे ज्यादा खतरा होता है, यह जानते हुए भी किसी भी स्तर के लोग स्वास्थ्य केंद्रों में सर्पदंश की औषधि के उपलब्ध न होने के मुद्दे पर कोई आवाज नहीं उठा रहे हैं. पशुपालकों तथा जानवरों को भी सर्पदंश का सामना करना पड़ता है.

    अगर ग्रामीण क्षेत्रों में सर्पदंश की कोई घटना होती है तो मरीज को इस आशा से स्वास्थ्य केंद्र में उपचार के लिए ले जाया जाता है कि वहां पर इलाज के बाद सर्पदंश के शिकार व्यक्ति की जान बचायी जा सकेगी, लेकिन जब स्वास्थ्य केंद्र में जाने के बाद यह सच सामने आता है कि स्वास्थ्य केंद्र में सर्पदंश के बचाव की कोई दवा ही उपलब्ध नहीं है तो उन लोगों के हौसले पस्त हो जाते हैं जो अपने किसी प्रिय व्यक्ति को इस उम्मीद से वहां लाते हैं कि उसकी जान बच जाएगी.

    लेकिन स्वास्थ्य केंद्र ही जब मरीज को बचाने में अपनी विवशता दर्शाने लगता है तो लोग यही कहते नज़र आते हैं कि जब दवा ही नहीं तो फिर अस्पताल काहे का. ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रो की कहानी बड़ी ही भयावह है. किसी अस्पताल में डाक्टरो का अभाव है तो किसी भी इतनी गंदगी है कि जो मरीज नहीं है, वह भी मरीज हो जाए और जब मरीजों को यह बताया जाता है कि जिस दवा की तलाश में वह स्वास्थ्य केंद्र में आया है, वह दवा तो वहां है ही नहीं और दवा न होने की स्थिति में मरीज की मौत हो जाती है.

    मानसून काल में ग्रामीण क्षेत्र में सर्पदंश की घटनाएं हर साल होती हैं, इस सच को जानने के बाद भी अगर स्वास्थ्य केंद्रो में सर्पदंश की स्थिति में मरीज को बचाने की दवा न हो तो इसे क्या समझा जाए, क्या ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों को इस बात की जानकारी नहीं है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सर्पदंश की कितनी घटनाएं होती हैं. पूरा सच जानने के बाद भी अगर स्वास्थ्य केंद्रों में सर्पदंश के बाद लगने वाली दवा ही नहीं है तो फिर यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों को जनता के जान से कोई लेना-देना नहीं है.

    मानसून काल में अपने बिलों से निकलकर खेतों-खलिहानों, घरों, टीलों समेत अन्य स्थानों पर सांपों का विचरण बढ़ जाता है. अगर किसी को सांप ने डस लिया तो उसे बचाने के पूरे प्रयास इसलिए विफल हो जाते हैं, क्योंकि जिन स्वास्थ्य केंद्र के बदौलत गांव के लोग सर्पदंश से प्रभावित मरीज को बचाने की बात की जाती है, उन केंद्रों में ही सर्पदंश से बचाव की दवा होती ही नहीं. भंडारा जिले का अधिकांश हिस्सा वन आच्छादित है. कुछ क्षेत्र पहाडी भी है, ऐसे स्थानों पर वर्षाकाल में सर्पदंश की घटनाएं बहुत बढ़ जाती हैं. इसके अलावा खेतो- खलियानों में भी मानसून काल में सर्पदंश की घटनाएं ज्यादा होने की आशंका सदैव बनी रहती हैं.

    ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य करते समय किसानों तथा खेत मजदूरों को सांप के काटने की आशंका सदैव बनी रहती है, ऐसे में स्वास्थ्य केंद्रों में सर्पदंश की स्थिति में पीडित व्यक्ति की उपचार करके बचाने का अवसर उस वक्त नाकाम हो जाता है, जब इस बात का पता चलता है कि जिस आस से मरीज को अस्पताल तक लाया जाता है, वह मकसद यह सनते ही अधूरा रह जाता है कि अस्पताल में तो सर्पदंश से बचाव की औषधि ही नहीं हैं. ग्रामीण क्षेत्रों तथा प्राथमिक उपचार केंद्रों की बदत्तर होती जा रही है स्थिति के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए, इस पर भी गहन चिंतन करना जरूरी है.