350 workers dispatched by 13 ST buses

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लाखनी (सं). कोरोना के कारण हाथ से काम चले जाने के बाद जिन युवकों तथा मजदूरों ने यह सोचा था कि उन्हें अपने गांव वापस लौटने पर रोजगार मिलेगा, लेकिन उनकी यह सोच गलत निकली, इन युवकों की हालत अपने गांव पहुंचने के बाद भी वैसे ही है, जैसी वहां थी. जहां वे कोरोना कहर से पहले काम करते थे. अपने गांव पहुंचने का सुकून इन युवकों तथा मजदूरों को जरूर है लेकिन हाथ में काम न होने का दुख उन्हें सताने लगा है और ये लोग अब कह रहे हैं कि सरकारी आश्रय स्थल पर रहते तो दो वक्त खाने को मिलता, यहां तो काम न हीं तो खाना नहीं जैसी हालत हो गई है, ऐसा यहां को बेरोजगार युवकों तथा मजदूरों का कहना है.

भंडारा की लाखनी तहसील में खेत में गांव करने वाले 12 हजार मजदूर हैं. कुछ परिवार ने महानगर से, देश के विभन्नि क्षेत्रों तथा विदेश से आए लोगों का कोरोना के कारण रोजगार हाथ से चला गया. लाखनी में विदेश से बहुत से लोग आए हैं. तहसील के नागरिक मुख्यतर्‍ कृषि पर आधारित व्यवसाय से जुड़े हैं. कृषि कार्य पूरा होने के बाद खेत मजदूर, युवक, किसान रोजगार के लिए एक शहर से दूसरी शहर में दौड़ लगाते हैं. एम. ए., एम.बी.ए., इंजीनियरिंग, मेडिकल समेत अन्य डग्रियिां लेकर घूम रही पीढ़ी को रोजगार के लिए इधर- उध्रर भटकना पड़ा पड़े, यह एक स्वस्थ्य परंपरा नहीं है. जो मजदूर काम छोड़कर अपने गांव वापस लौटे हैं, उनमें से कुछ लोग ही ऐसे हैं, जो अपने गांव में खेती करने के इच्छुक हैं, ऐसे में उनके समक्ष एक बार फिर रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया है. रोजगार न होने के कारण अपना तथा अपने परिजनो का पेट कैसे पाले, यह एक बहुत बड़ा सवाल उनके समक्ष पैदा हो गया है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनर्भिर भारत योजना के तहत जो लोग अपने गांव वापस लौटें हैं, उनको फिर अपना गांव छोड़कर किसी शहरी क्षेत्र या अपने राज्य से दूसरे राज्य में काम की तलाश में न जाना पड़े, यह देखना ग्रामपंचायत तथा पंचायत समिति प्रसासन पर नर्भिर करता है. आत्मनर्भिक भारत योनजा के तहत गांव में अशोक लेलैंड, राजेगांव एमआईडीसी परिसर में स्थानीय युवकों को रोजगार के अवसर क्यों नहीं प्रदान किये जाते हैं. लाखनी में पूरी तामझाम करके भेल परियोजना शुरु करने की बात रही गई लेकिन सात वर्ष व्यतीत हो जाने क बाद भी इस परियोजना के काम में गति नहीं आ सकी. इस कारण लोगों के बीच इल बात को लेकर चर्चाएं आम हो गई हैं कि कहीं इस परियोजना पर ताला लगान की तैयारी तो नहीं की जा रही है. 

 

हर चुनाव से पहले लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता लोगों को अनेक प्रकार के आश्वासन तो जरूर देते हैं, लेकिन वे आश्वासन केवल कागजी ही रह जाते है. कम से कम अब तक तो यही तस्वीर सामने आती रही है. अगर सभी प्रस्ताविक परियोजनाओं का काम समय पर पूरा किया जाए, एमआईडीसी क्षेत्र में उद्योग के वस्तिार की रणनीति अपनायी गई होती तो आज किसी भी गांव, शहर में रोजगार के अवसर कम नहीं होते लेकिन आजादी के 73 वर्ष बाद भी अगर रोजगार का अभाव है. मजदूरों को अपने गांव में काम नहीं मिल रहा, युवक नौकरी के लिए परेशान हो रहे हों, हमें यह सोचना होगा कि हम आजादी के 73 साल के बाद भी रोजगार के लिए पेरशान हैं तो आत्मनर्भिर भारत का सपना कैसे साकार होगा?   

लाखनी तहसील में खरीफ फसल के लिए 30022 हेक्टेयर क्षेत्र तथा रबि की फसल के लिए 8670 हेक्टर जमीन को उपयोग में लाया जाता है. तहसील की धान खेती प्रकृति पर आश्रित होने के कारण उत्पादन पर भी असर पड़ता है. कभी अवर्षा की स्थिति तो कभी अतिवृष्टि इस वजह से धान का घटता-बढ़ता रहता है. धान के अलावा भंडारा जिले की अलग- अलग तहसीलों में रोजगार की अनंत संभावनाएं हैं. कोरोना के कहर के कारण हाथ का छोड़कर भंडारा शहर या भंडारा जिले से संबद्ध तहसील के युवकों फिर इस चिंता में पतले होते जा रहे हैं कि अब घर कैसे चलेगा?