एडल्ट कॉमेडी कर हुए फेमस, टाइटल देख सेंसर बोर्ड भी शरमा जाता था

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क्या कोई व्यक्ति द्विअर्थी संवादों , गंदे शीर्षक और उटपटांग टाइप की हरकतें और महिलाओं का अपमान करके भी गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करवा दे,  या जो व्यक्ति मुंबई के “अपना बाजार” (कई कोऑपरेटिव स्टोर )में झाड़ू लगाता हो। उसी “अपना बाजार” के सबसे ज्यादा शेयर होल्डर, एक तरह से मालिक बन जाए । जो दादर के लालबाग की गंदी , छोटी सी कच्ची पक्की खोली में रहता हो।  बैंड बाजे वालों के साथ काम करके गुजारा करें, साधारण मिल कर्मचारी का पुत्र हो, फिर अनाथ हो जाए, जिसकी सफलता पर शोमैन राज कपूर  पीठ थपथपाए, वही व्यक्ति दादर जैसे महंगे इलाके में  पेंटागन हाउस में रहने लगे…. जिसने मराठी- हिंदी फिल्मों में अश्लीलता की नींव डाली….(ऐसी हिम्मत आज तक कोई नहीं कर सका..).उनकी फिल्मों के नाम तक(“बोट लाविन, तिथं गुदगुदया’ मतलब जहां हाथ  लगाओ, वहीं गुदगुदी) , अंधेरी रात में दीया ,तेरे हाथ में) इतने अश्लील होते थे कि सेंसर बोर्ड के लिए  पास करना सिर दर्द होता था…. मरणोपरांत उनकी याद में मुंबई के भारत माता सिनेमा में उनकी फिल्में दिखानी शुरू कर दे…..।

सब कल्पना की बातें लगती है लेकिन यह सौ फीसदी सच है। उस व्यक्ति का नाम है– मराठी – हिंदी के फिल्म के हास्य कलाकार दादा कोंडके। कल 8 अगस्त  (1932) को उनका जन्मदिन था। मराठी के सुपरस्टार माने जाने वाले दादा गरीबी, फटेहाली, अभाव में बड़े हुए । लाल बाग में बदमाशी, चोरी चपाटी, गुंडागर्दी करते हुए उनका बचपन बीता,  उनका आतंक इतना था कि उस क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति लड़कियों, महिलाओं को छेड़ नहीं सकता था ।पत्नी नलिनी ।  असली नाम कृष्णा कोंडके । 1970 से 1997 तक मराठी फिल्मों में  एकछत्र साम्राज्य करने वाले हास्य कलाकार दादा कोंडके एक विशेष मध्यम वर्ग  के नायक बने रहे।

उनकी नौ फिल्में 25 सप्ताह तक सिनेमाघरों में चली, गोल्डन जुबली और रजत जयंती मनाई और जिसे गिनीज बुक में रिकॉर्ड के रूप में दर्ज किया गया । 1975 में आई “पांडू हवलदार” बहुत लोकप्रिय हुई । तब से लोग मुंबई पुलिस को  “पांडू हवलदार” कहने लगे। अपनी फिल्मों में महिलाओं का अपमान करके, फिल्मों में अपनी भोली भाली  छवि बनाते हुए पुरुषों को श्रेष्ठ बताते थे। वे राजनीति में बहुत दिलचस्पी रखते थे।  शिवसेना से जुड़े। उनकी रैलियों में भीड़ इकट्ठी करने के काम आते थे ,जिसकी विरोधी दल बहुत आलोचना करते थे । उस समय बालासाहेब ठाकरे मराठी मानुष के लिए संघर्ष कर रहे थे तो कोंडके मराठी फिल्मों के लिए संघर्षरत थे। शिवसेना से इसलिए जुड़े की उनकी

 “सोंगाड्या” फिल्म को दादर के कोहिनूर सिनेमा ने प्रदर्शित करने से मना कर दिया जबकि 1 माह पूर्व बुकिंग हो चुकी  थी । कोहिनूर  सिनेमा वालों ने उसके बदले देवानंद की फिल्म “जॉनी मेरा नाम” लगा दी। इस अन्याय के खिलाफ दादा हिंदू हृदय सम्राट श्री  बाल ठाकरे के पास गए ।शिव सैनिकों ने विरोध किया और  फिर फिल्म लगी।शिवसेना की रैलियों में कौंडके शिवाजी की छवि का प्रयोग करते और  मुगलों पर प्रहार करते थे।   श्री बाल ठाकरे की चरण वंदना करते थे ,उन्हें शिवाजी बताते थे। मंशा थी कि वे मुख्यमंत्री बन जाए पर नगर सेवक तक न बन सके।

उनकी अश्लीलता की नकल कादर ख़ान जी ने करने की कोशिश की। “मैंने प्यार किया” या “हम आपके हैं कौन” में लक्ष्मीकांत बेर्डे ने वही अदायगी की है। गोविंदा का हास्य भी कोंडके से प्रभावित हैं। उनका एक  नाटक  “विच्छा माझी पूरी करा” (यानी मेरी इच्छा पूरी करो )इस नाटक का निर्देशन भी उन्होंने ही किया था जिसे समाजवादी विचारधारा के वसंत सबनीस ने लिखा था।  यह नाटक कोंडके की पहचान बना। इसमें एक राजा, मूर्ख कोतवाल और सुंदर नर्तकी थी। इसमें तमाशा लोक कला के माध्यम से लोगों की समस्याओं को सामने रखा गया था लेकिन कोंडके की  अदायगी के कारण यह कांग्रेसी विरोधी नाटक बनकर रह गया। अश्लीलता और द्विअर्थी संवादों से नाटक तो सफल रहा पर सबनीस नाराज हो गए। मजे की बात यह कि इसके कुल 1500 शो हुए । अंतिम शो मार्च 1975 में हैदराबाद में हुआ इसके बाद आपातकाल लागू हो गया। इसमें इंदिरा गांधी की खिल्ली उड़ाई गई थी। दरअसल दादा कोंडके तमाशा कला के कलाकार थे ।फिल्मी कला , ज्ञान शून्य था। इससे  कला फिल्म के लोग उनसे बहुत नाराज रहते थे। कोल्हापुर निवासी सुप्रसिद्ध फिल्मकार भालजी पेंढारकर ने पहली बार

 फ़िल्म “तांबड़ी माटी”(लाल मिट्टी) में मौका दिया था। दादा , पेंडारकर को गुरु मानते थे। हालांकि फिल्म नहीं चली। बॉक्स ऑफिस पर अच्छी फिल्मों के बुरे हश्र की पीड़ा ने उन्हें निर्माता बनने के लिए मजबूर किया। उन्होंने “एकटा जीव सदाशिव”,  “तुमचं आमचंच जमलं” (मतलब हमारी तुम्हारी जम गई), “ह्यांच नवरा पाहिजे” (मुझे यही पति चाहिए) , “गाढवा चा लग्न” (याने गधे की शादी) जैसी कई फिल्में बनाई।अंतिम फिल्म “सासरचं धोतर” थी। 

गायक महेंद्र कपूर उनके घनिष्ठ मित्र थे । उनके गाए गीत मराठी में बहुत  चले। “अंधेरी रात में दिया…” फिल्म में अन्य राज्यों के लोगों को  खराब  बताया, उनका मजाक उड़ाया। इस फिल्म में  ठाकुर विलेन एक बिहारी पात्र को बनाया, जिसे महमूद ने अभिनीत किया था। बिहारी उच्चारण बुलवाकर उनकी बहुत मजाक उड़ाई थी।

उन्हें अपनी फिल्मों के लिए अभिनेत्री नहीं मिलती थी क्योंकि अश्लीलता, द्विअर्थी होने के कारण कोई अभिनेत्री काम करना पसंद नहीं करती थी। फिर उषा चौहान नायिका के रूप में मिली और उनकी जोड़ी भी जमी। बाद में इश्क के चर्चे भी चले।

अश्लीलता से पैसा कमाने का रिकॉर्ड बनाने वाले दादा कोंडके का निधन 30 सितंबर, ,1997 को दादर, मुंबई में हुआ। कोंडके को  व्यावसायिक सफलता के लिए याद किया जाएगा, लेकिन उन्हें आदर्श कोई नहीं मानता ।इसलिए उनकी गणना अच्छे फिल्मकारों में नहीं मानी जाती परंतु अभिनय के सरताज और हास्य के महारथी के रूप में एक गीतकार,  लेखक अवश्य माना जाता है। जो भी हो लोकप्रियता की सबसे ऊंची पायदान पर पहुंचने वाले इस कलाकार को नमस्ते।

साभार: अनंत श्रीमाली