पायलट छोड़ बने किसान, खजूर की खेती करके कमाएं इतने रुपए

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गुजरात के एक ऐसे शख्स जो पायलट बनने के सपने देखते थे लेकिन किसान बन गए. गुजरात में भुज से लगभग 20 किलोमीटर और कच्छ के रन से लगभग एक-डेढ़ घंटे के रास्ते पर ईश्वर पिंडोरिया का गाँव है. उनकी पढ़ाई राजकोट से हुई. ईश्वर कमर्शियल पायलट बनना चाहते थे लेकिन उन्हें अपने पिता का बिज़नेस संभालना पड़ा. अपने फार्म को सेट-अप करने के लिए उन्होंने इजरायल की कृषि तकनीकों का इस्तेमाल किया.  वह आधुनिक तकनीकों और तरीकों से खेती करना चाहते थे. इसलिए वह खेती शुरू करने से पहले इजराइल पहुंचे.

वह बताते हैं, “मैंने 2003 में खेती शुरू करने की योजना बनाई. खेती में तकनीक के बेहतर इस्तेमाल के बारे में जानने के लिए मैंने इजरायल की यात्रा की. वहाँ मैंने देखा कि कैसे किसान रेतीली मिट्टी में और मुश्किल जलवायु में भी सही तरीकों और तकनीकों से खजूर की अच्छी फसल उगा रहे हैं. मुझे लगा कि क्यों न कच्छ में भी खजूर की खेती शुरू की जाए। मैंने इजरायल से खजूर के पौधे लाए और इस तरह खेती की शुरुआत हुई.”

आधुनिक तकनीक का करते हैं इस्तेमाल आज ईश्वर न सिर्फ खजूर की अलग-अलग किस्में बल्कि आम और अनार जैसे फलों की भी खेती कर रहे हैं. उनके खेतों में ड्रिप-इरीगेशन सिस्टम, कैनोपी मैनेजमेंट, बंच मैनेजमेंट, पोस्ट-हार्वेस्ट मैनेजमेंट (ग्रेडिंग, पैकेजिंग), पेस्ट मैनेजमेंट और मिट्टी के न्यूट्रीशन मैनेजमेंट तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. वह बताते हैं, “सब-सरफेस ड्रिप तकनीक से मैं लगभग 60% पानी बचाने में सक्षम होता हूँ. इसके साथ ही, ड्रिप इरीगेशन सिस्टम मिट्टी में एक लेयर नीचे है तो इससे ऊपरी सतह रेतीली ही रहती है और यहाँ खरपतवार भी नहीं होती है.”

उन्होंने कैलिफ़ोर्निया से मिट्टी की गुणवत्ता, नमी और सिंचाई को शेड्यूल करने के लिए भी अलग-अलग तरह के इंस्ट्रूमेंट मंगवाए. कैनोपी मैनेजमेंट से वह फसलों के लिए एक माइक्रोक्लाइमेट मेन्टेन कर पाते हैं और पोस्ट-हार्वेस्ट मैनेजमेंट में ग्रेडिंग और पैकेजिंग होने से उनकी उपज सीमित समय में ही बाज़ारों तक पहुँच जाती है.

उनके खेतों को ग्लोबल GAP यानी कि गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज सर्टिफिकेशन भी मिला हुआ है. उन्हें अपनी तकनीकों और तरीकों से खेतों में काफी अच्छी उपज मिलती है जो गुणवत्ता और मात्रा, दोनों में काफी अच्छी होती है. उन्होंने अपनी खुद की कोल्ड स्टोरेज यूनिट भी सेट-अप की हुई है. उनके फल भारत के सभी मेट्रो शहरों से लेकर बाहर देशों तक पहुंच रहे हैं. उनकी ब्रांड का नाम, ‘हेमकुंड फार्म फ्रेश’ है.

वह कहते हैं, “किसानी आपको जो सुकून देती है, वह कहीं और नहीं है. यह ऐसा काम है जिसमें आपका बहुत सीमित योगदान हो सकता है. आपने बीज बो दिया, उसे पानी दिया और खाद आदि. इसके अलावा सब कुछ प्रकृति संभालती है. लेकिन यह सिर्फ खेती में ही हो सकता है कि आप गेहूँ के एक दाने से और अस्सी दाने उगा पाएं. सिर्फ खेती में ही आप इतना ज्यादा प्रॉफिट ले सकते हैं. इसलिए ईश्वर सबको खेती करने की सलाह देते हैं. अंत में, वह बस यही कहते हैं कि हर कोई उनकी तरह खेती में तकनीक के इस्तेमाल को नजदीक से देखने इजरायल नहीं जा सकता है. उनकी कोशिश अपने फार्म को उसी तरह विकसित करने की है ताकि किसान सभी तरह की नयी कृषि तकनीकों के बारे में यहीं पर सीख पाएं.