Female Music Director Usha Khanna

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पचास का दशक था। बचपन से सुरों की घुट्टी पीने वाली सोलह साल की एक लड़की गायिका बनने का सपना लेकर ग्वालियर से मुम्बई पहुंची।

उस दौर के एक दिग्गज संगीतकार ने पूछा- “क्या आप लता मंगेशकर और आशा भौसले की तरह गा सकती हैं?”

लड़की बोली- “जी नहीं, उनकी तरह तो नहीं गा सकती।”

संगीतकार ने कहा- “तो फिल्मों में गाने की इच्छा छोड़ दो। यहां लता और आशा के अलावा किसी का भी चलना मुश्किल है ।”

लड़की आज्ञाकारी थी। उसने गाने का उद्देश्य छोड़ दिया।

कुछ समय बाद इस लड़की का नाम ताजा हवा के झोंके के तौर पर सामने आया। वो लड़कीं संगीतकार बन चुकी थी । उसके निर्देशन में लता मंगेशकर और आशा भौसले ने ही नहीं, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर, येसुदास से लेकर हेमलता, अनुराधा पौडवाल आदि कई सदाबहार गीत गाए। 

उस लड़की का नाम था उषा खन्ना । 

वो उषा खन्ना जिसे हिंदी सिनेमा की सबसे कामयाब महिला संगीतकारबमाना जाता है। यूं उनसे पहले जद्दन बाई (नर्गिस की मां) और सरस्वती देवी भी बतौर संगीतकार के तौर पर सक्रिय थे, लेकिन उषा खन्ना ने इन सबसे लम्बी पारी खेली। 

मुमकिन है, नई पीढ़ी उषा खन्ना के नाम से अनजान हो, लेकिन उनकी धुनों वाले गाने यह पीढ़ी भी गुनगुनाती है। चाहे वह धीमे सुरों वाला रूमानी ‘तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है’ (आप तो ऐसे न थे) हो या दर्द में भीगा ‘तेरी गलियों में न रखेंगे कदम’ (हवस) या बारिश के बाद महकती मिट्टी-सा सोंधा- सोंधा ‘बरखा रानी जरा जमके बरसो’ (वस्त्र) या फिर चुलबुला ‘शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है’ (सौतन)। यह उषा खन्ना की ही खूबी थी कि येसुदास की आवाज में उन्होंने एक तरफ ‘मधुबन खुशबू देती है’ (साजन बिना सुहागन) जैसी पुनीत पावन गीत रचा, तो उन्हीं की आवाज में छेड़छाड़ वाले ‘दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्कुरा कर चल दिए। ‘(दादा) को ऐसे शीतल धुन दी, जो इस किस्म के दूसरे गीतों में कम ही महसूस होता है।

खगोल की दुनिया में धूमकेतु के बारे में कहा जाता है कि यह ऐसा तारा होता है तो 76 बरस में एक बार दिखाई देता है, फिर ओझल हो जाता है अगले 76 बरस के लिए। सिने संगीत में उषा खन्ना एकमात्र ऐसी महिला रही हैं जिनका पर्दापण किसी धूमकेतु की भांति हुआ था और वे इसी रूपक की भांति खो गईं। उषा खन्ना की पहचान भारतीय सिने इतिहास की पहली स्थापित महिला संगीतकार के तौर पर बनी थी। अफसोस, यह कायम ना रह सकी। उनकी फिल्मोग्राफी चौंकाती है। 55 साल के कैरियर में उनके खाते में एक दर्जन भी ख्यात फिल्में भी नहीं हैं। उन्होंने जिस मौलिकता और मधुरता से दस्तक दी थी, वह अंदाजे—बयां आज भी याद किया जाता हैं।

यह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया कि वे स्वयं फिल्मों से दूर रहीं या उनके खिलाफ दबी—छुपी साजिशें चलती रहीं। उन्हें जब भी मौका मिला उन्होंने अत्यंत सधा हुआ, सलीकेदार संगीत दिया लेकिन इन अवसरों की श्रृंखला कभी नहीं बन पाई!

 7 अक्तूबर 1941 को ग्‍वालियर में जन्मी ऊषा खन्ना जी आज 79वें वर्ष में प्रवेश कर गयीं हैं। आज भी शायद कम ही लोग उन्हें बधाई देने पहुंचे होंगे। लेकिन उम्मीद करेंगे कि आज उनके पूर्व पति सावन कुमार शायद उन्हें आज फ़ोन करके बधाई दें और उन्हें कहीं डिनर पर ले जाएं क्यूंकि…

ज़िन्दगी प्यार का गीत है

इसे हर दिल को गाना पड़ेगा

ज़िन्दगी ग़म का सागर भी है

हँस के उस पार जाना पड़ेगा

ज़िन्दगी एक अहसास है

टूटे दिल की कोई आस है

ज़िन्दगी एक बनवास है

काट कर सबको जाना पड़ेगा

ज़िन्दगी प्यार का गीत है…

यह सन 1980 में रिलीज सौतन फ़िल्म का गीत है । यह महान लता मंगेशकर के उन गानों में से एक है जो जिंदगी के किसी भी उदास लम्हे में मुस्कुराने पर मजबूर कर देता है। बोल सावन कुमार के ।संगीत उषा खन्ना का । 

हैप्पी बड्डे उषा खन्ना जी !

सुधांशु टाक