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पिछले दो  हफ्तों में भारत में दो बड़ी खबरे आईं।  पहल खबर ये आई  कि  केंद्र की मानव संसाधन विकास  मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया जाएगा।  दूसरी खबर थी, राम मंदिर के भूमि-पूजन की।  भूमिपूजन ने मीडिया में जितनी सुर्खियां बटोरी उतनी अहमियत शिक्षा मंत्रालय वाली खबर को नहीं मिली। ये अपने-आप में संकेत था कि हवा किस दिशा में बह रही है। देवालय के मुकाबले विद्यालय कहीं नहीं ठहरते।  इसी दो हफ्ते में एक तीसरी खबर भी आई, गोवा से। जहां ‘पहले देवालय फिर विद्यालय’ वाली थ्योरी स्थापित हो रही है और शिक्षा से जुड़े और प्रभावित होनेवाले वर्ग को ये सोचना चाहिए कि ये रास्ता किस तरफ ले जाएगा।  

बात है आईआईटी की, जिसकी  स्थापना आज़ादी के बाद पचास के दशक में की गई थी। और ये भारत के शिक्षा क्षेत्र में प्रगति का सिरमौर है. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विज़न का नतीजा था। (वही नेहरू जिन्हें Whats App University देश के पुरानी-नई हर समस्या के लिए टारगेट करती है)। आईआईटी जो अपनी गुणवत्ता का लोहा सारी दुनिया में मनवा चुकी है, आज भारत में 20 से ज्यादा आईआईटी चल रही हैं।                                                                                            

जब मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई थी तब उसने पांच नए आई आई टी (Indian Institutes of Technology) बनाने का फैसला लिया था। जिन्हें गोवा, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और केरल में स्थापित किया जाना तय हुआ था।  गोवा की आईआईटी को अमेरिका की जाने-माने शैक्षणिक संस्थाओं के साथ मिलकर डेवलप करने की योजना थी। फिलहाल आईआईटी को अस्थायी तौर पर गोवा इंजीनियरिंग कॉलेज से चलाया जा रहा है।और दस लाख स्क्वेयर मीटर  का भव्य परिसर बनना था। जिसके लिए जमीन  को लेकर तनातनी मची हुई है 

मगर 2014 से लेकर 2020 के वक्त में अब तक में तीन गांवों में इसके लिए ज़मीन का आबंटन हुआ। पहले कनाकोना और संग्युम गांव में बनाने की योजना थी, लेकिन गांव वालों के विरोध के बाद रद्द कर दिया गया।   गुलेली तीसरा गांव है, और यहां लोग आईआईटी के बजाय मंदिर में ज्यादा इंटरस्टेड थे। लिहाजा विवाद हुआ। गांव वाले विरोध इसलिए कर रहे थे क्योंकि पहले वो जमीन मंदिर के लिए आबंटित की गई थी।

लिहाजा मंदिर की मांग के आगे घुटने टेकते हुए गोवा की सरकार ने 45000 वर्ग मीटर (छह फुटबॉल ग्राउंड के बराबर ) जमीन मंदिर के लिए सरेंडर कर दी और नयी जमीन की तलाश शुरू कर दी है।  लेकिन फिर भी स्थानीय गांव वाले अपने इलाके में आईआईटी न बनने देने पर अड़े हुए हैं।  

सोचने लायक बात ये भी है  कि ये सब गोवा में हो रहा है। गोवा जिसकी  छवि एक मॉडर्न और स्वच्छंद प्रदेश के रूप में जानी जाती है। लगभग हर दुकान या होटल में शराब की बिक्री, कम कपड़ों में घूमते-फिरते सैलानी, समुद्री बीच पर बिकनी और स्विमिंग कॉस्ट्यूम्स में तैरते या धूप सेंकते विदेशी टूरिस्ट, ये नजारा आम है। यहां तक कि कई देसी सैलानी जो अपनी होम सिटीज में हमेशा परम्परागत पहनावे में होते हैं, वो गोवा में आकर स्लीवलेस, स्कर्ट्स और शॉर्ट्स में उतर जाते हैं।  गोवा के लोगों को तुलनात्मक तौर पर उदारवादी दृष्टिकोण का माना जाता है, जो देसी-विदेशी सैलानियों के बर्ताव या पहनावे को बर्दाश्त कर लेते हैं। जो कि शायद किसी और प्रदेश में नहीं बर्दाश्त किया जाए। यहां बीजेपी की सरकार है मगर फिर भी गोवा के होटलों के मेनू में बीफ देखने में मिल जाता है। गोवा हिन्दू और ईसाई धर्म के कल्चर का सामूहिक सह-अस्तित्व की एक मिसाल रहा है। गोवा में साक्षरता की दर भी बेहद अच्छी है। इन सब के बावजूद अगर गोवा में ऐसा कुछ हो रहा है है तो अंदाजा लगाया जा सकता है बाकी राज्यों के बारे में।   

क्योंकि, जब आज मंदिर बनाम आईआईटी का विवाद कर अन्य धर्मावलंबियों बनाम शैक्षणिक संस्थानों में तब्दील न हो जाय क्योंकि ऐसे विवाद कोरोना की तरह ही फैलते हैं और संभलने से पहले  lखासा डैमेज कर चुके होते हैं। गोवा से करीब 2000 किलोमीटर दूर है उत्तर प्रदेश, जहां पिछले 3 साल में कई स्कूलों की इमारतों को भगवा रंग में रंगा जा चुका है। टकराव की स्थिति में देवालय को प्राथमिकता देकर ‘पहले देवालय फिर विद्यालय ‘ वाली बात अगर सिर्फ अपवाद भर रह जाय तो ठीक है, और अगर ऐसा नहीं होता है तो यही संकेत मिलेंगे कि “बात निकली है तो दूर तलक जायेगी ।”

 डॉ संजय सिंह 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और NDTV, Zee News, IBN, TIMES NOW में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं )