स्वदेशी से आत्मनिर्भर भारत की ओर

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हाल ही में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा वैश्विक महामारी कोविड – 19 के कारण कमजोर हुई भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए एक सराहनीय और आवश्यक पहल करते हुए सभी देशवासियों से आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को सफल बनाने का आग्रह किया। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा जिस आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम की बात की गयी, उसका एकमात्र तात्पर्य यह नहीं है कि केवल स्वदेशी वस्तुओं को ही प्रयोग में लाया जाया बल्कि उसकी व्याखा कहीं अधिक व्यापक है। इसका तात्पर्य यह हैं कि स्वदेशी से जुड़े प्रत्येक तत्व को चाहे वह सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक किसी भी स्तर का क्यों न हो व्यवहार में लाया जाए। 

इस दिशा में सरकार को महात्मा गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा से सीख लेते हुए ग्रामों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए जाने चाहिए। गांधी जी के अनुसार भारत की आत्मा गांवों में बसती हैं और भारत की खुशहाली गांवों की खुशहाली पर निर्भर करती है।

इसके लिए गांवों में संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर लघु उधोग स्थापित किए जा सकते है। इससे दो फायदे होंगे – एक, लोगों का रोजगार की तलाश में शहर की ओर प्रस्थान रूक जाएगा। दूसरे,  लोगों के पास बचत अधिक होगी जिससे वह अपनी सुविधा को बढ़ाने के लिए खर्च करेंगे। इससे देश की जीडीपी में वृद्धि होगी और जीडीपी में वृद्धि से देश की विकास दर में वृद्धि होना निश्चित है। इसका अन्य लाभ यह भी हैं कि जो लोग केवल रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में आकर स्लम बस्तियों में नारकीय जीवन गुजारते हैं, इससे न केवल उन्हें ऐसे अमानवीय जीवन से छुटकारा दिलाया जा सकता हैं बल्कि शहरों में लगातार बढ़ती जा रही स्लम बस्तियों की संख्या को भी कम करने में सहायता मिलेगी। 

सरकार को कृषि के वाणिज्यकरण पर भी बल दिया जाना चाहिए क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश हैं और भले ही देश की जीडीपी में 70 प्रतिशत योगदान सर्विस सेक्टर का क्यों न हो लेकिन आज भी देश की कुल आबादी में से लगभग 49 प्रतिशत  आबादी कृषि पर निर्भर है। इसीलिए सरकार को कृषि क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए आवश्यक बल प्रदान किया जाना चाहिए। कृषि की मजबूत स्थिति से न केवल देश की विकास दर में वृद्धि होगी बल्कि इस पर आश्रित करोड़ों लोगों की आर्थिक स्थिति में भी उल्लेखनीय सुधार होगा.

कृषि का विकास सरकार को देश की वाइब्रेंट डेमोग्राफी को ध्यान में रखकर करना होगा जिससे कि हम एक ही समय में अनेक फसलों का उत्पादन किया जा सकें। इस संदर्भ में किसानों को सस्ती दर और उचित समय पर ॠण उपलब्ध कराना, उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराना, फसल की लागत को देखते हुए लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी करना,  कोल्ड स्टोरेज और स्टोरेज की क्षमता बढ़ाना इत्यादि कदम उठाए जा सकते है। 

इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर कार्य करना होगा।
स्कूली स्तर पर स्वदेशी से जुड़े पाठ्यक्रम और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को लागू किया जाए जिससे विद्यार्थियों में प्राथमिक स्तर पर स्वदेशी की गौरवपूर्ण भावना का विकास किया जा सकें और भविष्य में वह आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम में बिना किसी बाधा के अपना योगदान देने में सफल साबित हों। शिक्षा के क्षेत्र में सरकार को व्यवसायिक शिक्षा पर बल प्रदान किया जाना चाहिए जिससे कि अधिकाधिक लोगों को रोजगार प्रदान किया जा सकें।

सरकारी नौकरी पर बढ़ती निर्भरता को कम किये जाने की आवश्यकता हैं । हाल ही में ऐसा देखने को मिल रहा हैं कि प्रोफेशनल जाॅब को छोड़कर अधिकतर लोग सुरक्षित भविष्य एवं जीवन को आसान बनाने के लिए सरकारी नौकरी की ओर लगातार उन्मुख होते जा रहे है। युवाओं में बढ़ती ऐसी प्रवृति को कम किये जाने की आवश्यकता हैं। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाए जाने की आवश्यकता हैं और इसके लिए क्षेत्रीय या स्थानीय भाषा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए क्योंकि  किशोरावस्था में मातृभाषा में सीखने की प्रवृति ज्यादा नज़र  आती है।

देश के सभी सरकारी स्कूलों की शिक्षा के प्रति बढ़ती उदासीनता को ध्यान में रखते हुए ठोस उपाय किए जाने की आवश्यकता हैं ताकि इन स्कूलों पर किए जाने वाले एक बड़े व्यय को समुचित उपयोग में लाया जा सके और विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा सकें। इस स्तर पर पब्लिक प्राइवेट माडल एक अच्छी पहल हो सकती है यानी प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर सरकार प्राइवेट स्कूलों के साथ मिलकर शिक्षा प्रदान करने का कार्य करें। इससे कमजोर एवं वंचित वर्ग के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण एवं लाभकारी शिक्षा प्रदान करने में सहायता मिलेगी और देश में शिक्षा के स्तर को गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकेगा। बिना शिक्षा का विकास किए आत्मनिर्भर भारत को सफल नहीं बनाया जा सकता हैं।

इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर युद्ध स्तर पर कार्य किए जाने की आवश्यकता हैं क्योंकि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है इसीलिए दोनों सरकारों का सहयोग  आवश्यक है। आवश्यकता  इस बात की है कि पूरे देश में प्राथमिक स्तर से लेकर माध्यमिक स्तर तक पाठ्यक्रम को एकीकृत किया जाए और जहां तक हो सके राज्यों को अपने इतिहास एवं भौगोलिक स्थितियों के आधार पर ही पाठ्यक्रम को एक निश्चित सीमा में बढ़ाने या घटाने की  अनुमति दी जाए। 

 

दैनिक जीवन में उपयोग में लायी जाने वाली स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन उचित कीमत के अंदर किया जाना चाहिए ताकि वह आम जन को सहज मूल्य में उपलब्ध करायी जा सकें। इसके अलावा विदेशी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाए जाने की आवश्यकता हैं ताकि वह स्वदेशी वस्तुओं से कम कीमत पर बाज़ार में उपलब्ध न हो  अन्यथा लोग स्वदेशी के स्थान पर विदेशी वस्तुओं का उपयोग करना ही उचित समझेंगे।

घरेलू स्तर पर कच्चे माल की उपलब्धता के साथ उत्पादक गतिविधियों में बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है। विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए श्रम कानूनों को तर्कसंगत एवं ईज आॅफ डूइंग बिजनेस से जुड़े नियमों को सरल बनाए जाने की आवश्यकता हैं। इसके अलावा  इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा नौकरशाही के ढीले-ढाले रवैये को एक नया आयाम प्रदान किया जाना चाहिए। 

यह सर्वविदित हैं कि डब्लूटीओ के अधीन भारत किसी देश की वस्तुओं के आयात पर प्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंध आरोपित नहीं कर सकता हैं परन्तु परोक्ष से आयात शुल्कों में वृद्धि करके या सुरक्षा मानक के आधार पर ऐसी प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की जा सकती हैं।

गौरतलब हैं कि दिसंबर, 2010  में भारत द्वारा चीन से  आयातित दूध और दूध से निर्मित अन्य वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, क्योंकि चीनी दूध में मोलामिन नामक पदार्थ से कई चीनी बच्चों की चीन में मृत्यु हो गई थी।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशन (फियो) के अध्यक्ष शरद कुमार का कहना हैं कि सरकार को ईज आॅफ डूइंग बिजनेस के साथ ईज आॅफ स्टार्टिंग बिजनेस पर ध्यान देना होगा। यह एक चिंतनीय पहलु हैं कि भारत में श्रम सस्ता होने के बावजूद  उत्पादन लागत    इतनी अधिक क्यों है ! 

सरकार को इस दिशा में व्यापक विचार विमर्श करके ठोस उपाय किये जाने चाहिए ताकि वर्षों पुरानी इस समस्या का व्यापक समाधान करके आत्मनिर्भर भारत के मार्ग की इस सबसे बड़ी बाधा को दूर किया जा सकें।

वैज्ञानिक शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता हैं ताकि स्वदेशी तकनीक के बल पर गुणवत्तापूर्ण और टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकें जिससे न केवल अपने देश की मांग को पूरा किया जा सकें बल्कि अन्य देशों को भी गुणवत्ता के स्तर पर भरोसे में लेकर निर्यात करके विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाया जा सकें। आत्मनिर्भर भारत के अन्तर्गत स्वदेशी वस्तुओं से संबंधित एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह भी हैं कि केवल वही वस्तुएं स्वदेशी नहीं कहलाएगी जिसका निर्माण देशी तकनीक  और भारत के लोगों द्वारा  किया गया अपितु वे सभी वस्तुएं भी स्वदेशी ही होगी जिनका निर्माण भारत में किया गया।

यह स्वदेशी की  एक व्यापक अवधारणा है और इसकी आवश्यकता भी हैं क्योंकि इससे एक ओर देश के लोगों को बेरोजगारी की समस्या से छुटकारा एवं रोजगार प्रदान करने में सहायता मिलेगी। दूसरी ओर सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी जिससे वित्तीय घाटे को कम करने और विकास दर को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

केंद्र सरकार एवं सभी राज्य सरकारों द्वारा देशवासियों के साथ मिलकर आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को सफल बनाने की दिशा में युद्ध स्तर पर कार्य किए जाने की आवश्यकता हैं तभी वाॅकल फाॅर लाॅकल की पहल संभव हो सकेगी अन्यथा उचित नीति और ठीक रूप में कार्यान्वयन के अभाव में आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम मात्र एक राजनैतिक नारा बनकर रह जाएगा और यह अपने मूल उद्देश्य से भटक जाएगा।

– मोहित कुमार उपाध्याय
(राजनीतिक विश्लेषक एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार)