आज यानी 7 अगस्त 2020 को रबीन्द्रनाथ टैगोर की 79वीं पुण्यतिथि है. रबीन्द्रनाथ टैगोर एक विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार थे. वे अकेले ऐसे भारतीय और प्रथम एशियाई साहित्यकार हैं, जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है. टैगोर दुनिया के अकेले ऐसे कवि थे जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनी हैं, पहला भारत का राष्ट्रगान “जन गण मन” और दूसरा बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान “आमार सोनार बाँग्ला” है. टैगोर, ‘गुरुदेव’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है. उन्होंने बांग्ला साहित्य और संगीत को एक नई दिशा दी थी. उन्होंने बंगाली साहित्य में बोलचाल की भाषा जैसे भी प्रयोग किये थे. वह घोर राष्ट्रवादी थे और ब्रिटिश राज की आलोचना करते हुए देश की आजादी की मांग की थी.
जीवन परिचय: रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ. उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं. वह अपने माँ-पिता की तेरह संतानों में सबसे छोटे थे. जब वह छोटे थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया और चूँकि उनके पिता अक्सर यात्रा पर ही रहते थे, इसलिए उनका लालन-पालन नौकरों द्वारा ही किया गया.
उन्हें पारंपरिक शिक्षा पद्धति नहीं भाती थी, इसी कारण कक्षा में बैठकर पढ़ना पसंद नहीं करते थे. वह अक्सर अपने परिवार के साथ अपनी पुश्तैनी जागीर पर घूमा करते थे. उन्होंने ड्राइंग, शरीर रचना, इतिहास, भूगोल, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी सीखी. उन्हें औपचारिक शिक्षा इतनी नापसंद थी कि कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में वो सिर्फ एक दिन ही गए थे.
करियर: वर्ष 1891 से लेकर 1895 तक उन्होंने ग्रामीण बंगाल के पृष्ठभूमि पर आधारित कई लघु कथाएँ लिखीं. वर्ष 1901 में गुरुदेव शांतिनिकेतन चले गए, व वहाँ पर एक आश्रम स्थापित करना चाहते थे. वहाँ पर उन्होंने एक स्कूल, पुस्तकालय और पूजा स्थल का निर्माण किया. उन्होंने वहां पर बहुत सारे पेड़ लगाये और एक सुंदर बगीचा भी बनाया.
नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था स्वीडिश अकैडमी ने टैगोर के कुछ कार्यों के अनुवाद और ‘गीतांजलि’ के आधार पर उन्हें 14 नवम्बर 1913 को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया. अंग्रेजी सरकार ने उन्हें वर्ष 1915 में नाइटहुड प्रदान किया जिसे रवींद्रनाथ ने 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद छोड़ दिया.
टैगोर ने कृषि अर्थशाष्त्री लियोनार्ड एमहर्स्ट के साथ मिलकर सन 1921 में अपने आश्रम के पास ही ‘ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान’ की स्थापना की, जिसका बाद में नाम बदलकर श्रीनिकेतन कर दिया गया.
राजनैतिक विचार: उनके राजनैतिक विचार बहुत जटिल थे. उन्होंने यूरोप के उपनिवेशवाद की आलोचना की और भारतीय राष्ट्रवाद का समर्थन किया. इसके साथ-साथ उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन की आलोचना की और कहा कि हमें आम जनता के बौधिक विकास पर ध्यान देना चाहिए. भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के समर्थन में उन्होंने कई गीत लिखे. वर्ष 1919 के जलियाँवाला बाग नरसंहार के बाद उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दी गयी नाइटहुड का त्याग कर दिया. गाँधी जी और अम्बेडकर के मध्य ‘अछूतों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल’ मुद्दे पर हुए मतभेद को सुलझाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.
अंतिम समय: उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 4 साल पीड़ा और बीमारी में बिताये. वर्ष 1937 के अंत में वो अचेत हो गए और बहुत समय तक इसी अवस्था में रहे. जब कभी भी वह ठीक होते तो कवितायें लिखते. इस दौरान लिखी गई कविताएं उनकी बेहतरीन कविताओं में से एक हैं. लम्बी बीमारी के बाद 7 अगस्त 1941 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.
गुरुदेव के कुछ महत्वपूर्ण विचार:
- समुद्र के किनारे खड़े होकर उसे घूरने मात्र से आप उसे पार नहीं कर सकते हैं.
- जीवन की चुनौतियों से बचने की बजाए, उनका निडर होकर सामना करने की हिम्मत मिले, इसकी प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए.
- जो अपना है, वह सदैव मिलकर ही रहेगा.
- सच्चा प्रेम स्वतंत्रता देता है, अधिकार का दावा नहीं करता.
- मिट्टी के बंधन से छूटना पेड़ के लिए कभी स्वतंत्रता नहीं होती.
- प्रेम ही यथार्थ सत्य है, यह सिर्फ एक भावना नहीं है.
- तथ्य कई होते हैं, लेकिन सत्य एक ही होता है.
-मृणाल पाठक