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WHO के अनुसार हमारे देश में  एलोपैथी डाक्टर (Allopathic doctor) एवं रोगी का अनुपात 1:1000 होना चाहिए जब कि अभी यह अनुपात 1: 1450 का है अर्थात हर 1450 लोगो के लिए एक केवल डाक्टर उपलब्ध है । इस कमी को दो तरीकों से पूरा किया जा सकता है । 

1- या तो एलोपैथी के डाक्टर्स को बनाने की प्रक्रिया तेजी से बढ़ाई जाये । तमाम नये मेडिकल काॅलेज (Medical College) बनाये जायें जिनमें बहुत खर्च होगा और समय भी लगेगा ।

2- आयुष (Ayush) के 7.88 लाख डाक्टर्स को एलोपैथी का थोड़ा सा ज्ञान (ब्रिज कोर्स) देकर उन्हे भी एलोपैथी में शामिल कर लिया जाये । एक झटके में एलोपैथी के डाक्टर्स WHO के मानक से आगे निकल जायेंगे  

यह दूसरा तरीका बेहद आसान है । देश में 12 लाख एलोपैथी के डाक्टर हैं और करीब 7.88 लाख आयुष (आयुर्वेद,होम्योपैथ,यूनानी, सिद्धा) के डाक्टर हैं । इन दोनो को मिला दिया जाये तो लगभग 20 लाख डाक्टर्स हो जाते हैं । इसमें सक्रिय डाक्टर्स यदि 80% मान लिए जायें ( लगभग 20% डाक्टर्स विभिन्न कारणों से सक्रिय नही होते हैं) तो इनकी संख्या करीब 16 लाख हो जाती है । इस चमत्कारी फार्मूले से एक झटके में हम दुनिया के तमाम देशों से बेहतर नजर आने लगेंगे । 

यही क्विक फिक्स फार्मूला सरकार ने अपना लिया और अब देश में डाक्टर पेशेंट रेशिओ 1:1450 से घटकर 1:875 तक आ जायेगा । ऐसा करिश्मा विश्व के इतिहास में न हुआ है और न ही हो सकेगा ।

क्या यह क्विकफिक्स फार्मूला कारगर होगा और इस फार्मूले से चिकित्सा का भविष्य क्या होगा ? इसे विस्तृत रूप में समझना होगा । 

भारत के सभी राज्यों में कुल डाक्टरों की संख्या के आधे से अधिक डाक्टर केवल 5 प्रदेशों में सीमित हैं (महाराष्ट्र-15%, तमिलनाडु-12%, कर्नाटक-10%,,आंध्र प्रदेश-8%,उत्तर प्रदेश-7%)

डाक्टर:रोगी अनुपात की बात की जाये तो 

बड़े राज्यों मे सबसे खराब स्थिति यूपी (1:2924), बिहार (Bihar)-1:2796,-हरियाणा (Haryana)- 2285, मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)- 2186 की है  और यदि अच्छे राज्यों की बात की जाये तो वहीं जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) -1:882, दिल्ली (Delhi)- 1:748, महाराष्ट्र (Maharashtra) -1:685 आदि हैं । इससे वह तथ्य तो साफ नज़र आता है कि देश के बड़े हिस्से में गुणात्मक चिकित्सकों (Qualitative practitioners) की भारी कमी है । इसे तो पूरा करना है होगा जिसके लिए स्पेशल बजट की आवश्यकता है ।

सरकार की मंशा है कि 2030 तक देश में वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम (Health System) हो जाये । इसके लिए वो एक मेगा प्लान लाँच करने जा रही जिसमें सभी चिकित्सा प्रणालियों को एक छाते के नीचे लाया और इसे संभवतः इंडियन सिस्टम आॅफ मेडिसन कहा जा सकता है । जिसके अंतर्गत एलोपैथी और आयुष का विज्ञान साथ में जोड़कर पढ़ाया जाये और प्रैक्टिस में लाया जाये ।

देश में हुए अनेक सर्वे के अनुसार आयुष की मान्यता या उपयोग लगभग 7% रोगियों तक ही है 90% से अधिक योगी एलोपैथी को प्रेफर करते हैं । आयुष मंत्रालय का भी मानना है कि आयुष में लोगों का विश्वास कम है । इसे बढाने के लिए आयुष को एलोपैथी के संग इंटीग्रेड करना चाहिए इससे आयुष की क्रेडिबिलिटी बढेगी और लोग इन पद्धियों का प्रयोग करना आरंभ कर देंगे । जब उनसे पूछा गया कि आयुर्वेद में ट्रायल्स और रिसर्च क्यों नही हो रहे हैं तो उनका जवाब था कि हजारों सालों से आयुर्वेद की विधा चल रही है। आज तक किसी ने सबूत नही माँगा तो अब क्यों माँग रहे हैं ? खैर यह बचकाना तर्क था ।

एलोपैथी संसार की सबसे आधुनिक,प्रभावी एवं ट्रस्टेट चिकित्सा प्रणाली है जो दुनिया के हर शहर और गाँव तक उपलब्ध है । हर रोज नयी रिसर्च होती जा रही हैं जिससे मानव जीवन बचाया जा रहा है । ऐसे में बजाय उस एलोपैथी सिस्टम को और मजबूत करने के उसमें आयुष को क्यों डाला जा रहा है ? एक एलोपैथी का डाक्टर आखिर जड़ीबूटी के बारे में क्यों पढ़े ? जड़ी बूटी का एलोपैथी में क्या काम ?  ठीक उसी तरह आयुर्वेद और होम्योपैथ में एलोपैथिक दवाओं का क्या काम ?

क्या ऐसा नही लगता कि कतिपय लोग आयुष का बेड़ा गर्क करने पर आमादा हैं । जहाँ आवश्यकता इस बात की थी कि आयुष को रिसर्च और ट्रायल्स जैसे हथियारों से लैस किया जाता । उनका इन्फ्रास्ट्रक्चर और मजबूत किया जाता । क्या कारण है कि लगभग 5 साल तक पढ़ने के बाद भी आयुष के अधिकांश डाक्टर अपनी पैथी के प्रति निराश हैं और वो अपनी पैथी को प्रैक्टिस नही करना चाहते । क्या बेहतर नही होता कि आयुष के डाक्टरों में अपनी पैथी के प्रति विश्वास और गर्व की अनुभूति पैदा की जाती । यहाँ तो उल्टा होने जा रहा है कि आयुष जो अभी चोरी छिपे एलोपैथी की प्रैक्टिस करता था । अब सरकार के प्रमाण पत्र के साथ एलोपैथी की प्रैक्टिस करेगा । कुछ समय बाद क्या वो आयुष का ज्ञाता रह जायेगा ?

इस तथ्य में किसी को कोई संशय नही होना चाहिए कि आयुर्वेद और आयुष महानतम चिकित्सा प्रणाली रहे होंगे पर आज नही हैं । ठीक उसी प्रकार जैसे अतीत में हमारे पास जादुई पुष्पक विमान था यानि कि हम विमान भी बनाते थे पर आज ऐसा कुछ नही है हम कोई यात्री विमान नही बना सकते । हम विदेश में बने विमान खरीदकर उनका उपयोग कर रहे हैं । । हम कब तक अतीत के सहारे वर्तमान की दुर्बलताओं पर पर्दा डालते रहेंगे ?

सरकार की यह मंशा कि एलोपैथी को आयुर्वेद या आयुष के साथ मिलाकर उसे मिक्सोपैथी बना दिया जाये । यह प्रयोग बेहद खतरनाक हो सकता है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमने विगत सात दशकों में चिकित्सा के क्षेत्र में जो प्रतिष्ठा पायी है उसका ह्रास हो सकता है । बजाय इसके कि सरकार सब पैथियों को मिलाकर इंडियन सिस्टम आॅफ मेडिसिन का ईजाद करे उसे हर पैथी को प्रश्रय देकर उसे फलने फूलने का समुचित अवसर देना चाहिए । हर विद्या की शुद्धता को बरकरार रखते हुए सरकार को समग्रता के संग इस निर्णय पर विचार करना चाहिए और मिक्सोपैथी को हर हाल में रोकना चाहिए ।

डा . आशीष तिवारी, फिजीशियन, एसीएस हेल्थ, मुम्बई