महिला सशक्तिकरण की ओर भारत

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    भारत में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति के बावजूद वर्तमान भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता जटिल रूप में व्याप्त है। इसके कारण महिलाओं को आज भी एक ज़िम्मेदारी समझा जाता है। महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक रुढ़ियों के कारण विकास के कम अवसर मिलते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। हमारे समाज के विकास के लिये लैंगिक समानता अति आवश्यक है। महिला और पुरुष समाज के मूल आधार हैं। समाज में लैंगिक असमानता सोच-समझकर बनाई गई एक खाई है, जिससे समानता के स्तर को प्राप्त करने का सफर बहुत मुश्किल हो जाता है। हालांकि समाज की मानसिकता में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर गंभीरता से विमर्श किया जा रहा है। 

    चलाई जा रही हैं महिला केंद्रित योजनाएं 

    सरकार की ओर से भी कई ऐसे प्रयास किए गए, जिससे उत्साहजनक परिणाम दिखाई दिए। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं’, ‘वन स्टॉप सेंटर योजना’, ‘महिला हेल्पलाइन योजना’ और ‘महिला शक्ति केंद्र’ जैसी योजनाओं के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का प्रयास किया जा रहा है। महिला सशक्तीकरण पर शोध करनेवाले विशेषज्ञ अतुल मलिकराम के अनुसार इन योजनाओं के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप लिंगानुपात और लड़कियों के शैक्षिक नामांकन में प्रगति देखी जा रही है। आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए मुद्रा और अन्य महिला केंद्रित योजनाएं चलाई जा रही हैं।

    बेटे-बेटी को समानता का दर्जा देते हुए केंद्र सरकार ने महिलाओं के विवाह के लिए न्यूनतम आयु को 18 वर्ष से बढ़ाकर पुरूषों के समान 21 वर्ष करने का विधेयक भी संसद में प्रस्तुत किया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने में महिलाओं की भूमिका अधिक विस्तृत होती जा रही है। 2021-22 में 28 लाख स्वयं सहायता समूहों को बैंकों की तरफ से 65 हजार करोड़ रुपये की मदद दी गई है। सरकार ने हजारों महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को प्रशिक्षण देकर उन्हें बैंकिंग सखी के रूप में भागीदार भी बनाया है। ये महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं को घर-घर तक पहुंचाने का माध्यम बन रही हैं। महिला सशक्तिकरण सरकार की उच्च प्राथमिकताओं में से एक है। 

    उद्यमिता और कौशल को बढ़ावा 

    उज्ज्वला योजना की सफलता के हम सभी साक्षी हैं। मुद्रा योजना के माध्यम से हमारे देश की माताओं-बहनों की उद्यमिता और कौशल को बढ़ावा मिला है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ पहल के अनेक सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, और स्कूलों में प्रवेश लेने वाली बेटियों की संख्या में उत्साहजनक वृद्धि हुई है। सरकार ने तीन तलाक को कानूनन अपराध घोषित कर समाज को इस कुप्रथा से मुक्त करने की शुरुआत की है। मुस्लिम महिलाओं पर, केवल मेहरम के साथ ही हज यात्रा करने जैसे प्रतिबंधों को भी हटाया गया है। देश की बेटियों में सीखने की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लैंगिक समावेशी कोष का भी प्रावधान किया गया है। 

    33 सैनिक स्कूलों ने बालिकाओं को प्रवेश 

    देश में मौजूदा सभी 33 सैनिक स्कूलों ने बालिकाओं को प्रवेश देना शुरू कर दिया गया है। सरकार ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में भी महिला कैडेट्स के प्रवेश को मंजूरी दी है। महिला कैडेट्स का पहला बैच एनडीए (राष्ट्रीय रक्षा अकादमी) में जून 2022 में प्रवेश करेगा। सरकार के नीतिगत निर्णय और प्रोत्साहन से, विभिन्न पुलिस बलों में महिला पुलिस-कर्मियों की संख्या में, 2014 के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा बढ़ोतरी हो चुकी है। इसके महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन यह अभी भी नाकाफी है।

    लैंगिक समानता का सूत्र श्रम सुधारों और सामाजिक सुरक्षा कानूनों से भी जुड़ा है, फिर चाहे कामकाजी महिलाओं के लिये समान वेतन सुनिश्चित करना हो या सुरक्षित नौकरी की गारंटी देना। मातृत्व अवकाश के जो कानून सरकारी क्षेत्र में लागू हैं, उन्हें निजी और असंगठित क्षेत्र में भी सख्ती से लागू करना होगा। जेंडर बजटिंग और समाजिक सुधारों के एकीकृत प्रयास से ही भारत को लैंगिक असमानता के बंधनों से मुक्त किया जा सकता है।