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जन्माष्टमी (Janmashtami) सनातन धर्म मानने वालों का प्रमुख त्यौहार है. भगवान श्रीकृष्ण (SRI KRISHNA) जन्मोत्सव भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में पूरी भक्तिभाव से धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु (VISHNU) के अष्टम अवतार श्रीकृष्ण के जन्मदिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है. हालांकि, पिछले साल की तरह इस बार भी कई लोग इस उलझन में हैं कि जन्माष्टमी (JANMASHTAMI) 11 अगस्त को है या 12 अगस्त को मनाई जाएगी.

शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. ऐसे में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देखा जाए तो जन्माष्टमी 11 अगस्त को होनी चाहिए, लेकिन रोहिणी नक्षत्र की मानें तो 12 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जानी चाहिए.  कई लोग अष्टमी तिथि का महत्व मानते हैं, तो कई रोहिणी नक्षत्र को महत्व देते हैं.

ऐसे में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में जन्माष्टमी 12 अगस्त को मनाई जा रही है. वहीं नंदलाल के गांव ब्रज में 11 अगस्त को यह महोत्सव मनाया जाएगा. सनातन धर्म के हिंदू पंचांग के मुताबिक कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, मतलब आठवें दिन मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक हर साल अगस्त या फिर सितंबर के महीने में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. तिथि के मुताबिक जन्माष्टमी का त्योहार 11 अगस्त को मनाया जाएगा. वहीं रोहिणी नक्षत्र को अधिक महत्व देने वाले लोग 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे.

श्रद्धालुओं के लिए जन्‍माष्‍टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त

जन्‍माष्‍टमी की तिथि: 11 अगस्‍त और 12 अगस्‍त.

अष्‍टमी तिथि प्रारंभ: 11 अगस्‍त 2020 को सुबह 09 बजकर 06 मिनट से.

अष्‍टमी तिथि समाप्‍त: 12 अगस्‍त 2020 को सुबह 05 बजकर 22 मिनट तक.

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 13 अगस्‍त 2020 की सुबह 03 बजकर 27 मिनट से.

रोहिणी नक्षत्र समाप्‍त: 14 अगस्‍त 2020 को सुबह 05 बजकर 22 मिनट तक.

जन्माष्टमी का महत्व:
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का देश और दुनिया के कई देशों में विशेष महत्व है. भगवान श्रीकृष्ण को नारायण विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है. देश के सभी राज्यों में इस त्योहार को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. इस दिन बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं. वहीं मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं. रात भर भजन-कीर्तन होते हैं.

कैसें रखें जन्माष्टमी का व्रत:
जन्माष्टमी के अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु दिन भर व्रत रखतें हैं और अपने आराध्य का आशीर्वाद के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. जन्माष्टमी का व्रत रखने का विधान इस प्रकलार बताये जाते हैं:

* जो लोग जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं, उन्हें जन्माष्टमी से एक दिन पहले एक वक्त का भोजन करना चाहिए.

*जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण, अर्थात व्रत तोड़ते हैं.

जन्माष्टमी की पूजा-विधि
* सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. हो सके तो पीला वस्त्र धारण करें.

* अब घर के मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति को पहले गंगा जल से स्नान कराएं.

* इसके बाद मूर्ति को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के घोल से स्नान कराएं.

* अब शुद्ध जल से प्रतिमा को पुनः स्नान कराएं.

* मध्यरात्रि यानी रात 12 बजे भोग लगाकर लड्डू आदि प्रसाद से बाल-गोपाल की पूजा अर्चना करें और फिर आरती करें.

*अब घर के सभी सदस्यों को महाप्रसाद दें.

* अगर आप व्रत रख रहे हैं तो दूसरे दिन नवमी को व्रत का पारण करें यानी दूसरे दिन व्रत तोड़ें.

भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा
त्रेता युग के अंत और द्वापर युग के प्रारंभ काल में महा पापी कंस हुआ. द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज करते थे. उसके बेटे कंस ने अपने पिता को ही राजसिंहासन से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया. कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव नाम के एक यदुवंशी से हुआ. एक बार कंस, अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था और तभी रास्ते में अचानक आकाशवाणी हुई- ”हे कंस, जिस देवकी को तू प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है. इसी की गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा.”

आकाशवाणी सुनकर कंस अपने जीजा वसुदेव को जान से मारने के लिए तैयार हो गया. तभी देवकी ने उससे विनयपूर्वक अनुरोध किया और कहा- ”मेरी गर्भ में जो संतान होगी, मैं उसे तुम्हारे सामने ला दूंगी. मरे पति को मारने से क्या लाभ होगा?” यह सुनकर कंस देवकी को वापस मथुरा ले गया और उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में बंद कर दिया. कारागार में देवकी की कोख से सात बच्चों ने जन्म लिया. सभी को अपनी मृत्यु यानी अपने वध के भय से मामा कंस ने पैदा होते ही मार दिया. अब आठवीं संतान  होने वाली थी. कारागृह में उन पर कड़े पहरे थे. इसी समय नंद की पत्नी यशोदा भी माता बनने वाली थीं.

जिस समय माता देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ एक ‘माया’ थी. जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अकस्मात् प्रकाश-पुंज सा प्रकट हुआ.  और, दोनों, के समक्ष  शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए चतुर्भुज विष्णु भगवान प्रकट हुए. दोनों पति-पत्नी भगवान के चरणों में गिर पड़े. तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं. तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो. इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है. फिर भी तुम चिंता न करो. जागते हुए पहरेदार स्वयं निद्रा में चले जाएंगे, कारागृह के द्वार स्वयं और उफनती अथाह यमुना नदी तुम्हें मार्ग दे देगी.”

अपनी मृत्यु के डर से घबराकर कंस ने पूतना को बुलाकर नवजात कृष्ण को मारने का आदेश दिया. कंस की आज्ञा का पालन करते हुए पूतना ने सुंदरी का रूप धारण किया और नंद बाबा के घर पहुंच गई. उसने मौका देखभर कृष्ण को अपनी गोद में उठा लिया और अपना दूध पिलाने लगी. स्तपान करते हुए कृष्ण ने उसके प्राण भी हर लिए. पूतना की मृत्यु की खबर सुन कंस और भी चिंतित हो गया. इस बार उसने केशी नामक अश्व दैत्य को बाल कृष्ण को मारने के लिए भेजा. कृष्ण ने उसे भी यमलोक पहुंचा दिया.

इसके बाद कंस ने अरिष्ट नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा. भगवान कृष्ण अपने बाल रूप में क्रीडा कर रहे थे. खेलते-खेलते ही उन्होंने उस दैत्य रूपी बैल के सींगों को क्षण भर में तोड़ कर उसे मार डाला. कंस ने फिर काल नामक दैत्य को कौवे रूप में भेजा. वह ज्यों ही कृष्ण की हत्या के लिए उनके पास पहुंचा. श्रीकृष्ण ने कौवे को पकड़कर उसके गले को दबोचकर मसल दिया और पंखों को अपने हाथों से उखाड़ दिया, जिससे काल नाम के असुर की मृत्यु हो गई.

एक दिन श्रीकृष्ण यमुना नदी के तट पर खेल रहे थे तभी उनसे गेंद नदी में जा गिरी और वे गेंद लाने के लिए नदी में कूद पड़े. इधर, यशोदा को जैसे ही खबर मिली वह भागती हुई यमुना नदी के तट पर पहुंची और विलाप करने लगी. श्रीकृष्ण जब नीचे पहुंचे तो नागराज की पत्नी ने कहा- “हे भद्र! यहां पर किस स्थान से और किस प्रयोजन से आए हो? यदि मेरे पति नागराज कालिया जग गए तो वे तुम्हें भक्षण कर जायेंगे.” तब श्रीकृष्ण ने कहा, “मैं कालिया नाग का काल हूं और उसे मार कर इस यमुना नदी को पवित्र करने के लिए यहां आया हूं.” ऐसा सुनते हीं कालिया नाग निद्रा से जाएगा और श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगा.

जब कालिया नाग पूरी तरह मरनासन्न हो गया तभी उसकी पत्नी वहां पर आई और अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिये कृष्ण की स्तुति करने लगी, “हे भगवन! मैं आप भुवनेश्वर कृष्‍ण को नहीं पहचान पाई. हे जनाद! मैं मंत्रों से रहित, क्रियाओं से रहित और भक्ति भाव से रहित हूं. मेरी रक्षा करना. हे देव! हे हरि ! प्रसाद रूप में मेरे स्वामी को मुझे दे दो, मेरे पति की रक्षा करो.”  तब श्रीकृष्ण ने कहा, तुम अपने पूरे बंधु-बांधवों के साथ इस यमुना नदी को छोड़ कर कहीं और चले जाओ. इसके बाद कालिया नाग ने श्रीकृष्ण को प्रणाम कर यमुना छोड़ कर कहीं और चला गया. कृष्ण भी अपनी गेंद लेकर यमुना नदी से बाहर आ गए.

इधर, कंस को जब कोई उपाय नहीं सूझा तब उसने अक्रूर को बुला कर कहा कि नंदगांव जाकर कृष्ण और बलराम को मथुरा बुला लाओ. मथुरा आने पर कंस के पहलवान चाणुर और मुष्टिक के साथ मल्ल युद्ध की घोषणा की. अखाड़े के द्वार पर हीं कंस ने कुवलय नामक हाथी को रख छोड़ा था, ताकि वो कृष्‍ण को कुचल सके. लेकिन श्रीकृष्ण ने उस हाथी को भी मार डाला. उसके बाद श्रीकृष्ण ने चाणुर के गले में अपना पैर फंसा कर युद्ध में उसे मार डाला और बलदेव ने मुष्टिक को मार गिराया.

इसके बाद कंस के भाई केशी को भी केशव ने मार डाला. बलदेव ने मूसल और हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से दैत्यों को माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मार डाला. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- ‘हे दुष्ट कंस! उठो, मैं इसी स्थल पर तुम्हें मारकर इस पृथ्वी को तुम्हारे भार से मुक्त करूंगा.’ यह कहते हुए कृष्‍ण ने कंस के बालों को पकड़ा और घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया जिससे वह मार गया. कंस के मरने पर देवताओं ने आकाश से श्रीकृष्ण और बलदेव पर पुष्प-वर्षा की. तत्पश्चात, श्रीकृष्ण ने माता देवकी और वसुदेव को कारागृह से मुक्त कराया और उग्रसेन को मथुरा की गद्दी सौंप दी.

– सीमा कुमारी