-सीमा कुमारी
आज यानी 24 अक्टूबर को ‘विश्व पोलियो दिवस’ मनाया जाता है. यह तो सभी को पता है की पोलियों ड्रॉप छोटे बच्चों के लिए कितना जरुरी है. अगर हम अपने छोटे बच्चों को सेहतमंद और बीमारियों से दूर रखना चाहते है तो पोलियों ड्रॉप पिलाना ना भूले. पोलियो एक ऐसी बीमारी है जो खासतौर पर बच्चों को होती है. साथ ही यह बीमारी कभी न ठीक होने वाली होती है. ऐसे में पोलियो का टीका लगवाने से बच्चे को इस बीमारी के खतरे से बचाया जा सकता है. यह गंभीर रोग बच्चों के पैरों पर जल्दी अटैक करता है. ऐसे में बच्चे चल नहीं पाते हैं. इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें पोलियो ड्राप जरूरी पिलानी चाहिए.
अगर आपका बच्चे दस्त या उल्टी से परेशान है तो ऐसे में उसे पोलियो ड्राप जरूर पिलाए. इससे बच्चे को सुरक्षा ही मिलेगी . ऐसे में बच्चा चाहे जैसी भी हालत में हो उसकी पोलियो ड्राप मिस न करें. बच्चे को समय- समय पर पोलियों ड्राप पिलाने से वह इस संक्रमण से बचा रहेगा. असल में, इससे बचने के लिए ओरल पोलियो वैक्सीन दी जाती है. इसकी एक खुराक में दो बूंदें होती है जिसे बच्चे को पिलाया जाता है बच्चे के जन्म के ठीक छठे, दसवें व चौदहवें हफ्ते तक उसको पोलियो का टीकाकरण करवाए. इसके साथ ही उसके 16 से 24 महीने तक के होने पर उसे इसकी अच्छी डोज मिलनी चाहिए. अतः आप से अनुरोध है की देशभर में सरकार द्वारा भी मुफ्त पोलियो अभियान चलाए जाते हैं. यहां पर बच्चों को पोलियो की 2 बूंदे पिलाकर उन्हें इस बीमारी की चपेट में आने से रोकने का प्रयास किया जाता है. ऐसे में बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें पोलियो ड्राप जरूर पिलाए.
24 अक्टूबर को क्यों मनाया जाता है पोलियो दिवस:
विश्व पोलियो दिवस हर साल 24 अक्तूबर को जोनास साल्क के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो अमेरिकी वायरोलॉजिस्ट थे. जिन्होंने दुनिया का पहला सुरक्षित और प्रभावी पोलियो वैक्सीन बनाने में मदद की थी. डॉक्टर जोनास साल्क ने साल 1955 में 12 अप्रैल को ही पोलियो से बचाव की दवा को सुरक्षित करार दिया था और दुनिया के सामने प्रस्तुत किया था. एक समय यह बीमारी सारी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई थी और डॉ. साल्क ने इसके रोकथाम की दवा ईजाद करके मानव जाति को इस घातक बीमारी से लड़ने का हथियार दिया था. लेकिन 1988 में ग्लोबल पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) की स्थापना की गई. यह पहल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), रोटरी इंटरनेशनल और अन्य जो पोलियो उन्मूलन के लिए वैश्विक स्तर पर दृढ़ संकल्प थे, उनके द्वारा की गई.
दो तरह की पोलियो वैक्सीन का ईजाद हुआ:
दुनियाभर में पोलियो का मुकाबला करने के लिए दो तरह की पोलियो वैक्सीन का ईजाद हुआ. पहला जोनास सॉल्क द्वारा विकसित किया गया टीका, जिसका साल 1952 में पहला परीक्षण किया गया और 12 अप्रैल 1955 को इसे प्रमाणित कर दुनियाभर में उपयोग के लिए प्रस्तुत किया गया. यह निष्क्रिय या मृत पोलियो वायरस की खुराक थी. वहीं, एक ओरल टीका अल्बर्ट साबिन ने भी तनु यानी कमजोर किए गए पोलियो वायरस का उपयोग करके विकसित किया था, जिसका साल 1957 में परीक्षण शुरू हुआ और 1962 में लाइसेंस मिला. सबसे पहले टीका विकसित करने के लिए दुनिया डॉक्टर साल्क का योगदान याद करती है.
पोलियो के लक्षण
क्लीवलैंड क्लिनिक का कहना है कि पोलियो से संक्रमित लगभग 72 फीसदी लोग किसी भी लक्षण का अनुभव नहीं करते हैं. संक्रमित लोगों में से लगभग 25 फीसदी में बुखार, गले में खराश, मतली, सिरदर्द, थकान और शरीर में दर्द जैसे लक्षण होते हैं. शेष कुछ रोगियों में पोलियो के अधिक गंभीर लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि निम्नलिखित:
- पैरेथेसिया- हाथ और पैर में पिन और सुई चुभने जैसा अनुभव होता है.
- मेनिनजाइटिस – मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के आवरण में संक्रमण.
- पक्षाघात – पैर, हाथ को स्थानांतरित करने की क्षमता में कमी या अनुपस्थिति और सांस लेने की मांसपेशियों में खिंचाव.