mohan bhagwat
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नयी दिल्ली. मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) वैसे तो पेशे से एक  एक पशु चिकित्सक हैं लेकिन उन्होंने कर्म क्षेत्र के रूप में RSS को चुना और वर्ष 2009 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक हैं। मोहन भागवत का जन्म 11 सितम्बर, 1950 में महाराष्ट्र के छोटे से शहर चंद्रपुर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम मोहनराव मधुकर राव भागवत है। बता दें कि इनका पूरा परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पहले से ही जुड़ा हुआ था। मोहन भागवत के पिता मधुकर राव भागवत चंद्रपुर क्षेत्र के अध्यक्ष और गुजरात के प्रांत प्रचारक भी रह  थे। इन्ही मधुकर राव ने ही लालकृष्ण आडवाणी का RSS से परिचय करवाया था। मोहन भागवत अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं वहीं इनके छोटे भाई चंद्रपुर RSS से जुड़े हुए  हैं।

कार्य एवं कर्मक्षेत्र 

आपात काल के दौरान अपने भूमिगत कार्य करने के बाद भागवत 1977 में अकोला (महाराष्ट्र) में प्रचारक बनाये  गए और बाद में उन्हें नागपुर और विदर्भ क्षेत्रों की प्रचारक होने कि कमान भी उनके पास आई ।  वहीं वर्ष 1991 में सारे देश में संघ कार्यकर्ताओं के शारीरिक प्रशिक्षण के लिए अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख बनाये गए जो वह 1999 तक रहे।

उनकी कार्यदक्षता को देखते हुए इसी वर्ष 1999 में  उन्हें सारे देश में पूर्णकालिक  काम करने वाले संघ कार्यकर्ताओं का प्रभारी, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख का पद दिया  गया।  जब वर्ष 2000 में राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) और एच।वी। शेषाद्रि ने क्रमश: संघ प्रमुख-सरसंघचालक और महासचिव (सरकार्यवाह) के अपने पद से त्याग पत्र दिए तो के।एस। सुदर्शन को नया संघ प्रमुख और और मोहन भागवत को सरकार्यवाह बनाया गया था।  

वहीं वर्ष 2009 में 21 मार्च को मोहन भागवत को सरसंघचालक का प्रमुख ओहदा दिया गया। संघ का प्रमुख बनने वाले वे युवा नेताओं में से एक हैं।   उन्हें संघ का स्पष्ट भाषी, विनम्र और व्यवहारिक प्रमुख भी माना जाता है जोकि संघ को राजनीति से दूर रखने की एक स्पष्ट दूरदृष्टि रखते हैं।  वे पश्चिमी देशों के घोर विरोधी हैं। 

अपने कार्यकाल में वे अकोला में जिला प्रचारक रहे, फिर संघ की रचना में जिस तरह से प्रांतों का निर्माण किया है उसमें विदर्भ एक अलग प्रांत है। वे विदर्भ के प्रांत प्रचारक रहे हैं । विदर्भ के प्रांत प्रचारक रहते हुए वे नागपुर के संघ मुख्यालय के संपर्क में लगातार बने रहे। विदर्भ के बाद वे बिहार के क्षेत्र प्रचारक भी रहे। 

2000 से 2009 तक वे तीन संघ के सरकार्यवाह बने रहे।  सरकार्यवाह रहते हुए मोहनराव भागवत आमतौर पर चुपचाप ही काम करते रहे और कभी संघ की सीमा के बाहर जाकर न तो मीडिया से कोई बात की और न ही किसी प्रकार का कोई भी  बयान दिया। संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों के मंचों पर वे लगातार संघ को मजबूत करने के लिए बोलते और काम करते रहे हैं । लेकिन 22 मार्च 2009 को नागपुर में जब उन्हें आरएसएस का छठां सरसंघचालक बनाने की घोषणा की गयी तब शायद ही किसी को उम्मीद रही हो कि मोहनराव की संघवाली दृढ़ता, BJP के साथ भी लागू होगी और सबसे पहले उनके पारिवारिक मित्र और पिता के शिष्य लालकृष्ण आडवाणी पर ही लागू होगी।

मोहन भागवत और उनका दृष्टिकोण

मोहन भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने हिन्दुत्व के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है। उन्होंने हमेशा बदलते समय के साथ आगे चलने पर बल दिया है। लेकिन इसके साथ ही RSS संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है। वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से अडिग रहता  है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार तो किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है।

हिन्दू समाज में जातीय असमानताओं के सवाल पर, भागवत का कहना है  कि अस्पृश्यता के लिए कोई काशीं कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अनेकता में एकता के सिद्धान्त के आधार पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोषों पर विशेष ध्यान देना होगा । केवल यही नहीं अपितु इस समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये को दूर करने का प्रयास भी करना होगा  और  इसकी शुरुआत प्रत्येक हिन्दू के घर से करनी होगी।