पत्ते से बने प्लेट को बढ़ावा देने के लिए डॉक्टर ने शुरू की एक पहल, जुड़ें हैं 500 से अधिक परिवार

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हमारे समाज मे ऐसे बहुत से लोग हैं, जो अलग अलग तरह की मुहिम से जुड़े हुए हैं। जो समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। कुछ मुहिम लोगों को ज़िन्दगी देने का काम करते हैं, तो कुछ मुहिम लोगों को रोज़गार देने का काम करते हैं। आज हम ऐसे ही एक शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पत्ते से बने प्लेट के इस्तमाल को बढ़ावा देने के लिए की एक अनोखी पहल की है। 

हम बात कर रहे हैं गुजरात के सूरत में रहने वाले प्रकाश चौहान की। जिसने पत्तल के इस्तमाल को बढ़ावा देने की मुहिम छेड़ी है। आज कल फाइबर प्लेट का काफी ट्रेंड देखने को मिल रहा है। बाज़ारों में भी बस इन्हीं की होड़ देखने को मिल रही है। इन प्लेट्स से पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही सेहत को भी नुकसान पहुंचता है। इन वजह से जो लोग पत्ते से प्लेट बनाकर जीवनयापन कर रहे हैं, उन लोगों के सामने भी एक चुनौती बन गई है। जब इस बात की ओर प्रकाश का ध्यान गया तो उन्होंने यह मुहिम छेड़ी।

प्रकाश पैसे से एक आयुर्वेद चिकित्साधिकारी हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने लगभग 2 वर्ष पहले ‘बदलाव अपने लिए, बदलाव हमारे अपनों के लिए’ नाम से एक पहल की है। जिसके तहत वह हफ्ते में एक दिन पत्ते से बने प्लेट में खाना खाते हैं। प्रकाश की इस पहल से 500 से ज़्यादा परिवार जुड़े हुए हैं।

कैसे गया समस्या पर ध्यान?
प्रकाश कहते हैं कि वह एक चिकित्सा अधिकारी के तौर पर, पिछले ढाई साल से गुजरात के नवसारी जिले में काम कर रहे हैं। जब उनकी पोस्टिंग यहां हुई तो उन्होंने देखा कि लोगों के घर मे एक मशीन बेकार पड़ी हुई है। जब उनका परिचय आस पास के लोगों से हुआ तो उन्होंने उनसे पूछा कि यह मशीन किस काम मे आती है। तो लोगों ने बताया कि इस मशीन से पत्तल बनाएं जाते हैं। लेकिन पत्तल की मांग न होने की वजह से, या मशीन 12-15 सालों से ऐसे ही बेकार पड़ी हुई है।

इसके बाद प्रकाश बताते हैं कि उनके ऑफिस में एक चपरासी काम करते हैं, जिनकी उम्र करीब 45 वर्ष की है। उन्होंने प्रकाश को बताया कि उनके पास एक पत्तल बनानें वाली मशीन है जो बेकार पड़ी हुई है। तब प्रकाश ने अपने साथी चपरासी को दुबारा पत्तल बनाने के काम को शुरू करने की सलाह दी। साथ ही यह भरोसा भी दिलाया कि वह अपने दोस्तों को इसका इस्तमाल करने को राजी करेंगे। लेकिन लोगों को यह बात व्यवहारिक नहीं लगी। साथ ही , यह मशीन के सालों से बंद थीं और इसे फिर से शुरू करना मुश्किल था। इसी बीच एक 80 वर्षीय महिला ने हाथ से पत्ते की प्लेट बनाने का सुझाव दिया और सभी ने इस पर हामी भी भरी।

जिसके बाद प्रकाश बताते हैं कि फिर उन लोगों ने हाथ से प्लेट बनाना शुरू कर दिया। इसके लिए उन्होंने पलाश के पत्तो को जंगल से लाए और नीम के डंठल से उसकी बुनाई शुरू कर पत्तल बनाने लगे। प्रकाश ने इस पहल को अपनी पत्नी के साथ मिलकर शुरू किया था। लेकिन आज उनके साथ लगभग 500 से अधिक परिवार जुड़े हुए हैं। जो हफ्ते में एक दिन पत्तल में खाना खाते हैं।

पत्तल के फायदे-

प्रकाश कहते हैं कि “हमारी परंपरा धूमिल हो रही है औए जंगलों पर निर्भर लोगों की आजीविका का साधन भी खत्म होता जा रहा है। इसलिए इस परंपरा को फिर से शुरू करने के लिए प्रकाश ने पहल शुरू की, ताकि इस पेशे से जुड़े लोगों की मदद की जा सके। प्रकाश बताते हैं कि, आज एक परिवार करीब 1000 पत्तल बनते हैं, जिससे उन्हें 1500 रुपये की कमाई होती है।

इसके अलावा पत्ते की प्लेट को व्यवहार में लाने से अन्य फायदे भी हैं। आज पूरे देश जल संकट की भीषण समस्या से गुज़र रहा है। इसी को देखते हुए प्रकाश ने लगभग 1 महीने तक इस बात पर गौर किया कि 3 सदस्य परिवार में प्रतिदिन खाने के बाद थाली धोने के लिए 8 से 10 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है, लेकिन यदि लोग हफ्ते में एक दिन भी पत्तल का इस्तेमाल करें तो काफी बड़े पैमाने पर पानी और बिजली की बचत हो सकती है।

वहीं प्रकाश अपने ऑफिस से नज़दीक 2 गांव चपलधारा और खजौली में भी पत्तल से बड़े पैमाने पर जैविक खाद बनाने की भी योजना बना रहे हैं। इसके बारे में वह कहते हैं “मैंने इन गांव के शिक्षकों से बात कर स्कूल के पास गड्ढे खुदवा आए हैं। जिसमें खाने के बाद इन पत्थरों को फेंका जा सकता है। ये पत्तल 6 महीने में जैविक खाद बन जाते हैं। धीरे-धीरे हम इसका दायरा बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। जिसका फायदा पूरे गांव के किसानों को मिलेगा।

प्रकाश की इस पहल से लोगों को प्रेरणा मिलती है। उनकी इस मुहिम से बहुत से लोगों को रोज़गार मिला। साथ ही उन्होंने इस मुहिम से देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक कदम भी उठाया है। पत्तल में खाना खाने से सेहत को भी बहुत अधिक फायदा भी होता है।