नागपुर स्टेशन पर बेचा करते थे संतरे, संघर्ष कर खड़ी की 400 करोड़ की ट्रांसपोर्ट कंपनी

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बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका जीवन बहुत संघर्ष में गुज़रता है। लेकिन फिर भी वह एक ऐसी मिसाल कड़ी करते हैं, जो लोगों के लिए सिख बन जाती है। आज हम आपको ऐसी ही एक व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने ज़िंदगी में बहुत से दुःख देखे हैं, लेकिन फिर भी हार नहीं मानी और अपनी ज़िंदगी को एक बेहतर रास्ता दिखाया और लोगों के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं। 

यह कहानी नागपुर के बिज़नेसमैन प्यारे खान की है। जो कभी रेलवे स्टेशन पर संतरा बेचते थे। लेकिन आज वह 400 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली ट्रांसपोर्ट कंपनी अश्मी रोड ट्रांसपोर्ट के मालिक हैं। तो चलिए आज आपको बताते हैं प्यारे खान के संघर्ष के बारे में…

स्लम एरिया में घर था, माँ किराना दुकान चलाती थीं-
प्यारे खान अपनी ज़िंदगी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि, वह दो भाई, बहन और मां-पापा के साथ नागपुर के स्लम एरिया में रहते थे। प्यारे के पिता पहले गांव घूमकर कपड़े बेचा करते थे, लेकिन उसमें कुछ खासी कमाई नहीं हो पाती थी तो उनके पिता ने वह काम बंद कर दिए थे। जिसके बाद बच्चों को पालने के लिए प्यारे की मां ने एक किराने की दुकान शुरू की। उस छोटी सी दुकान से जो भी कमाई होती थी, उसी में उनका पूरा परिवार गुज़ारा करता था। 

प्यारे बताते हैं कि जब वह 12-13 साल के थे तब से ही वह बहार जाकर काम करने लगे थे। वहीं गर्मी की छूटी में वह पुरे दो महीने काम ही करते थे। वह रेलवे स्टेशन पर संतरे बेचा करते थे। वह रोज़ाना लगभग 50-60 रुपए के संतरे बेचते थे। इसके अलावा उन्होंने छोटे-छोटे कई दूसरे काम भी किया करता थे,जैसे गाड़ियां साफ करना आदि।

इसके बाद प्यारे खान अपनी ज़िंदगी के बारे में बताते हुए कहते हैं, जब वह 10वीं में फेल हुए तो उन्होंने पढ़ाई छोरडने का फैसला किया। क्यूंकि उनके घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें। प्यारे खाने ने फिर ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लिया था और एक कूरियर कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करने लगे थे। उस नौकरी के दौरान उनके एक एक्सीडेंट हो गया था, जिसकी वजह से उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। 

माँ के गहने बेचकर खरीदा ऑटो-
नौकरी छोड़ने के कुछ दिन बाद प्यारे ने एक किराये का ऑटो चलाने लगे थे। कुछ साल किराये का ऑटो चलाने के बाद उन्हें लगा कि वह खुद का ऑटो होगा तो बचत ज़्यादा होगी। इसलिए उनकी माँ ने अपने गहने बेचकर 11 हज़ार रुपए प्यारे को दे दिए और बचे हुए पैसों का उन्होंने फाइनेंस करवाया। उसके बाद उन्होंने अपना खुद का एक ऑटो खरीद लिया। ऑटो से हर रोज़ 200 से 300 रुपए बच जाते थे। 

वर्ष 2001 तक यही काम प्यारे करते रहे थे। फिर उनके मन में ऐसे ख्याल आने लगे कि अगर यह काम अब नहीं छोड़ा तो ज़िंदगीभर यही काम करते रह जाएंगे। इसलिए उन्होंने बहुत हिम्मत करके 42,500 रुपए में ऑटो को बेच दिया, जो उनकी ज़िंदगी की पहली सबसे बड़ी रिस्क थी क्योंकि ऑटो से एक फिक्स इनकम हो ही गई थी। 

प्यारे बताते हैं कि उनकी माँ ने उन्हें ऑटो बेचने के लिए मना भी किया था। लेकिन उनके मन में कुछ बड़ा करने का इरादा था। ऑटो बेचकर जो पैसे आए उससे परफ्यूम, कैमरा जैसे सामान कोलकाता से लाकर वह नागपुर में बेचने लगे। फिर साल 2001 में उनकी शादी भी हो गई। वह दुकान लगाने के साथ ही एक ऑर्केस्ट्रा ग्रुप में कीबोर्ड भी बजाने लगे। जहाँ वह ग्रुप टूर पर भी जाया करते थे और अक्सर बसें लगती थीं जिनका हिसाब-किताब का काम सेठ ने उन्हें दे रखा था।

फिर एक दिन उन्होंने अपने सेठ से पूछा कि “हम टूर के लिए बस किराये पर लेते हैं यदि मैं अपनी बस खरीदूं तो क्या आप किराये पर लगाओगे। उन्होंने कहा, हां लग जाएगी।” फिर प्यारे खान ने कुछ पैसे का जुगाड़ किए, कुछ खुद के भी लगाए, कुछ रिश्तेदारों ने दिए और कुछ बैंक से लेकर उन्होंने एक बस खरीद ली। हालांकि, यह काम भी उनका ज़्यादा दिन का नहीं टिक पाया और उन्हें यह भी बंद करना पड़ा। 

सालभर बैंक के चक्कर लगाने के बाद मिला लोन, बदली ज़िंदगी-

इन सब चीज़ों के बाद प्यारे खान बैंकों के चक्कर लगाने लगे, क्योंकि उन्हें खुद का ट्रक खरीदना था। लेकिन उन्हें कोई भी बैंक लोन देने के लिए तैयार नहीं था। क्यूंकि बैंक घर का पता पूछते थे और घर स्लम में था, तो कोई भी बैंक उन्हें लोन अप्रूव नहीं करता था। प्यारे ने पूरे एक साल तक बैंक के चक्कर काटे, जिसके बाद बड़ी मुश्किल से उन्हें एक बैंक से 11 लाख रुपए का लोन मिला।

बैंक के बारे में प्यारे कहते हैं कि उस बैंक में वह बहुत जाते थे, जिस वजह से वहां के मैनेजर को लगा कि आदमी ज़रूरतमंद है और उन्होंने प्यारे का काम करने का जुनून भी देखा। इसलिए भी बैंक ने लोन अप्रूव कर दिया। बैंक से लोन मिलने के बाद प्यारे खान ने अपना पहला ट्रक खरीदा और इसे नागपुर से अहमदाबाद के बीच चलाया। कुछ दिनों बाद ही ट्रक का एक्सीडेंट हो गया।

एक्सीडेंट के बाद रिश्तेदारों ने कहा कि ट्रक बैंक को वापस कर दो। तुम ये काम नहीं कर पाओगे। लेकिन फिर प्यारे दुर्घटना वाली जगह पर गए और अपना ट्रक वापस लाए। ड्राइवर को भी उन्होंने एडमिट करवाया। इन सब चीज़ों के होने के बाद भी उन्होंने ट्रक को बनवाकर फिर से रोड पर उतारा। बैंक को समझाया कि इतना बड़ा एक्सीडेंट हुआ है, दो-तीन महीने की दिक्कत है फिर किस्त शुरू कर देंगे। जिसके बाद प्यारे का काम एक बार फिर से चलने लगा था।

साल 2007 से सही मायने में शुरू हुआ काम-

प्यारे खान बताते हैं कि, उन्होंने साल 2005 में एक-दो ट्रक और खरीद लिए। फिर वर्ष 2007 तक में उनके पास दस से बारह ट्रक हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने अश्मी रोड ट्रांसपोर्ट के नाम से अपनी कंपनी रजिस्टर्ड करवाई। प्यारे कहते हैं कि सही मायनों में उनका काम साल 2007 से शुरू हुआ। 

उन्होंने ऐसी जगहों पर काम लेना शुरू किया जहां दूसरे करने से डरते थे, जो बहुत रिस्क में होते थे। जिसके बाद धीरे-धीरे बड़े ग्रुप्स ने भी उन्हें काम देना शुरू कर दिया। प्यारे खान ने कुछ साल पहले दो पेट्रोल पंप भी खोले है।

प्यारे खान की कंपनी का आज 400 करोड़ से ऊपर का टर्नओवर है। जिसमें 700 से ज़्यादा कर्मचारी हैं। वहीं उनकी भविष्य की योजना है कि उन्हें अगले दो साल तक अपनी कंपनी का टर्नओवर एक हज़ार करोड़ तक पहुंचाना है। इन बातों को लेकर प्यार खान कहते हैं कि वह कभी भी सक्सेस के पीछे नहीं भागे बल्कि वह काम के पीछे भागे। वह जिस भी काम में लगे, उसे पूरा किए बिना छोड़ा नहीं और उन्होंने खुद को पूरी तरह उसमें झोंक दिया था। इन्हीं सब चीज़ों को वह अपने सफलता का राज़ मानते हैं। 

प्यारे खान के इस जज़्बे और काम को करने के लगन से हम सभी को एक बहुत बड़ी सिख मिलती है कि कभी भी किसी भी चीज़ से हार नहीं माननी चाहिए, बस अपना काम लगातार करते रहना चाहिए।