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आज यानी 13 अगस्त 2020 को अहिल्याबाई होलकर की 225वीं पुण्यतिथि है. अहिल्याबाई मालवा की महारानी के साथ महान शाहक थी. वह बहुत ही साधारण तरीके से जीना पसंद करती थीं. लोग प्यार से उन्हें राजमाता अहिल्याबाई होल्कर भी कहते थे. 

जीवन परिचय
अहिल्या बाई का जन्म 31 मई 1725 में महाराष्ट्र के चंडी गांव में हुआ था. उनके पिता मनकोजी शिंदे थे, जो गांव के पाटिल थे. ऐसे समय मे जब कोई स्त्री शिक्षा का ख्याल भी अपने मन में नहीं लाती थी, तब उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया. 

जब वह महज 8 वर्ष की थी, तब उनका गरीबों के लिए दया-भाव, चरित्र और सरलता देखकर मल्हार राव होल्कर उनसे प्रभावित हुए थे. मल्हार राव पेशवा बाजीराव की सेना में एक कमांडर थे. उन्हें अहिल्याबाई की अच्छाई इतनी पसंद आई कि, उन्होंने उनकी शादी अपने बेटे खंडेराव से करवा दी. इस तरह महज 8 वर्ष की आयु में वह दुल्हन बनकर मराठा समुदाय के होल्कर राजघराने में पहुंची. 1754 में अहिल्याबाई के पति कुंभेर की लड़ाई में शहीद हो गए. वह उस वक्त महज़ 29 वर्ष की थीं. जिसके बाद उनके ससुर के कहने पर अहिल्याबाई ने सैन्य मामलों और प्रशासनिक मामलों में अपनी रुचि दिखाई और उन्हें अच्छे तरीके से अंजाम दिया. 12 साल बाद उनके ससुर मल्हार की भी मृत्यु हो गई. जिसके बाद उन्होंने मालवा साम्राज्य की महारानी का ताज पहनाया गया.

जिसके बाद रानी अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को सैन्य कमांडर बनाया और खुद भी कई युद्ध का नेतृत्व किया. कुछ समय बाद उन्होंने महेश्वर को अपनी राजधानी के रूप में चुना. उन्होंने विधवा महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने में अग्रसर थीं. इंदौर को एक छोटे-से गांव से समृद्ध और सजीव शहर बनाने में अहम भूमिका निभाई.

मंदिरों का जीर्णोद्धार
अहिल्याबाई ने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया. जिसे औरंगजेब द्वारा तोड़ा गया था. वर्ष 1785 में वाराणसी में गंगा किनारे घाट, महल और दो मंदिर भी बनवाए जो आज अहिल्याबाई घाट के नाम से प्रसिद्ध है. उन्होंने मणिकर्णिकाघाट पर बाबा तारकेश्वर महादेव के मंदिर निर्माण के साथ लोलार्क कुंड का जीर्णोद्धार कराया था. पंचगंगा घाट पर बनवाया गया हजारा देव दीपावली पर उनकी कीर्ति का प्रतीक बन जाता है.

वर्ष 1783 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने बिखरे पड़े सोमनाथ के मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया, जिसे सन् 1026 में महमूद ग़ज़नवी द्वारा तहस-नहस कर दिया गया था. रानी अहिल्याबाई ने इस मंदिर में गर्भग्रह को जमीन के अंदर बनाया था. उनका मकसद सिर्फ इतना था कि विध्वंशक शक्तियों से अपने शिव को दूर रखें. आज इस मंदिर को ओल्ड सोमनाथ मंदिर और अहिल्याबाई मंदिर के नाम से जाना जाता है. साथ ही उन्होंने भारत के कई अन्य मंदिरों का जीर्णोद्धार किया.  भारत के सभी प्रसिद्ध और बड़े मंदिरों और तीर्थस्थलों के निर्माण कार्य के लिए भी उन्हें याद किया जाता है.हिमालय से लेकर दक्षिण भारत के कोने-कोने तक उन्होंने मंदिर बनवाएं. गया, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका, बद्रीनारायण, रामेश्वर और जगन्नाथ पुरी के ख्यातिप्राप्त मंदिरों में उन्होंने खूब काम करवाए.

निधन
रानी अहिल्याबाई का सन 1795 में निधन हो गया. जब तक वह जीवित थीं उन्होंने बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया. उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है. वह अपनी उदारता और प्रजावत्सलता के लिए आज भी प्रसिद्ध हैं.