Time for a change in Indian cricket, a year after the defeat of the World Cup 2019

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By: अभिषेक दुबे
(वरिष्ठ सलाहकार, प्रसार भारती, लेखक और खेल समीक्षक) 

कोरोना संकट के बीच लॉकडाउन ने जीवन में एक ठहराव सा आ गया है।  खेल के मैदान पर भी अब अजीबोगरीब सन्नाटा पसरा हुवा है। कहीं फुटबॉल, कहीं मोटरस्पोर्ट तो कहीं क्रिकेट शुरू तो हुवा है, लेकिन वो शानो-शौकत और वो रौनक वापस लौटने में अभी वक़्त लगेगा। जीवन की ही तरह खेल के मैदान पर जब ठहराव आता है, तो पीछे मुड़कर अतीत की तरफ झाकना लाज़मी है।  लेकिन इसका मज़ा दोगुना हो जाता है, जब हम अतीत से नसीहत लेते है और भविष्य में उसे अमली-जामा पहनाने की तैयारी करते है।  आज से ठीक एक बरस पहले, इंग्लैंड ने किसी तरह से न्यूज़ीलैण्ड को हराकर पहली बार वर्ल्ड कप पर क़ब्ज़ा किया था।  लेकिन क्रिकेट के इस जुनूनी देश के लिए इस वर्ल्ड कप के मायने कुछ और थे।  भारत पूरे टूर्नामेंट में एक ज़बरदस्त फॉर्म में था और तीसरी बार वर्ल्ड कप जीतने के बहुत करीब था। कपिल देव और महेंद्र सिंह धोनी के बाद विराट कोहली वर्ल्ड कप चैंपियन टीम के कप्तान बनने से बस दो ही क़दम दूर थे। न्यूज़ीलैण्ड ने भारत की टॉप आर्डर को जल्दी चलता कर दिया और कमज़ोर कड़ी मिडिल आर्डर पर हल्ला बोल दिया।  भारत चारो खाने चित्त होकर टूर्नामेंट से बाहर हो गया। 

भारत की हार को अब एक साल हो गए, लेकिन इसके बावजूद ये हार हमें क्यों कचोटता है?

2011 वर्ल्ड कप और 2013 चैंपियंस टूर्नामेंट के बाद भारत हर बार अंतराष्ट्रीय क्रिकेट संस्था के हर बड़े टूर्नामेंट में नॉक आउट स्टेज तक पहुंचा है, लेकिन बावजूद इसके वो चैंपियन बनने में नाकाम रहा है।  भारत 2015 और 2019 वर्ल्ड कप में सेमिफाइनल से बाहर हो गया, 2014 टी २० वर्ल्ड कप और 2017 चैंपियंस ट्रॉफी में फाइनल मैच हार गया और 2016 टी 20 वर्ल्ड कप का सेमिफाइनल मुक़ाबला हार गया।  अहम ये है कि इनमे अधिकतर मुक़ाबले भारत ने विराट कोहली की कप्तानी में हारे है।  ऐसे में पिछले पांच वर्ष में बड़े टूर्नामेंट के अहम मुक़ाबले को ना जीत पाने को लेकर सवाल उठना लाज़मी है। 

इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और आधुनिक क्रिकेट की बेहतरीन समझ रखने वाले नासिर हुसैन की इसको लेकर राय अहम है।  ‘मुझे लगता है कि आईसीसी टूर्नामेंट में टीम सिलेक्शन की वजह से भारत को खामियाजा भुगतना पड़ा है।  बाहर में मुश्किल परिस्थिति में खुद को ढाल ना पाना भी एक हद तक वजह है।  एक ही गेम प्लान या योजना के साथ मैच में जाना हमेशा कारगर नहीं होता।  अलग अलग परिस्थिति में खुद को ढालना, जैसे गेंद स्विंग कर रही हो, रोहित शर्मा और विराट कोहली सस्ते में आउट हो गए हो, स्कोर 20 /2 हो तो फिर आपकी रणनीति क्या होती  है? भारतीय टॉप आर्डर बेहद मज़बूत है और दुर्भाग्य से कई मौके पर यही टीम की कमज़ोरी साबित हुवा।  अगर गेंदबाज़ों के लिए बेअसर विकेट है, रोहित और विराट ने शतक मार दिया तो सबकुछ सही लगता है, लेकिन अगर प्लान A कारगर नहीं हुवा तो प्लान बी का ना होना टीम की सबसे कमज़ोर कड़ी साबित हुवा है।

जीवन की ही तरह क्रिकेट में भी हम योजना बनाकर फेल तो हो सकते हैं लेकिन योजना बनाने में फेल नहीं हो सकते। लेकिन क्या टीम इंडिया की ये एक ऐसी कमज़ोरी रही है जिसके बारे में शायद हर किसी को अंदाजा रहा है।  फिर विराट कोहली और रवि शास्त्री की अगुवाई में टीम प्रबंधन इसका हल निकालने में कामयाब क्यों नहीं रहा है।  हर दौर अपने साथ समस्या को लेकर आता है और टीम प्रबंधन का ज़िम्मा उसका हल निकलना होता है।  मिसाल के तौर पर सौरव गांगुली और जॉन राइट के दौर में भी सौरव गांगुली और सचिन तेंदुलकर के बाद मिडिल आर्डर में अनुभव की कमी और उम्दा आलराउंडर नहीं होने की वजह से टीम के संतुलन को लेकर सवाल उठे थे।  लेकिन कप्तान सौरव ने इन समस्या का हल निकलने के लिए पहले सचिन को और फिर खुद को मिडिल आर्डर में भेजा , सेहवाग और सचिन की ओपनिंग जोड़ी बनायी और राहुल द्रविड़ से विकेटकीपिंग की ज़िम्मेदारी सँभालने को कहा गया।  सवाल ये है कि मौजूदा टीम मैनेजमेंट वर्तमान दिक्कतों का हल निकालने में नाकाम क्यों रहा है?

विराट कोहली को भारतीय टेस्ट टीम का कप्तान बने 6 साल हो गए हैं और बीते 3 साल से वो टेस्ट, टी 20 और एकदिवसीय मैच, तीनो ही फॉर्मेट में भारतीय टीम के कप्तान हैं।  इतना वक़्त किसी भी कप्तान की कप्तानी का आकलन करने के लिए मुनासिब होता है।  विराट की कप्तानी पर चर्चा करते हुए नासिर हुसैन कहते हैं-‘कप्तान के तौर पर उन्होंने अपनी पहचान बनायी है, उनकी कप्तानी के कई पहलू ऐसे हैं जिसमे सुधार हुवा है और कई बातें ऐसी हैं जिनमे सुधार की गुंजाइश है।  मैं उन्हें ‘टिंकर मैन’ कहता हूँ, हर ओवर में वो खुद आगे बढ़कर बदलाव करते रहते हैं। 

कुछ लोग कह सकते हैं कि टीम के चयन में कोहली का क्या लेना देना, लेकिन टीम का चयन एक ऐसा पहलू है जिसमे सुधार की जरुरत है ‘.  विराट कोहली की कप्तानी की पहचान ये है कि खेल के पहले ओवर से लेकर आख़िरी ओवर तक वो हर पहलू पर खुद का नियंत्रण रखना चाहते हैं।  इस मामले में उनकी ऊर्जा काबिले तारीफ। लेकिन क्या इस ऊर्जा के साथ अपनी इस शैली को दिन-रात और साल भर में लगातार क्रिकेट के बीच बनाये रखना मुमकिन है ? या फिर टीम इंडिया और विराट कोहली के बेहतर भविष्य के लिए ज़िम्मेदारियों को नए सरीके से बाटने का वक़्त आ गया है?  

विराट कोहली ने खुद 2023 वर्ल्ड कप तक कप्तानी करने और हर फॉर्मेट में खेलने की मंशा साफ़ कर दी है।  पूर्व भारतीय कप्तान और बीसीसीआई प्रमुख सौरव गांगुली भी अलग-अलग फॉर्मेट में अलग कप्तान के खिलाफ बताये जाते है।  कई पूर्व क्रिकेटर और क्रिकेट से जुड़े लोगों का भी मानना रहा है कि दो अलग कप्तान होने से सत्ता के दो केंद्र बनने का खतरा होगा। लेकिन इसके बावजूद भारतीय क्रिकेट में स्थाई तौर पर टेस्ट क्रिकेट के लिए अलग और सीमित ओवर के क्रिकेट के लिए अलग कप्तान बनाये जाने का वक़्त आ आगे है।

पहला, सुनील गावस्कर ने अगर भारतीय क्रिकेट को पेशेवर नजरिया दिया तो कपिल देव ने भारतीय टीम को कभी हार नहीं मानने का ज़ज़्बा।  सौरव गांगुली ने भारतीय टीम को विरोधी के मांद में घुसकर मारने का भरोसा दिया तो महेंद्र सिंह धोनी कम से कम सीमित ओवर क्रिकेट में भारतीय टीम को बुलंदियों तक ले गए।  जैसे एलन बॉर्डर, मार्क टेलर, स्टीव वॉ से लेकर रिकी पोंटिंग दौर तक ऑस्ट्रेलिया टीम का क्रिकेट के बेताज बादशाह के तौर पर बोलबाला था, ठीक उसी तरह भारतीय क्रिकेट प्रेमी गावस्कर-कपिल-सौरव-धोनी दौर के बाद भारतीय क्रिकेट को माउंट एवरेस्ट पर देखने को बेताब हैं।  भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड का विश्व क्रिकेट में बोलबाला है तो इंडियन प्रीमियर लीग ने भारतीय क्रिकेट को मज़बूत बेंच-स्ट्रेंथ, पैसा और पेशेवर नजरिया देने का काम किया है।  ऐसे में भारतीय क्रिकेट को हर वो क़दम उठाना चाहिए जो वहां तक पहुंचाने में मददगार हो। 

दूसरा, विराट कोहली में वो तेवर और कलेवर है कि अगर वो अपना पूरा ध्यान टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी पर दें, तो भारत घरेलू ज़मीन से विदेशी धरती पर फतह पा सकता है।  अहम् ये है कि विराट कोहली की कप्तानी में भारत  अबतक अपनी ज़मीन पर तो धातक रहा है, लेकिन इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और न्यूज़ीलैण्ड में सीरीज गवा चुका है।  जैसा कि सौरव गांगुली का मन्ना रहा है इतिहास में महान टीम बनने के लिए इन देशों में परचम फैलाना जरूरी है।

तीसरा, जैसा की कोच और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर टॉम मूडी का मानना है, विराट कोहली मौजूदा दौर के महान बल्लेबाज़ है और सर्वकालीन महानतम बल्लेबाज़ों में से एक बनने का माद्दा रखते है।  अगर विराट पर तीनो ही फॉर्मेट में कप्तानी करने की भारी ज़िम्मेदारी रही, तो इससे उनके करियर का तीन से चार साल काम होने का खतरा है।  अगर एकदिवसीय मैच की कप्तानी किसी और को दी जाती है तो विराट एक दिवसीय मैच और टी 20 क्रिकेट में अपनी बल्लेबाज़ी पर पूरा ध्यान दे सकेंगे। 

चौथा, आधुनिक क्रिकेट तीन फॉर्मेट में खेला जाता है और इंडियन प्रीमियर लीग और बिग बैश जैसे पेशेवर लीग ने क्रिकेट केलिन्डर को बहुत ही व्यस्त बना दिया है।  ऐसे में हर  देश में देर सबेर अलग फॉर्मेट में अलग कप्तान के फॉर्मूले पर हर देश को चलना ही होगा। इंग्लैंड ने इस फॉर्मूले को बहखूबी अपनाया है।  ज़ाहिर तौर पर भारत को भी इसे अपनाने में देर नहीं करना चाहिए।  वैसे भी, कोरोना संकट के बाद आर्थिक वजहों से क्रिकेट कैलेंडर पर दबाव और बढ़ने के आसार हैं। 

पांचवा, भारत को अगले तीन साल में दो टी-20 वर्ल्ड कप और 2023 वर्ल्ड कप में हिस्सा लेना है।  अगर सीमित ओवर में कप्तानी की ज़िम्मेदारी रोहित शर्मा को दे दी जाती है, तो विराट कोहली अपना पूरा ध्यान टेस्ट चैंपियनशिप जीतने में लगा सकेंगे।  छठा, रोहित शर्मा ने इंडियन प्रीमियर लीग में मुंबई इंडियंस के लिए बेहतरीन कप्तानी की है।  विराट कोहली की गैर हाज़िरी में निधास ट्रॉफी और एशिया कप में उनकी अगुवाई में टीम चैंपियन होने में कामयाब रहा। 

 दुनिया में उनकी अपनी साख और पहचान है और साथी खिलाड़ी उन्हें सम्मान से देखते है।  भारतीय क्रिकेट का स्वभाग्य है कि एक ही दौर में उसके पास विराट कोहली और  रोहित शर्मा के तौर पर दो अनमोल हीरे है।  क्यों ना इन दो हीरों का इस्तेमाल कर भारतीय क्रिकेट का परचम टेस्ट चैंपियनशिप से लेकर टी 20 वर्ल्ड कप और 2023 वर्ल्ड कप तक फेहराया जाए।  वर्ल्ड कप 2019 की हार के एक साल बाद हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ से दो अलग कप्तान के फॉर्मूले पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है।