हिंदी साहित्य के ‘उपन्यास सम्राट’ मुंशी प्रेमचंद

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By : डॉ अंशु शुक्ला

आज 31 जुलाई 2020 को  हम मुंशी प्रेमचंद की 140वीं जन्मतिथि मना रहें है। इन्हें हम हिंदी साहित्य के  युगप्रवर्तक कहानीकार के रूप में  जानते हैं, बचपन से ही इनकी कहानियां पढ़ रहे है या ये कहे कि इनकी कहानियों के साथ ही  हम बड़े हुए है।   प्रेमचंद जी पहले ‘नवाबराय’ के नाम से उर्दू में लिखते थे। उर्दू में लिखा हुआ उनका कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ 1907 में प्रकाशित हुआ था। स्वातंत्र्य भावना से ओत-प्रोत होने के कारण इस कहानी संकलन को अंग्रेज सरकार ने ज़ब्त कर लिया था। कालांतर में वें हिंदी में ‘प्रेमचंद’ के नाम से लिखने लगे और उनका यह नाम कथा सहित्य में अमर हो गया। प्रेमचंद जी का पहला कहानी संग्रह ‘पंच परमेश्वर’ 1916 में तथा अंतिम ‘कफन’ 1936 ई. में प्रकाशित हुआ और हम इस काल को प्रेमचंद युग  के नाम से जानते है। प्रेमचंद जी ने लगभग 300 कहानियों की रचना की जो ‘मानसरोवर’ के आठ खंडों में प्रकाशित हुई। 

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में विषय-वैविध्य दिखाई पड़ता है। किसी अन्य कथाकार ने जीवन के इतने व्यापक फलक को अपनी कहानियों में नहीं समेटा, जितना प्रेमचंद ने। उनकी कहानियां अपने परिवेश से, अपने आसपास के जीवन से जुड़ी हुई हैं। उनकी अधिकांश कहानियों का विषय ग्रामीण जीवन से लिया गया है, किंतु  कई कहानियां कस्बे की जिंदगी या स्कूल-कॉलेज से भी जुड़ी हुई है। उनकी कहानियों के पात्र हर वर्ग, जाति के हैं। कोई हिंदू है तो कोई मुसलमान, कोई किसान है, तो कोई विद्यार्थी।  अपनी कहानियों में उन्होंने विविध समस्याओं को भी उठाया है जैसे-  जमींदारों द्वारा किसानों  के शोषण की समस्या, सूदखोरों के शोषण से पिसते ग्रामीणों की समस्या, छुआछूत की समस्या, रूढ़ि एवं अंधविश्वास, संयुक्त परिवार की समस्या भ्रष्टाचार एवम व्यक्तिगत जीवन की समस्याएं आदि सम्मिलित है।

प्रेमचंद की प्रारंभिक कहानियों में आदर्श का पुट दिया गया है। पंच परमेश्वर, आत्माराम, प्रेरणा, ईदगाह, नमक का दारोगा, आदि कहानियों का मूल उद्देश्य है- सच का बोलबाला और झूठे का मुंह काला। जबकि परवर्ती कहानियां जैसे- ‘पूस की रात’ और ‘कफन’ तक आते- आते उनका दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया। और वें जिंदगी के यथार्थ से जुड़ गए। इस प्रकार उनकी पहले की कहानियां आदर्शवादी है तथा बाद  की लिखी कहानियां यथार्थवादी की श्रेणी में आती है। 

हिंदी कहानी में मनोविज्ञान का प्रवेश कराने का श्रेय प्रेमचंद को ही दिया जा सकता है। उन्होंने चरित्र- चित्रण में मनोविज्ञान का समावेश किया तथा पात्रों में मनोविश्लेषण पर ध्यान दिया। ‘नशा’, ‘मनोवृत्ति’ ,ईदगाह’  मनोवैज्ञानिक सत्य पर आधारित कहानियां है। प्रेमचंद की कहानी कला में भाषा का विशेष योगदान है। उनकी कहानियां भाषा की दृष्टि से बेजोड़ है। भाषा के कारण ही उनकी कहानियों की पठनीयता एवं सम्प्रेषणीयता बढ़ गई है। आज जिस ‘दलित चेतना’ को कहानियों में अभिव्यक्त किया जा रहा है उसे बहुत पहले ही प्रेमचंद जी ने ‘ठाकुर का कुआं’ और ‘सदगति’ जैसी कहानियों में अभिव्यक्ति दे चुके हैं।  ग्रामीण समाज की सच्चाइयों को अपनी कहानियों की माध्यम से प्रेमचंद जी ने बहुत बेहतरीन ढंग से उजागर किया । ऐसे सहित्य सृजन कर्ता को उनकी जन्मशती पर  कोटि- कोटि नमन।