Tulsidas symbolizes the identity of Indian poetry

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गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सबसे दुर्निवार कवि हैं। वे भारतीय कविता की अस्मिता के प्रतीक हैं। लोकभाषा में रचित कविता भी किस तरह से अपने सार्वभौम-शास्वत संदेश और  क्लासिकी शिल्प के कारण विश्वव्यापी लोकप्रियता प्राप्त कर सकती है यह हम तुलसी से सीख सकते हैं। उनसे सहमत-  असहमत हुआ जा सकता है। लेकिन उनसे बचना  असंभव है। उनकी कोई- न-कोई काव्य- पंक्ति जीवन के किसी- न-किसी संदर्भ में  आ जाती है। रामचरितमानस की रचना द्वारा उन्होंने भारतीय संस्कृति और समाज को एकजुटता तथा मजबूती प्रदान की। यह मानव मूल्यों की दृष्टि से समूचे विश्व का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। यह नवीनता, मौलिकता और गहनता की दृष्टि से अप्रतिम है।इसमें व्यापकता और गहराई, यथार्थ एवं आदर्श तथा सूक्ष्मता एवं विराटता का अद्भुत संश्लेषण हुआ है। यह एक राष्ट्रीय महाकाव्य है जो भगवती भागीरथी के समान सबका हित साधने के लिए रचा गया है ।इसलिए रामचरितमानस को लोकहितकारी महाकाव्य भी कहा जाता है।वह मानव जीवन के बृहत्तर मूल्यबोध का कभी न खत्म होने वाला आविष्कार है जिसमें सरल और आदर्श जीवन की प्रतिष्ठा की गई है।

तुलसी के अनुसार राम का जन्म ही लोक कल्याण के लिए हुआ है। वस्तुतः लोकहित के लिए उत्सर्ग की यात्रा का नाम ही राम है। वे आरंभ से अंत तक त्याग की प्रतिमूर्ति बनकर उभरते हैं। राम स्वयं राज्य-त्याग, सीता परित्याग और अहं के त्याग द्वारा त्याग का सर्वोच्च प्रतिमान उपस्थित करते हैं। इनके ठीक विपरीत भोगवादी सत्ता का प्रतीक रावण है जिसका अर्थ ही है जो रव अर्थात शोर करे, संग्रह करे, संसाधनों का दुरुपयोग करे। तुलसीदास ने राम को ‘ भूपाल चूड़ामणिम्’ अर्थात भूमि का पालन करने वालों का सिरमौर कहा है जिनके राज्य में पर्यावरण बेहद संतुलित है। जबकि रावण विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सहारे इस धरती का दोहन करने वाला है। वह शोषक चरित्र का है।तुलसी भलीभांति जानतेथे कि सुन्दर और शक्तिशाली व्यक्ति भी कुपंथगामी हो सकता है। फलतः वे राम के व्यक्तित्व में शक्ति और सौंदर्य के साथ शील का भी समन्वय करते हैं। वे स्थितिप्रज्ञ हैं जिन्हें राज्याभिषेक के समाचार से न तो हर्ष होता है और न ही वनवास का आदेश सुनकर कोई दुख होता है। वे सर्वत्र धन, वर्ण और जाति की ठसक का निषेध करते हैं।उनका व्यवहार पशु-पक्षियों, वन्य-जीवों एवं चराचर जगत के प्रति स्नेह और सम्मान से परिपूर्ण है।

इनकी रचनाएँ गुण और परिमाण दोनों ही दृष्टियों से  अत्यंत  उत्कृष्ट, विपुल एवं कालजयी हैं ।कदाचित वे विश्व के ऐसे महाकवि हैं जिसने लोक जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है । उन्होंने मानव की सार्वभौम  और शाश्वत  अंतर्वृत्तियों का चित्रण जिस काव्यात्मक सौष्ठव के साथ किया वह सहृदय पाठक के लिए रमणीय वस्तु है।एक कठिन समय में  देश, समाज और मानव- जाति को  जिस गरिमा तथा  संजीदगी से उन्नयन का मार्ग बतलाया वह एकांत विरल है ।तुलसी ने   भाव, विचार, चिंतन, दर्शन, रूप, शिल्प  और भाषिक अनुप्रयोग  आदि सभी दृष्टियों से हिंदी काव्य को उस स्थान पर पहुँचा दिया जिसके आगे राह नहीं। इनकी कविता की तरह इनका काव्य-चिंतन भी भारतीय साहित्य की अनमोल धरोहर है। आज जब अयोध्या में विश्वस्तरीय भव्य राम मंदिर बनने जा रहा है तो यह जरूरी हो जाता है कि हम राम नाम को वैश्विक व्याप्ति प्रदान करने वाले और मध्य काल के भयावह दौर में भारतीय समाज को एकजुट रखने वाले विश्व के सबसे लोकप्रिय महाकवि गोस्वामी तुलसीदास को याद करें। अयोध्या में एक विश्वस्तरीय तुलसी शोध पीठ स्थापित करें । एक बार पुनः महाकवि को उनकी जयंती पर कोटि कोटि नमन ।

-डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय