अवध के क्रांतिद्रष्टा जन शायर अदम गोंडवी का पुण्य स्मरण

  • हिन्दी गज़ल को लोकतांत्रिक बनाने वाले शायर

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लेखक: डॉ .करुणाशंकर उपाध्याय

अदम गोंडवी का नाम लेते ही एक ऐसे प्रतिरोधी स्वर का विचार मन में आता है जो स्वाधीन भारत की व्यवस्था की तमाम विसंगतियों पर प्रखर काव्यात्मक आक्रमण करता है। उन विद्रूपताओं को उघाड़ कर सबके सामने रख देता है। आप  सही मायने में लोकजीवन और लोकसंघर्ष के गायक रहे हैं।  ये   कबीर, तुलसी ,निराला और नागार्जुन   की परंपरा में आते हैं  । इन्होंने  भारतीय समाज का,स्वाधीन भारत की राजनीति का पुनर्विश्लेषण प्रस्तुत किया  है। इनके एक-एक शेर व्यवस्था की चूलें हिला देने के लिए पर्याप्त हैं।ऐसा क्रांतिकारी और जनदरदी शायर दूसरा नहीं हुआ है। हिंदी गजल को सामंती दुनिया से ठोस और कठोर भूमि पर उतारने का श्रेय अदम गोंडवी को ही है।

अदम जी गहरी लोकसंपृक्ति के रचनाकार हैं। इन्होंने बड़े ही निकट से भारतीय जनता विशेष रूप से ग्रामीण जनता का शोषण देखा है। उसके साथ होने वाले तमाम भेदभाव,शोषण,अत्याचार,भ्रष्टाचार और अन्याय को देखा-समझा है। हमारा लोकतंत्र किस तरह राजनीतिक दुष्चक्र में फंसकर जनविरोधी हो गया है उस पर बड़ी बारीकी से आपने विचार किया है। हमारे समाज और राजनीति की गलाजत आपके विद्रोही स्वभाव को क्रांति के लिए उकसाती है।आप राजनीति के तमाम छद्मों और प्रपंचों का पर्दाफाश करते हैं। आपने भलीभांति महसूस किया है कि आजाद भारत की दुर्दशा में जितनी भूमिका राजनीति की है उससे कम अफसरशाही और लालफीताशाही की नहीं है। आखिर यह साफगोई और कहां मिलेगी?    ” जो उलझकर रह गई है फाइलों के जाल में। वह योजना गांव तक पहुंचेगी कितने साल में। ” इसी तरह राजनीति के कृष्ण पक्ष पर ऐसी बेबाक़ टिप्पणी अन्यत्र दुर्लभ है-” काजू भुनी प्लेट में,व्हिस्की गिलास में। रामराज उतरा है विधायक निवास में। ” अदम जी अपने इसी विशिष्ट तेवर के कारण जनता के दुश्मनों के आंख की किरकिरी रहे हैं। इनकी साफगोई और कथन भंगिमा राजनीति और समाज के ठेकेदारों के ढोंग को पर्त-दर-पर्त उघाड़कर पूरी व्यवस्था की शल्य चिकित्सा करती है। इन्होंने राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों पर जिस तरह से प्रखर काव्यात्मक आक्रमण किया है वह अपना सानी आप ही है।

अदम गोंडवी इस अर्थ में विशिष्ट हैं कि वे हिंदी ग़ज़ल में लोकतंत्र लाते हैं। उसे जनधर्मी और जनदरदी बनाते हैं। आप सच्चे अर्थों में लोकवेत्ता हैं। अपने कवि-कर्म के प्रति अत्यधिक सचेत होने के कारण आपकी शायरी भारतीय राजनीति और समाज-व्यवस्था का अभिनव विमर्श प्रस्तुत करते हैं। आप हिंदी ग़ज़ल को बेवा के माथे की शिकन तक ले जाते हैं। अपने समय से सार्थक मुठभेड़ करने के कारण इनकी गज़लें समय और समाज का सार्थक प्रतिबिंब बन गयी हैं। उसमें हर पीड़ित और प्रताड़ित व्यक्ति की कराह सुरक्षित है। आपने केवल राजनीति और समाज-व्यवस्था की ही चीर-फाड़ नहीं की है अपितु धर्म और संस्कृति के विद्रूप पक्ष को भी उभारा है। उसमें हमारे आस-पास का चिर-परिचित यथार्थ,सामंती सोच, सामंतवाद के भग्नावशेष,संप्रदायवाद,क्षेत्रवाद,भाषावाद तथा अंधविश्वास अपने संपूर्ण पाप-पुण्य के साथ उपस्थित है।इनकी गज़लों में आजाद भारत की तमाम नंगी सचाइयां,चीख,तड़प और आक्रोश मिल जाता है। अदम जी एक चिंतक शायर हैं। अतः इनकी शायर अपने परंपरागत रूप का विधिवत अतिक्रमण करती है। उसमें सर्वहारा और उपेक्षित मनुष्यता के दुख-दर्द का उद्घोष है।वह भूखी,गिरती,उठती,छटपटाती जनता का स्वर-संभार है। उसमें विगत साठ वर्षों के यथार्थ का कटु रूप और परित्यक्त सचाइयां सुरक्षित हैं। विवेच्य शायर अपनी गज़लों में मानवता का दर्द लिखता है। भूख के अहसास और मुद्दे को राष्ट्रीय विमर्श का दायरा प्रदान करता है। गांव के परिवेश के चित्रांकन के साथ हर तरह के मुखौटे को उतारता है।वह चमारों की गली के नग्न यथार्थ को जिस भयावहता के साथ उकेरता है वह संवेदनशील पाठक को झकझोर कर रख देता है। 

अदम जी एक चिंतक शायर हैं। गोस्वामी तुलसीदास की भांति कविता में विचार को विशेष तरजीह देते हैं। आप स्वयं लिखते हैं कि—

” मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की।ये समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की।।आप कहते हैं जिसे इस देश का स्वर्णिम अतीत। वह कहानी है महज प्रतिशोध की संत्रास की।।”

आप कवियों और पाठकों को सचेत करते हुए लिखते हैं कि–“याद रखिए यूं नहीं ढलते हैं कविता में विचार। होता है परिपाक धीमी आंच पर अहसास की।।”इस प्रकार अदम जी एक विचारवान शायर और गहन सामाजिक सरोकारों के गज़लकार हैं। इनकी गज़लें स्वाधीन भारत के पीड़ित मनुष्यता की आवाज़ हैं। उनमें इस देश के साधारण जन का सुख-दुख,आशा-आकांक्षा,स्वप्न-संघर्ष का अकृत्रिम रूप प्रकट हुआ है। अदम जी अपनी शायरी द्वारा शोषित और उत्पीडित मनुष्यता की आवाज़ बन गये।आप अपनी गज़लों द्वारा हिंदी साहित्य के इतिहास में सदैव उपस्थित रहेंगे। जब-जब व्यवस्था का अमानवीय चेहरा हमारे सामने आएगा तब-तब साहित्य जगत आपका स्मरण करेगा। जय हिंद जय हिंदी।