रत्न-आभूषण उद्योग ने लगाई गुहार, संकट से बचाए केंद्र सरकार

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उद्योग प्रतिनिधियों की वित्तमंत्री के साथ बैठक

मुंबई. कोरोना महामारी से त्रस्त रत्न-आभूषण उद्योग ने केंद्र सरकार से उद्योग के संकट पर तुरंत ध्यान देने की गुहार लगाई है. इस संबंध में उद्योग की शीर्ष संस्था रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के अध्यक्ष कोलिन शाह, उपाध्यक्ष विपुल शाह व कार्यकारी निदेशक सब्यासाची राय ने वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समक्ष आभूषण उद्योग से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया.

इस प्रेजेंटशन में कोरोना संकट से उबारने के लिए रत्न-आभूषण उद्योग के लिए ई-कॉर्मस पॉलिसी, अनिवार्य रूप से MyKYCBank प्लेटफॉर्म, भारत में विशेष अधिसूचित क्षेत्र के लिए खनिकों द्वारा रफ डायमंड की बिक्री, बी2बी अंतर्राष्ट्रीय हीरे की नीलामी के लिए ऑनलाइन इक्वलाइजेसन लेवी पर स्पष्टीकरण का अनुरोध, पॉलिशड डायमंड पर आय़ात शुल्क में कमी पर निवेदन तथा गोल्ड मोनेटाइज़ेशन स्कीम में संशोधन सहित जैसे कई मुद्दों को वित्तमंत्री के समक्ष रखा गया.

चिंताओं का जल्द समाधान करने का आश्वासन

जीजेईपीसी के अध्यक्ष कोलिन शाह ने कहा कि हमने बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को उद्योग जगत से जुड़ी समस्याओं से अवगत कराया. जिस पर उन्होंने जल्द आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया. जीजेईपीसी अध्यक्ष ने कहा कि कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे कि आने वाले समय में हम उद्योग जगत में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा दें सकें और उसके साथ ही रत्न-आभूषण उद्योग को ‘आत्मनिर्भर’ बना सकें. मैं वित्त मंत्री को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने अपने व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर उद्योग जगत से जुड़ी समस्याओं को सुना और कहा कि वे हमारी चिंताओं का समाधान जल्द करेंगी.

उद्योग को बैंक लोन बहुत कम

जीजेईपीसी के उपाध्यक्ष विपुल शाह ने कहा कि कोविड 19 के कारण पूरे विश्व में उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन आया है. जहां एक तरफ ई- कॉमर्स के व्यवसाय में तेज गति देखने को मिली है. रत्न तथा आभूषण क्षेत्र के लिए भी सहायक ई- कॉर्मस पॉलिसी की शुरूआत कर इस क्षेत्र में भी ई- कॉमर्स व्यवसाय को बढ़ाया जा सकता है. इसके अतिरिक्त परिषद ने 800 डॉलर से नीचे मूल्य के रत्न-आभूषणों के लिए एक समर्पित प्रणाली फास्ट ट्रैक सीमा शुल्क मंजूरी की आवश्यकता पर भी जोर दिया है. भारत में उद्योग के पास लगभग 66,580 करोड़ रुपए का बैंक ऋण है, जो कुल बैंक ऋण का मात्र 0.68% है, जो इस क्षेत्र द्वारा किए गए सामाजिक-आर्थिक योगदान की तुलना में कम है. हमने निजी बैंकों द्वारा विस्तारित सीमित वित्तीय सहायता पर भी अपनी चिंताओं को उठाया है.