फाइल फोटो
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भारत का रक्षा बजट 66 अरब डॉलर

चीन से कुल आयात 65 अरब डॉलर

मुंबई. पहले कोरोना वायरस और फिर भारत की भूमि हड़पने की नापाक कोशिश में 20 भारतीय जवानों को मारने से देश भर में चाइना के खिलाफ भारी आक्रोश पैदा हो गया है. भारतीय नागरिक चाइनीज वस्तुओं का बहिष्कार करने लगे हैं. भारतीय नागरिकों को अब यह समझ में आने लगा है कि चीन भारत को हर साल अरबों डॉलर का माल बेचकर शक्तिशाली होते जा रहा है और भारत के ही पैसे का उपयोग भारतीय सेना के खिलाफ कर रहा है. महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हर साल जितना पैसा हम अपनी सेनाओं को मजबूत करने के लिए खर्च करते हैं, उतना ही पैसा हम चाइनीज वस्तुओं का आयात कर चीन को भेज देते हैं. यानी देश के कुल वार्षिक रक्षा बजट के बराबर ही हम चीन से आयात करते हैं. बीते वित्त ‍वर्ष 2019-20 में भारत ने चीन से कुल 65.1 अरब डॉलर मूल्य के उत्पादों का आयात किया और ‍‍वर्ष के लिए भारत का कुल रक्षा बजट भी 66 अरब डॉलर का रहा. इसलिए अब चीन से आयात घटाकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है.

आयात बढ़ता रहा, घरेलू उद्योग बंद होते रहे

भारत जहां चीन से 65 अरब डॉलर मूल्य का आयात करता हैं, वहीं उसका निर्यात मात्र 16 अरब डॉलर का ही है. इस तरह चीन से हम व्यापार में हर साल 49 अरब डॉलर का भारी घाटा उठाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि भारी व्यापार घाटे की मुख्य वजह यह है कि भारत की पिछली सरकारों ने घरेलू उद्योगों को सरंक्षण देने की बजाय आयात को खुली छूट दी. जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि चीन से आयात बढ़ता रहा. घरेलू उद्योग बंद होते रहे और बेरोजगारी बढती रही. नतीजन बैंकों के डूबत ऋण (एनपीए) भी बढ़ते रहे.

12 वर्षों में 15 गुना बढ़ा चीन से व्यापार घाटा

वर्ष 1999 में हमारे कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी मात्र 5.8% थी, लेकिन वर्ष 2015 में यह बढकर 41% पर जा पहुंची. यानी चीन पर अत्याधिक निर्भरता हो गयी. इस आयात में ना केवल इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स, केमिकल्स, टेलिकॉम और पावर उपकरण शामिल हैं बल्कि अगरबती, मूर्तियां, कपड़े, प्लास्टिक उत्पाद जैसी वस्तुएं भी शामिल हैं, जो हम यहां आसानी से बना सकते हैं और बना भी रहे हैं. लेकिन सरकारों की गलत नीतियों से व्यापार घाटा बढ़ता रहा. वर्ष 2005-06 में चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा सिर्फ 4 अरब डॉलर था, जो वर्ष 2017-18 में 15 गुना बढ़कर 63 अरब डॉलर तक पहुंच गया था.      

आयात घटाने के साथ घरेलू उत्पादन बढ़ाना जरूरी

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अजीत रानाडे का कहना है कि 40 साल पहले भारत और चीन की जीडीपी बराबर थी, लेकिन इन दशकों में चीन ने अपना निर्यात व्यापार बढ़ाने पर ही सबसे ज्यादा जोर दिया और इसके लिए हर तरह के तरीके अपनाए. लगातार निर्यात बढ़ाकर चीन आर्थिक रूप से मजबूत होता गया और आज उसकी जीडीपी का आकार हमसे 5 गुना अधिक है. इसलिए हमें भी तेज विकास करने के लिए चीन से आयात घटाने के साथ घरेलू उत्पादन बढ़ाना होगा.

बहिष्कार से घटने लगा है आयात

हालांकि अब लोगों में जागरूरता आने से चीन से आयात में कमी आने लगी हैं. तभी पिछले तीन वर्षों में भारत का व्यापार घाटा 63 अरब डॉलर से घटकर 49 अरब डॉलर रह गया है. अब चाइनीज वायरस कोरोना के संकट और व्यापारी महासंघ ‘कैट’ के देशव्यापी बहिष्कार आंदोलन के कारण अब आयात और घटने की उम्मीद है. क्योंकि बहिष्कार आंदोलन को देश भर में व्यापक जन समर्थन, केंद्र व राज्य सरकारों के सहयोग तथा कई उद्योग संगठनों से मिल रहे समर्थन से बल मिलने लगा है.

40 उद्योग क्षेत्रों में आयात कमी के संकेत

एक्युट रेटिंग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत वर्ष 2021-220 तक आसानी से चीन से अपने आयात में 8.4 अरब डॉलर की और कमी ला सकता है, जो कुल व्यापार घाटे के 17.3% होगा. एक्युट रेटिंग के अर्थशास्त्री सुमन चौधरी का कहना है कि यह आयात घटाने के लिए भारतीय उद्योगों को किसी तरह के नए निवेश की भी जरूरत नहीं होगी. इतनी उत्पादन क्षमता तो मौजूद है. केमिकल, ऑटो, साइकिल, कृषि और उपकरण, हस्तकला, औषधि, कॉस्मेटिक्स, लेदर, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स सहित 40 ऐसे उद्योग क्षेत्र हैं, जो आसानी से चीन पर निर्भरता कम कर सकते हैं और इसके स्पष्ट संकेत दिखने लगे हैं.