Petrol-Diesel Price
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  • पेट्रोल 34% और डीजल 28% महंगा हुआ एक साल में
  • 50% हिस्सा माल ढुलाई खर्च में डीजल का

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मुंबई. जैसी की आशंका थी, 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव (Election) खत्म होते ही पेट्रोलियम रिफाइनरी कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल (Petrol & Diesel) के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। चुनावों के चलते दो महीनों से कंपनियां सरकार के अप्रत्यक्ष दबाव में मूल्य वृद्धि नहीं कर रही थी, जबकि चुनावों के दौरान विगत दो महीनों (मार्च-अप्रैल 2021) में भी वैश्विक बाजार में क्रूड ऑयल (Crude Oil) में घट-बढ़ के साथ तेजी का रूख बना हुआ था। 

अब कंपनियां ग्लोबल ट्रेंड के अनुरूप कीमतें बढ़ाने लगी हैं। मूल्य वृद्धि से राजस्थान और मध्य प्रदेश में पेट्रोल 100 रुपए के पार हो चुका है तथा जल्द ही महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में 100 का आंकड़ा पार कर सकता है।   

रोजमर्रा की वस्तुएं और महंगी होंगी

विगत 4 दिनों में मूल्य वृद्धि के बाद मुंबई में पेट्रोल 97.61 रुपए और डीजल 88.82 रुपए प्रति लीटर की रिकार्ड ऊंचाई पर बेचा जा रहा है। ऐसे में आम आदमी की सबसे बड़ी चिंता यह है कि पेट्रोल-डीजल विशेषकर डीजल की बढ़ती कीमतें फल-सब्जी, अनाज-दाल, तेल सहित सभी रोजमर्रा की वस्तुओं (Essential Commodities) को महंगा कर देगी। क्योंकि डीजल के महंगा होने से जहां तमाम वस्तुओं की उत्पादन लागत बढ़ेगी, वहीं ट्रकों से माल ढुलाई का भाड़ा भी और बढ़ जाएगा। जब ट्रांसपोर्टरों का ईंधन खर्च बढ़ेगा तो वे भी मजबूरन ट्रक भाड़ा (Truck Freight Rates) और बढ़ाएंगे। लॉकडाउन-2 के कारण हो रहे घाटे से पहले ही ट्रक भाड़े 20 से 25% बढ़ चुके हैं।

ना डीजल में राहत, ना टोल टैक्स में : BGTA

ट्रकों के परिचालन में कुल खर्च में करीब 50% हिस्सा डीजल का होता है। जब पिछले एक साल में डीजल 28% महंगा हुआ है तो माल ढुलाई खर्च करीब 15% बढ़ चुका है। बॉम्बे गुडस ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (BGTA) के मानद सचिव विपुल बंसल का कहना है कि ना सरकार डीजल कीमतों में राहत दे रही है और ना टोल टैक्स (Toll Tax) में। पिछले वर्षों में टोल टैक्स भी काफी मंहगा कर दिया गया है। आज ट्रांसपोर्टरों (Transporters) की कुल माल ढुलाई लागत में 15 से 20% खर्च टोल टैक्स पर होता है। इस वजह से हमारी परिचालन लागत बढ़ती जा रही है और कोविड महामारी (Covid Pandemic) से बिजनेस भी ठप हो रहा है। ऐसे में ट्रांसपोर्टरों पर दोहरी मार पड़ रही है। केंद्र और राज्य सरकारें हमें कोई आर्थिक मदद नहीं दे रही हैं। कम से कम अपने-अपने टैक्स घटा कर डीजल तो कुछ सस्ता कर राहत दे सकती हैं।

टैक्स कटौती ही एकमात्र विकल्प

पेट्रोलियम कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि चूंकि भारत अपनी जरूरत का 80% क्रुड ऑयल आयात (Import) से पूर्ति करता है, लिहाजा ग्लोबल मार्केट में क्रुड ऑयल मंहगा होने से खरीद लागत बढ़ रही है और देश में भी कंपनियों को पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं। ग्लोबल मार्केट में कीमतों में गिरावट की कोई उम्मीद नहीं दिख रही हैं। ब्रेंट क्रूड के दाम विगत एक साल के उच्च स्तर 68।28 डॉलर प्रति बैरल हो गए हैं और जल्द ही 70 डॉलर के पार होने की संभावना है। तेल उत्पादक देश कीमतें ऊपर रखने के लिए आपूर्ति नियंत्रित कर रहे हैं। जिससे कीमतें बढ़ रही हैं। ऐसे में देश में मूल्य वृद्धि रोकने और उपभोक्ताओं को कुछ राहत प्रदान करने के लिए टैक्स कटौती के अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब केंद्र और राज्य सरकारों को टैक्स कटौती करनी ही चाहिए। अन्यथा महंगाई और बढ़ेगी।

सरकार के लिए कमाई का बड़ा जरिया

दरअसल, केंद्र और राज्य सरकारें, दोनों ने ही उत्पाद शुल्क (Excise Duty) और वैट (VAT) के रूप में पेट्रोल-डीजल पर करीब 185% यानी 52 रुपए का भारी टैक्स (उत्पाद शुल्क और वैट) लगा रखा है। यह कमाई का बड़ा जरिया है, इसलिए किसी भी दल की सरकार हो, वह जनता को दिखाने के लिए पेट्रोल-डीजल की महंगाई का विरोध भले ही कर रही है, लेकिन टैक्स घटाकर अपनी कमाई कम भी नहीं करना चाहती है।