कोरोना संकट में भी सूदखोरी करते निजी बैंक

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  • रेपो दर घटाई 2.50%, निजी बैंकों ने की मात्र 0.40% कटौती

मुंबई. हमेशा मुनाफाखोरी मे लिप्त रहने वाले निजी बैंक और गैर बैंकिंग वित्त कंपनियां (एनबीएफसी) कोरोना संकट के समय भी ज्यादा मुनाफा कमाने यानी सूदखोरी से बाज नहीं आ रहे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस घोर संकट में ऋणधारकों को राहत देने के लिए अपनी ब्याज दर (रेपो रेट) में 115 बेसिस पॉइंट (1.15%) की बड़ी कटौती कर इसे 4% के न्यूनतम स्तर पर ला दिया है. और पिछले डेढ़ साल में रिजर्व बैंक कुल 250 बेसिस पॉइंट (2.50%) की कटौती कर चुका है, लेकिन इस कटौती का पूरा फायदा देश के करोड़ों मौजूदा ऋणधारकों को नहीं मिल पाया है.

 रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, वाणिज्यिक बैंकों ने रेपो रेट में 250 बेसिस पॉइंट की कटौती के सामने औसतन मात्र 55 बेसिस पॉइंट की ही कटौती की है. यानी सभी बैंक और एनबीएफसी जमकर सूदखोरी कर रहे हैं.

नए ऋणों पर ज्यादा कटौती, पुराने पर बहुत कम

तमाम बैंकों ने नए ऋणों पर ब्याज दरें औसतन 170 बेसिस पॉइंट तक घटा दी हैं. लेकिन पुराने ऋणों पर तो बहुत ही कम यानी 55 बेसिस पॉइंट की ही कटौती की है. इस कारण सभी पुराने ऋणधारकों को ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ रहा है. ब्याज दर कटौती का फायदा अपने मौजूदा ग्राहकों को प्रदान करने में सरकारी बैंक फिर भी आगे हैं. पिछले डेढ़ साल में जहां सरकारी बैंकों ने अपने पुराने ऋणधारकों के लिए ब्याज दरों में औसतन 65 बेसिस पॉइंट की कटौती की है, वहीं निजी बैंकों ने सिर्फ 40 बेसिस पॉइंट की कटौती की है.

2.07 लाख की ज्यादा ब्याज वसूली

सभी निजी बैंक और एनबीएफसी होम लोन, पर्सलन, कंज्यूमर और बिजनेस लोन सहित सभी तरह के ऋणों पर एक से डेढ़ प्रतिशत ज्यादा ब्याज दर वसूल रहे हैं. इस संकट के समय जब लोगों की कमाई ठप हो गई है, तब भी ये सूदखोरी करते हुए भारी ब्याज वसूल रहे हैं. यदि किसी व्यक्ति ने 20 लाख रुपए का होम लोन 20 साल के लिए लिया है तो उस पर 8% ब्याज दर होने पर उसे कुल ब्याज 20.15 लाख रुपए चुकाना होगा और यदि दर 9% है तो उसे 23.19 लाख रुपए का ब्याज भार आएगा. इस तरह 1% ज्यादा ब्याज दर होने पर ही 2.07 लाख रुपए का ब्याज बोझ बढ़ जाएगा और ईएमआई 1266 रुपए अधिक चुकानी होगी. एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, इंडसइंड, एक्सिस बैंक, बजाज फाइनेंस, इंडियाबुल्स,  सहित सभी निजी ऋणदाता होम लोन, पर्सलन और बिजनेस लोन आदि ऋणों पर 8.2% से 11% तक का भारी ब्याज ले रहे हैं.

सरकार की अपील का कोई असर नहीं

रिजर्व बैंक जब भी रेपो रेट कटौती करता है, सभी ऋणदाताओं से अपील करता है कि वे इस कटौती का पूरा लाभ अपने ग्राहकों को प्रदान करें. गर्वनर शक्तिकांत दास बार-बार यह अपील कर चुके हैं. यहीं नहीं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कई दफा कटौती का लाभ देने का आग्रह किया है, लेकिन वित्तमंत्री और गर्वनर की अपील का निजी बैंकों पर कोई असर नहीं हो रहा है. इसका कारण सरकार और रिजर्व बैंक का नरम रूख है.

निजी बैंकों का ब्याज मार्जिन बहुत ज्यादा

सरकार के नरम रूख का फायदा उठाकर निजी बैंक अपने मौजूदा ग्राहकों से लगातार अधिक ब्याज वसूल रहे हैं. तभी निजी बैंकों का मुनाफा तिमाही दर तिमाही बढ़ता जाता है. अप्रैल-जून 2020 की तिमाही में निजी क्षेत्र के एचडीएफसी बैंक ने 20% की वृद्धि के साथ 6658 करोड़ रुपए का भारी मुनाफा कमाया और इसका शुद्ध ब्याज मार्जिन सबसे अधिक 4.30% रहा. आईसीआईसीआई बैंक ने तो 36% की वृद्धि के साथ 2599 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया और इसका शुद्ध ब्याज मार्जिन 3.69% रहा. इसके विपरीत सरकारी बैंक बहुत कम ब्याज मार्जिन रख व्यवसाय कर रहे हैं. सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने पहली तिमाही में केवल 15% की वृद्धि के साथ 2650 करोड़ रुपए का ही मुनाफा कमाया और एसबीआई का शुद्ध ब्याज मार्जिन 3.24% ही रहा. जबकि बैंक ऑफ बड़ौदा को तो 864 करोड़ रुपए का घाटा हुआ और इसका ब्याज मार्जिन मात्र 2.55% ही रहा. सेंट्रल बैंक, केनरा बैंक, पीएनबी सहित अन्य सरकारी बैंक भी 2.55% से 3.08% का ब्याज मार्जिन ही रखकर अपने ग्राहकों से कम ब्याज ले रहे हैं.  

जमाराशि पर भी कम ब्याज

निजी बैंक अपने पुराने कर्जधारकों से ब्याज तो ज्यादा वसूल ही रहे हैं. जमाराशियों पर भी कम ब्याज दे रहे हैं. पिछले डेढ़ साल में निजी बैंकों ने जमा ब्याज दरों में औसतन 109 बेसिस पॉइंट (1.09%) की भारी कटौती कर दी है. जबकि सरकारी बैंकों ने इस दौरान केवल 75 बेसिस पॉइंट की ही कटौती की है. यानी निजी बैंकों के ग्राहकों को कर्ज पर जहां ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है, वहीं उनकी बचत पर ब्याज भी कम मिल रहा है. यानी दोहरा नुकसान. ऐसे में सरकारी बैंकों से ही कर्ज लेने और बचत जमा करने में ही हर तरह से फायदा है.