Ratan Tata and Cyrus Mistry

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नयी दिल्ली. टाटा संस प्राइवेट लि. ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह दो समूह वाली कंपनी नहीं है और उसके तथा साइरस इनवेस्टमेंट्स प्राइवेट लि. के बीच कोई ‘अर्द्ध- भागीदारी’ जैसी बात नहीं है। टाटा संस प्राइवेट लि. (टीएसपीएल) ने साइरस इनवेस्टमेंट्स प्राइवेट लि. की अपील का जवाब देते हुए शीर्ष अदालत में दायर हलफनामे में यह बात कही। साइरस इनवेस्टमेंट्स ने टीएसपीएल के निदेशक मंडल में अपने परिवार की हिस्सेदारी के अनुपात में प्रतिनिधित्व को लेकर एनसीएलएटी (राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण) के आदेश में कथित विसंगतियों को हटाने का आग्रह किया है।

टाटा संस ने कहा, ‘‘हलफनामें में जिन तथ्यों का भी जिक्र किया गया है, वे इस सचाई के स्पष्ट संकेत हैं कि टाटा संस का न तो कभी इरादा रहा और न ही कभी वह ‘दो समूह वाली कंपनी’ रही। और निश्चित रूप से अपीलकर्ता (साइरस इनवेस्टमेंट्स प्राइवेट लि.) और तथाकथित टाटा समूह के बीच कोई ‘अर्द्ध- भागीदारी’ नहीं है।” इससे पहले शीर्ष अदालत ने 10 जनवरी को एनसीएलएटी के पिछले साल के 18 दिसबर के आदेश को स्थगित कर टाटा समूह को राहत दी थी। अपीलीय न्यायाधिकरण ने अपने आदेश में साइरस मिस्त्री को नमक से लेकर साफ्टवेयर बनाने वाले टाटा समूह का कार्यकारी चेयरमैन पद बहाल कर दिया था।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने साइरस इनवेस्टमेंट्स प्राइवेट लि. की ‘क्रॉस अपील’ पर टीएसपीएल को नोटिस जारी किया था। साइरस मिस्त्री ने भी न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा था कि टाटा समूह ने 2019 में 13,000 करोड़ रुपये के शुद्ध घाटे को समायोजित किया था जो यह तीन दशक में सबसे बड़ा नुकसान था। टाटा ने अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा मिस्त्री को बहाल किये जाने के आदेश को चुनौती दी थी। उसके जवाब में मिस्त्री ने मांग की थी कि समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा को बेहतर वैश्विक मानदंडों को ध्यान में रखते हुए दिसंबर 2012 में उनकी रवानगी के बाद अपने सभी व्यय टाटा संस को वापस करने चाहिए। टाटा संस के बर्खास्त चेयरमैन मिस्त्री कंपनी में अपने परिवार की 18.37 प्रतिशत हिस्सेदारी के बराबर प्रतिनिधित्व चाहते हैं। अपने हलफनामें में टाटा संस ने आरोप लगाया कि साइरस इनवेस्टमेंट्स का जोर अब ‘अर्द्ध भागीदारी’ के सिद्धांत की ओर चला गया है ताकि वे ‘आनुपातिक भागीदारी’ के मामले में राहत प्राप्त कर सके।

इसमें कहा गया है, ‘यह हास्यास्पद है क्योंकि अर्द्ध-भागीदारी की बात कभी भी एनसीएलटी के समक्ष नहीं रखी गयी। अपीलीय न्यायाधिकरण में मामला पहुंचने के बाद पहली बार अपीलकर्ता ने अपनी कंपनी के अपील में अर्द्ध भागीदारी की बात रखी। हलफनामें में कहा गया कि अपीलीय न्यायाधिकरण का आदेश कानून की खामियों से भरा हुआ है और पूरी तरह से भ्रामक धारणा और तथ्यों को गलत तरीके से लिये जाने का नतीजा है। ऐसे में उसे खारिज किये जाने की जरूरत है।

मिस्त्री ने 2012 में टाटा संस के चेयरमैन के रूप में रतन टाटा का स्थान लिया था। लेकिन चार साल बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने टाटा समूह की 10 जनवरी की अपील पर सुनवाई करते हुए एनसीएलएटी के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें मिस्त्री को टाटा समूह के कार्यकारी चेयरमैन पद पर बहाल करने की बात कही गयी थी। न्यायालय ने कहा कि अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश में कुछ कमी है। (एजेंसी)