ग्रोथ ट्रैक पर लौटता माइक्रोफाइनेंस सेक्टर, वित्तीय समावेशन में महत्वपूर्ण भूमिका

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    मुंबई. ग्रामीण भारत में वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) को आगे बढ़ाने में माइक्रोफाइनेंस कंपनियां (MFIs) महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं। 5 करोड़ से अधिक ग्राहक आधार के साथ पिछले तीन ‍‍वर्षों में माइक्रोफाइनेंस उद्योग (Microfinance Industry) का सकल लोन पोर्टफोलियो 24% की ग्रोथ के साथ 3.20 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया। अविष्कार ग्रुप की आरोहण फाइ‍नेंशियल सविर्सेज लि. (Arohan Financial Services Ltd.) 22 लाख से अधिक ग्राहकों के साथ इस उद्योग की एक प्रमुख कंपनी है, जो जल्द ही शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होने जा रही है। 

    शीर्ष कर्मचारी हितैषी कंपनियों में आरोहण 86वें स्थान पर है। उद्योग की चुनौतियों और विकास, कोविड के प्रभाव और आरोहण की भूमिका सहित विभिन्न मुद्दों पर आरोहण फाइ‍नेंशियल के प्रबंध निदेशक मनोज कुमार नाम्बियार से वाणिज्य संपादक विष्णु भारद्वाज ने विस्तृत चर्चा की। मनोज नाम्बियार उद्योग की शीर्ष संस्था ‘एमफिन’ (MFIN) के अध्यक्ष भी रहे हैं। पेश हैं चर्चा के मुख्य अंश:-

    माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र कई चुनौतियों के बावजूद देश के विकास में योगदान देते हुए विकसित होता रहा है। अब कोविड संकट के प्रभाव को देखते हुए आप इस क्षेत्र को किस तरह से आगे बढ़ते हुए देखते हैं?

    माइक्रोफाइनेंस उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में अपने पैर मजबूती से जमा चुका है। यह 2010 में एनबीएफसी संकट और 2016 में विमुद्रीकरण जैसी विपत्तियों को झेलकर अपनी मजबूत प्रणालियों और प्रक्रियाओं के कारण मजबूत हुआ है और निरंतर देश में अधिकाधिक ग्राहकों तक अपनी पहुंच बढ़ा रहा है। इसमें संदेह नहीं कि पिछले वर्ष आई कोविड महामारी के कारण ग्राहकों की आय और आजीविका सृजन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। फील्ड अधिकारियों की आवाजाही पर पहली लहर के दौरान पूरी तरह से और दूसरी लहर में आंशिक रूप से प्रतिबंध रहने के चलते इस क्षेत्र के समक्ष चुनौतियां खड़ी हो गयी थी। हमने समय के साथ चलते हुए संवितरण और संग्रह दोनों प्रकार के कार्यों के लिए कैशलेस प्रक्रियाओं को पहले ही स्वीकार कर लिया था, जिसने इस दौरान आई चुनौतियों को मात देने में काफी मदद की। आरोहण के पास स्वयं शत-प्रतिशत कैशलेस संवितरण (Cashless Disbursements) सुविधा है और हमने कैशलेस संग्रह बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान केंद्रित किया है। हमने अपने सभी ग्राहकों को कैशलेस भुगतान के अवसर प्रदान करने के लिए अग्रणी डिजिटल भुगतान समाधान प्रदाताओं और भुगतान बैंकों (Payment Banks) के साथ करार किया है। अब चूंकि देश में वैक्सीनेशन अभियान तेज करने से महामारी पर नियंत्रण हो रहा है। जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था अब धीरे-धीरे खुलने लगी है और ग्राहकों की आजीविका भी पटरी पर लौट रही है। इन सबके चलते अब माइक्रोफाइनेंस व्यवसाय में महीने दर महीने सुधार हो रहा है और कुछ ही महीनों में प्री-कोविड स्तर तक पहुंचने की उम्मीद है।

    आप उद्योग संस्था ‘एमफिन’ के अध्यक्ष रह चुके हैं। उद्योग के विकास के लिए आरबीआई (RBI) के डी-रेगुलराइजेशन के कदम को आप कैसे देखते हैं?

    माइक्रोफाइनेंस उद्योग के डी-रेगुलराइजेशन (De-Regularization) से सभी माइक्रोफाइनेंस ग्राहकों के साथ-साथ ऋण देने वाली संस्थाओं को भी फायदा होगा, क्योंकि उधार और मूल्य निर्धारण, दोनों मानदंडों को संशोधित किए जाने की संभावना है। अहम बात यह है कि उधार देने के मामले में 70% माइक्रोफाइनेंस कंपनियों को पहले ही नियंत्रण मुक्त किया जा चुका है और इस घोषणा से शेष 30% के लिए भी इसके खुलने की संभावना हो गयी है, जो सेवा एनबीएफसी-एमएफआई द्वारा प्रदान की जा रही थी। ऐसा होने पर सभी माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को एक समान अवसर मिलेगा और वित्तीय रूप से स्थिर अच्छे कॉर्पोरेट प्रशासन वाली माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के लिए अधिक पूंजी प्रवाह सुलभ होगा। इसके अलावा, देश में लाखों माइक्रोफाइनेंस ग्राहकों के लिए क्रेडिट व्यवहार डेटा की उपलब्धता होने की वजह से समय पर पुनर्भुगतान करने वाले ग्राहकों‍ को कंपनी की नीतियों के आधार पर खुदरा बैंकिंग (Retail Banking) की तरह कम ब्याज दर पर कर्ज (Loan) मिल सकेगा। इसलिए, हम उम्मीद करते हैं कि नए दिशा-निर्देश ग्राहकों के साथ-साथ कंपनियों के लिए फायदेमंद होंगे।

    आप कार्पोरेट जगत में ‘ईएसजी’ कॉन्सेप्ट के बढ़ते रुझान को देखते हुए माइक्रोफाइनेंस उद्योग के लिए इसे कितना महत्वपूर्ण मानते हैं?

    एक ऐसे उद्योग के लिए, जो वित्तीय समावेशन के माध्यम से वंचितों की सेवा करता है, निरंतर परिवर्तन की पृष्ठभूमि में काम करना पड़ता है। हमारा मानना है कि पर्यावरण, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों के लिए ईएसजी (ESG) का पालन समय की मांग है और इसे उद्योग के खिलाड़ियों को सर्वसम्मति से प्रोत्साहित करना चाहिए। आरोहण पहले से ही अपने व्यवसाय में ‘ईएसजी’ मानदंडों का पालन कर रही है। इसी वजह से आरोहण को भारतीय कंपनी सचिव संस्थान ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस-2020 का अपना राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया है। यह हमारे मजबूत मूल सिद्धांतों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

    जिस तरह से उद्योग सामान्यावस्था हासिल कर रहा है, क्या डिजिटलीकरण की उसमें महत्वपूर्ण भूमिका है और इस पर आरोहण का क्या रुख है?

    वित्तीय समावेशन क्षेत्र में प्रतिदिन लाखों ग्राहकों को बड़ी संख्या में लेन-देन की सुविधा प्रदान की जाती है। किसी भी माइक्रोफाइनेंस संगठन को भविष्य के लिए तैयार करने में प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण की भूमिका बेहद जरूरी है। इसलिए आरोहण ने अपनी डिजिटल यात्रा (Digital Journey) ‘फ्रंट पर कैशलेस और बैक पर पेपरलेस’ की नीति के साथ ‍‍वर्ष 2016 में ही शुरू कर दी थी। एक बैंक ना होने के बावजूद हम एक कोर बैंकिंग सिस्टम पर काम करते हैं, जो हमें अपने सभी ग्राहकों के लेन-देन निर्बाध रूप से प्रबंधित करने में सक्षम बनाता है। माइक्रोफाइनेंस उद्योग में पहली बार पूरी तरह से डिजिटल और कागज रहित ऋण उत्पत्ति प्रणाली के साथ, हमारे पास बीटा-परीक्षण में एक क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल है, जिससे हमें क्रेडिट अंडरराइटिंग निर्णय लेने में मदद मिलती है। हमारे पास अपने सभी फील्ड स्टाफ के लिए एक इन-हाउस एप है, जो उन्हें हमारे ग्राहकों को बेहतर सेवा देने में सक्षम बनाता है। इसके अलावा हमने हाल ही में ग्राहकों के लिए भी अपना आरोहण एप लॉन्च किया है।

    आरोहण जल्द शेयर बाजारों में लिस्ट होने जा रही है। कंपनी अपने आईपीओ से प्राप्त पूंजी का उपयोग कैसे करना चाहती है?

    हमने अपना आईपीओ (IPO) ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस दाखिल किया है और अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए ‘सेबी’ (SEBI) से अनुमोदन प्राप्त किया है। हम अपने विजन और मिशन वक्तव्यों के अनुरूप विकास यात्रा के अपने अगले चरण के लिए धन जुटाने की योजना बना रहे हैं। हमारा उद्देश्य भारत में वित्तीय समावेशन को मुख्यधारा में लाने के लक्ष्य के साथ भारत में सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के आधार पर ग्राहकों को अधिक सेवाएं और उत्पाद प्रदान करने में सक्षम होना है।